मोहन भागवत

विकिसूक्ति से
  • राष्ट्र की उन्नति में प्रत्येक व्यक्ति को सम्मिलित होना पड़ेगा। बिना संगठित हुए राष्ट्र कभी परम वैभव पर नहीं पहुंच सकता।
  • चारों तरफ से विरोधियों में घिर जाने पर भी जो हिम्मत से कार्य करता है, वही विजय श्री को प्राप्त करता है।
  • जाति-पाति, वर्ग-भिन्नता, अगड़ा–पिछड़ा इन सब में पड़कर समाज अपना अस्तित्व खो बैठता है। समय की मांग है इन सभी पूर्वाग्रह से बाहर निकल कर भारतीय बनाने का, देशभक्त बनाने का।
  • जब हम आजीविका कमाते हैं तो समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारी होती है। जब हर काम समाज के लिए होता है तो कोई भी काम छोटा या बड़ा कैसे हो सकता है। भगवान ने हमेशा कहा है कि हर कोई उनके लिए समान है और कोई जाति या वर्ण नहीं है, उसके लिए संप्रदाय नहीं है, यह पंडितों द्वारा बनाई गई थी जो गलत है। -- फरवरी २०२३ में, मुम्बई में रविदास जयन्ती के अवसर पर उद्बोधित करते हुए [१]
  • स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है वह वहां के अनुशासन का पालन अवश्य करता है। यह उसके संस्कार हैं यही स्वयंसेवक को विशिष्ट बनाता है।
  • पूर्व में क्या हुआ, बिना इस पर विचार किए वर्तमान में सभी को सामान्य दृष्टि से अपनाना होगा और उन्हें हुआ सम्मान तथा दायित्व देना होगा जिनके वह अधिकारी हैं।
  • संगठित समाज ही भाग्य परिवर्तन की कुंजी है। संगठित होकर ही व्यक्ति तथा राष्ट्र का भाग्य बदला जा सकता है।
  • बिना किसी आलोचना पर ध्यान दिए अनेकों जख्मों को सहते हुए हमें निरंतर आगे बढ़ते रहना होगा। लोग फलदार वृक्ष को ही पत्थर मारते हैं, यह समझना होगा।
  • सैकड़ों साल देश गुलाम रहा, गुलामी की मानसिकता होना समझा जा सकता है किंतु अब ऐसा कोई कारण नहीं है कि हम गुलामी की मानसिकता से बाहर ना निकलें। पारंपरिक रूढ़ीवादी विचारों को दरकिनार करते हुए नए भारत के लिए कदम बढ़ाए।
  • समाज के लोगों को एकजुट करना तराजू में मेंढक तोलने के बराबर है। समाज के चार लोग तभी एक साथ होते हैं जब पांचवा कंधे पर हो। इस प्रकार समाज का विकास संभव नहीं है। आपसी वैमनस्य की भावना से राष्ट्र का कभी भला नहीं हो सकता।
  • संघ को किसी विशेष विचारधारा मे बांधने की कोशिश व्यर्थ है। यह किताब और पत्र की सीमाओं में बंधने वाला नहीं है। यह जीवन जीने का मार्ग बताता है, जीवन और भविष्य का निर्माण करता है, राष्ट्र का उद्धार हो इसके लिए संघर्ष करता है, यह विचारधारा से परे है।
  • भारत हिंदू राष्ट्र है,और यह सत्य है कोई इसे झुठला नहीं सकता। जब तक इस देश में एक भी हिंदू है तब तक यह हिंदू राष्ट्र ही रहेगा।
  • मीडिया हमारे विषय में कितना भी कुछ भी लिखें यह एक दो महीने की छींटाकशी होती है किंतु वास्तविकता तो वास्तविकता ही रहती है।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति लोगों ने गलत प्रचार प्रसार समाज के बीच जाकर किया यह वह लोग हैं जो समाज को संगठित होते नहीं देखना चाहते यह लोग संघ में एक साल रहकर देखें सारी मानसिक विकृतियां शांत हो जाएंगी ।
