निबन्ध

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निबन्ध, साहित्य की एक विधा है। निबन्ध की प्रधान विशेषता व्यक्तित्व का प्रकाशन है। निबंध की सबसे अच्छी परिभाषा है- "निबन्ध, लेखक के व्यक्तित्व को प्रकाशित करने वाली ललित गद्य-रचना है।" विश्व की सभी भाषाओं में निबंध को साहित्य की सृजनात्मक विधा के रूप में मान्यता आधुनिक युग में ही मिली है। निबंध में किन्हीं ऐसे ठोस रचना-नियमों और तत्वों का निर्देश नहीं दिया जा सकता जिनका पालन करना निबंधकार के लिए आवश्यक है। ऐसा कहा जाता है कि निबंध एक ऐसी कलाकृति है जिसके नियम लेखक द्वारा ही आविष्कृत होते हैं। निबंध में सहज, सरल और आडम्बरहीन ढंग से व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका निबंध पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा। इसी आत्मीयता के फलस्वरूप निबंध-लेखक पाठकों को अपने पांडित्य से अभिभूत नहीं करना चाहता। -- हिन्दी साहित्य कोश
  • निबन्ध लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है। -- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
  • एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय या वर्णन या प्रतिपादित एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव, सजीवता तथा सम्बद्धता के साथ किया जाना ही निबन्ध कहलाता है। -- बाबू गुलाबराय
  • नए युग में जिन नवीन ढंग के निबंधों का प्रचलन हुआ है वे व्यक्ति की स्वाधीन चिन्ता की उपज है। -- हजारीप्रसाद द्विवेदी
  • संस्कृत में भी निबन्ध का साहित्य है। प्राचीन संस्कृत साहित्य के उन निबन्धों में धर्मशास्त्रीय सिद्धान्तों की तार्किक व्याख्या की जाती थी। उनमें व्यक्तित्व की विशेषता नहीं होती थी। किन्तु वर्तमान काल के निबन्ध संस्कृत के निबन्धों से ठीक उलटे हैं। उनमें व्यक्तित्व या वैयक्तिकता का गुण सर्वप्रधान है। -- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी