सामग्री पर जाएँ

पथ्य

विकिसूक्ति से

पथ्य से मतलब यह है कि ऐसे खान पान और रहन सहन से है जो रोगी को अपनाना चाहिये और जिसके पालन से उसका रोग ठीक हो और जल्दी शरीर को आराम मिले। महर्षि चरक ने ६ पहलू स्पष्ट किये हैं जिससे यह तय किया जा सके कि किस परिस्थिति में क्या खाने योग्य है अथवा नहीं। वे कहते हैं कि भोजन को पथ्य (खाने योग्य, स्वास्थ्य) और अपथ्य (खाने योग्य नहीं, हानिकारक) बनाने के लिए निम्न कारक प्रमुख हैं:

  • मात्रा (भोजन की)
  • समय (कब उसे पकाया गया और कब उसे खाया गया)
  • प्रक्रिया (उसे बनाने की)
  • स्थान जहां उसके कच्चे पदार्थ उगाए गए हैं (भूमि, मौसम और आसपास का वातावरण इत्यादि)
  • उसकी रचना या बनावट (रासायनिक, जैविक, गुण इत्यादि)
  • उसके विकार (सूक्ष्म और सकल विकार और अप्राकृतिक प्रभाव और अशुद्ध दोष, यदि कोई है तो)

आचार्य शुश्रुत चिकित्सा के दृष्टिकोण से विभिन्न प्रकार के आहार को उसके सकल मूल गुण से उसका अन्तर बताते हैं, और किस को किस परिस्थिति में क्या ग्रहण करना यह निम्न में बताते हैं।

उक्तियाँ

[सम्पादन]
  • पथ्यं-पथो अनपेतं यध्यच्चोक्तं मनसः प्रियम्॥ -- चरकसंतिता सूत्रस्थान २५/४५
जो आहार आदि द्रव्य पथ (शारीरिक स्रोतों) में अपकार (हानि) करने वाला न हो और मन के लिए प्रिय हो अर्थात जो आहार द्रव्य शरीर और मन के लिए हानिकारक न हो उसे पथ्य कहते हैं । जो आहार शरीर एवं मन के लिए हानिकारक हो उसे अपथ्य कहते हैं।


  • मात्रा काल क्रिया भूमि देह दोष गुणान्तरम् ।
प्राप्य तत्ताद्धि दृश्यन्ते ते ते भावास्तथा तथा॥ -- चरक संहिता
पथ्य पदार्थ भी मात्रा, काल (ऋतु), भूमि (स्थान), देह (शारीरिक स्थिति) एवं दोष की विभिन्न अवस्थाओं को प्राप्त कर अपथ्य हो जाता है और इन्हीं कारणों से अपथ्य पदार्थ भी पथ्य हो जाता है। आयुर्वेद ने बड़ी सटीक और महत्वपूर्ण बात इस व्याख्या में कही है कि कोई भी पदार्थ अपने आप में न तो पथ्य होता है और न अपथ्य बल्कि उपयोग की स्थिति, हेतु और पद्धति से ही वह पथ्य या अपथ्य सिद्ध होता है।


  • अव्याकरणमधीतं भिन्नद्रोण्या तरंगिणी तरणम् ।
भेषजमपथ्यसहितं त्रयमिदमकृतं वरं न कृतम् ॥
व्याकरण छोड़कर किया हुआ अध्ययन, तूटी हुई नौका से नदी पार करना, और अयोग्य आहार के साथ लिया हुआ औषध – ये ऐसे करने के बजाय तो न करने ही बेहतर हैं।


  • पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः ।
पथ्ये असति गदार्तस्य किमौषधनिषेवणैः॥
यदि आप अपने जीवन में पथ्य आहार का सेवन करते हैं तो आपको औषध की जरुरत ही नहीं पड़ेगी एवं अगर आप अपथ्य आहार का सेवन कर रहें है तो चाहे कितनी ही कारगर दवा क्यों न हो आपको उससे कुछ खास लाभ नहीं होगा। (अतः हमेशा पथ्य अपथ्य का खयाल रख कर ही आहार लें।)


  • व्यायामो हि सदा पथ्यो बलिनां स्निग्धभोजिनाम् ।
स च शीते वसन्ते च तेषां पथ्यतमः स्मृतः॥
चिकनाई वाला भोजन खाने वालों तथा बलवानों के लिए व्यायाम सदैव स्वास्थ्यवर्धक है। उनके लिए सर्दी और वसन्त (आदि सभी ऋतुओं) में व्यायाम परम स्वास्थ्यवर्धक बताया गया है।


  • अभुक्त्वामलकं पथ्यं भुक्त्वा तु बदरीफलम् ।
कपित्थं सर्वदा पथ्यं कदली न कदाचन ॥
भोजन खाने के पहले, आमलक फल को खाना, आरोग्य के लिये अभिलषणीय है। भोजन खाने के बाद, बदरी फल खाना अछ्छा रहेगा । कपिथ्थ फल को हमेश खा सकते हैं। कदली फल खाना कभी वांछनीय नहीं है।
  • सुलभाः पुरुषा रजन्! सततं प्रियवादिनः ।
अप्रियस्य तु पथ्यस्य वक्ता श्रोता च दुर्लभः ॥ -- मारीच, रावण से ; रामायण के अरण्यकाण्ड में
हे राजन! सदैव प्रिय बोलने वाले और सुनने वाले पुरूष आसानी से मिल जाते हैं। अप्रिय किंतु परिणाम में हितकर हो, ऐसी बात कहने और सुनने वाले दुर्लभ होते हैं।

सन्दर्भ

[सम्पादन]

इन्हें भी देखें

[सम्पादन]