निवास

विकिसूक्ति से
  • तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया ।
येन विज्ञातमात्रेण सर्वज्ञात्वं प्रपद्यते ॥
इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है।
  • दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायकः ।
ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ॥
जिसकी स्त्री दुष्टा हो, मित्र नीच स्वभाव के हों, नौकर जवाब देने वाले हों और जिस घर में साँप रहता हो, ऐसे घर में रहने वाला व्यक्ति निश्चय ही मृत्यु के निकट रहता है अर्थात् ऐसे व्यक्ति की मृत्यु किसी भी समय हो सकती।
  • यस्मिन्देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः ।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासं तत्र न कारयेत् ॥
जिस देश में व्यक्ति को सम्मान न मिले, जहाँ आजीविका के साधन उपलब्ध न हों, जहाँ बंधु-बांधव और मित्र न हों, विद्या-प्राप्ति के साधन भी न हों, उस देश में व्यक्ति को कभी निवास नहीं करना चाहिए।
  • धनिकः श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ॥
जिस देश में धनी-मानी व्यवसायी, वेदपाठी ब्राह्मण, न्यायप्रिय तथा प्रजावत्सल व शासन व्यवस्था में निपुण राजा, जल की आपूर्ति के लिए नदियाँ और बीमारी से रक्षा के लिए वैद्य आदि न हों अर्थात जहाँ पर ये पाँचों सुविधाएँ प्राप्त न हों, वहाँ व्यक्ति को कुछ दिन के लिए भी नहीं रहना चाहिए।
  • लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संस्थितिम् ॥
जहाँ आजीविका, व्यापार, दण्डभय, लोकलाज, चतुरता और दान देने की प्रवृत्ति–ये पाँच बातें न हों, वहाँ भी कभी निवास नहीं करना चाहिए।
  • कष्टं च खलु मूर्खत्वं कष्टं च खलु यौवनम् ।
कष्टात्कष्टतरं चैव परगेहनिवासनम् ॥
इसमें कोई दो राय नहीं कि मूर्खता कष्टदायक होती है, जवानी भी दुःखदायक होती है तथा दूसरे के घर रहना तो अत्यंत कष्टदायक ही होता है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]