  • ना किसी ने हिंदू को बनाया और ना ही किसी ने भारत को यह तो अनंत काल से ऐसा ही चला आ रहा है हिंदू सनातन का प्रतीक है और भारत का निवासी।
  • समर्थ की उपेक्षा विश्व में कोई नहीं करता इसीलिए सामर्थवान होना आवश्यक है।
  • कभी-कभी विरोधियों का सामना करके भी लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है।
  • भारत भूमि पर अपनी आस्था प्रकट करने वाला और भारत की भूमि को मातृभूमि मानकर उसकी पूजा करने वाला एक भी हिंदू अगर इस भूमि पर है तब तक यह हिंदू राष्ट्र है।
  • भारत किन्ही काल परिस्थितियों के कारण विघटित हुआ अफगानिस्तान, ईरान, भूटान, बांग्लादेश,पाकिस्तान यह सब भारत के अंग है और रहेंगे वहां आज भी अपनी संस्कृति को लेकर समाज चल रहा है मेरा दृढ़ विश्वास है एक दिन हम पुनः संगठित होंगे और एक अखंड भारत का पुनः निर्माण करेंगे।
  • विशिष्ट गुण वाले स्वयंसेवक एक प्रतिशत देहात में तथा तीन प्रतिशत शहरों में अगर हो जाए उस दिन समाज का वातावरण बदल जाएगा और समाज सभ्य शिक्षित और समृद्धिशाली हो जाएगा।
  • हमारे लिए सभी अपने हैं, कोई पराया नहीं है चाहे वह किसी भी जाति, पंथ, मजहब या राजनीति से संबंध रखता हो।
  • जिस प्रकार शिवाजी को भी औरंगजेब की मांद में जाना पड़ा था उसी प्रकार हमारे स्वयंसेवक कठिन परिस्थितियों में जाकर भी राष्ट्र निर्माण का कार्य करने को तत्पर है।
  • मेरा किसी राजनैतिक पार्टी से कोई रिश्ता नहीं है मेरा रिश्ता केवल स्वयंसेवकों से है।
  • जो भी स्वयंसेवक जिस भी क्षेत्र में जाता है वह वहां के लिए निष्ठावान होता है किसी प्रशासनिक सेवा या राजनीतिक सेवा के क्षेत्र में जाता है, तो वह वही के प्रति निष्ठावान होता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति जवाबदेही नहीं होती।
  • किसी भी आतंकवादी संगठन को हिंदू समर्थन नहीं होता है इसलिए हिंदू आतंकवाद का नाम लेकर एक सभ्य समाज को बदनाम करने की साजिश की जा रही है।
  • आतंकवाद व्यक्तिगत होता है किंतु कुछ धर्म के लोग धर्म का आश्रय पाकर उसकी दुहाईयां देकर आतंकवाद फैला रहे हैं जिससे उनका धर्म आतंकवाद के नाम से चिन्हित हो रहा है।
  • संघ का स्वयंसेवक स्वेच्छा से अपने संपूर्ण कार्य करते हैं वह किसी के दबाव में या किसी के दिशा निर्देशों का अनुपालन नहीं करते वह स्वयं के विवेक से ही कार्य करते हैं।
  • किसी भी स्वयंसेवक के चाल-चलन की जिम्मेदारी संघ की जवाबदेही बन जाती है इसे नकारा नहीं जा सकता।
  • अपना राष्ट्र आत्मवित्त, ब्रह्मा वित, वेदवित्त रूप से संपन्न हो इस प्रयोजन से कार्य किया जाना चाहिए।
  • विश्व को सुपंथ पर लाना और उनके प्रयोजन को ध्यान दिलाना यह दायित्व भारत का है और उसके समाज का है इसलिए भारत के समाज में यह गतिविधियां नित्य चलनी चाहिए।
