भिक्षा
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- तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भिक्षा देना, दान का अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नही है। -- विनोबा भावे
- अहं च त्वं च राजेन्द्र लोकनाथावुभावपि।
- बहुब्रीहिरहं राजन् षष्ठीतत्पुरुषो भवान्॥
- (हे राजन् ), आप और हम दोनों ही लोकनाथ हैं। फरक इतना ही है कि आप श्रीमान हैं और मैं याचक हूँ––अतएव याचक होने के कारण मेरे नाम में 'लोकनाथ' बहुब्रीहि समास है, जैसे––लोक है नाथ जिसके, वह लोकनाथ और आपके नाम में 'लोकनाथ' षष्ठी तत्पुरुष समास है, जैसे––लोकों का नाथ, लोकनाथ।
- याचना नहीं अब रण होगा, संग्राम महाभीषण होगा। -- श्रीकृष्ण, रश्मिरथी में
- रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
- उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥ -- रहीम
- भीख माँगना मरने से बदतर है। इसी संदर्भ में रहीम कहते हैं कि जो मनुष्य भीख माँगने की स्थिति में आ गया अर्थात् जो कहीं माँगने जाता है, वह मरे हुए के समान है। वह मर ही गया है लेकिन जो व्यक्ति माँगने वाले को किसी वस्तु के लिए ना करता है अर्थात उत्तर देता है, वह माँगने वाले से पहले ही मरे हुए के समान है।