  • कार्य के पथ पर हमेशा कठिनाइयां रहती है उपेक्षा, निराशा, आत्मविश्वास इसके प्रभाव से व्यक्ति का लक्ष्य निर्धारित होता है प्रभाव में आने से लक्ष्य से चूकता है।
  • विरोध में भी लोगों के पास वह वृत्ति होनी चाहिए जो हमने संकल्प किया, वह सत्य है और वह जग हित में है फिर वह किसी भी विरोध से विचलित नहीं होता।
  • सामर्थवान की सदैव पूजा होती है किंतु यह वह समय होता है जब समर्थवान की शक्तियां उसे भ्रमित कर गलत मार्ग दिखाती है।
  • मनुष्य का पतन उसके अहंकारों तथा अपार शक्तियों पर निर्भर करता है शक्ति संपन्न होने पर भी वह अहंकार और निंदा का शिकार हो जाता है।
  • अधिक लोगों का विनाश उत्थान के समय होता है संघर्ष के समय नहीं इसलिए कहा जाता है उन्नति विनाश का बीज अपने साथ छुपा कर लाती है।
  • जब तक शक्ति साथ होती है तब तक आप विजय श्री का साक्षात करते हैं कृष्ण के साथ अर्जुन के रहते अर्जुन को सदैव विजयश्री प्राप्त होती रही बड़ी बड़ी सैन्य टुकड़ियों का सामना किया किंतु शक्ति रुपी कृष्ण के ना रहते हुए छोटे जंगली डकैतों से भी हार गया और अपने परिवार की रक्षा नहीं कर सका।
  • किसी प्रकार की सहायता, सम्मान और सराहना व्यक्तिगत नहीं होती बल्कि जिस कार्य को हम कर रहे हैं उसके लिए होती है।
  • सुख के लिए बाहर की दौड़ लगाना व्यर्थ है सुख अपने भीतर है उसे ढूंढने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • सृष्टि की सारी विविधता में एकता का रूप है।
  • अपनी-अपनी श्रद्धा पर पक्के रहो मिलजुल कर चलो क्योंकि अकेला व्यक्ति सुख प्राप्ति नहीं करेगा
  • स्वयं त्तर कर अन्य को तारा ऐसा साधु संतों का व्यवहार होता है।
  • व्यक्ति का आचरण परिवर्तित तभी होता है जब कहने वाला स्वयं तपस्वी होता है सत्य, करुणा, सुचिता और उसके लिए तपस्या जिसके जीवन में होता है उसके कहने से समाज और धर्म परिवर्तित होता है।
  • हमारी नाकामी और जाति, पंथ विभिन्नता ने दूसरों को फलने फूलने का बल दिया उनकी हैसियत नहीं थी वह हमारे इस कृत्य से बड़े होने लगे।
  • परमात्मा की इच्छा है कि संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए सनातन धर्म का उत्थान हो सके इसके लिए भारत का उत्थान होना चाहिए।
  • भारत देश का प्रयोजन ही विश्वकल्याण का है।
  • एकांत में योग साधना, लोकांत में सेवा परोपकार की भावना प्रत्येक व्यक्ति में होनी चाहिए।
  • समाज की स्थिति को बदलने के लिए स्वयं को कृष्ण होना पड़ेगा। कृष्ण किसी के वशीभूत नहीं होते, वह स्वतंत्र हैं। ऐसा ही समाज को होना पड़ेगा। जनता ही जनार्दन है।
  • हमारे देश का नाम भारत है और हमें सभी व्यवहारिक क्षेत्रों में ‘इंडिया’ शब्द का प्रयोग बंद कर देना चाहिए और भारत का इस्तेमाल शुरू करना होगा, तभी बदलाव आएगा। हमें अपने देश को 'भारत' कहने की आदत डालनी होगी और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए समझाना होगा। -- सितम्बर, २०२३, गुवाहाटी में

इन्हें भी देखें[सम्पादन]

सन्दर्भ[सम्पादन]