गंगा
गंगा नदी भारतीय संस्कृति का गौरव है जो विश्व में हमें एक अलग पहचान दिलाती है। पुराणों में गंगा नदी को सभी तीर्थ-स्थलों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ-स्थल माना गया है तथा सभी नदियों में सर्वश्रेष्ठ नदी माना गया है। गंगा का आध्यात्मिक और भौतिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। भौतिक दृष्टि से गंगा नदी तंत्र एक विशाल नदी तंत्र है, जिसपर सहस्रों बाँध बने हैं तथा असंख्य कृषि भू-भाग संचित होता है। आध्यात्मिक दृष्टि से गंगा को 'मोक्षदा' (मोक्ष देने वाली) कहा गया है। 'तारयतेति तीर्थ' जो भवसागर से पार करा दे वही तीर्थ है। कलियुग में जितने भी तीर्थ-स्थल है, उनमें गंगा नदी को परम पवित्र तीर्थ-स्थल माना गया है।
पुराणों के आख्यानों और उपाख्यानों में देवी अर्थात ब्रह्म का स्वरुप माना गया है, एक स्थान पर कहा गया है कि गंगा नदी , गंगा के नाम से द्रव रूप में परिणत साक्षात परम ब्रह्म ही है तथा महापातकियों का भी उद्धार करने के लिए स्वयं कृपानिधि परमात्मा ही पुण्यतम जल के रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर आये हैं।
सर्वपापहरणी त्रिपथगा भागीरथी माँ गंगा उद्गम-स्थल गंगोत्री से दस मिल दूर हिमाच्छादित गोमुख है । यहाँ भागीरथ शिखर से नीचे गोमुख हिमानी ही गंगा नदी का उद्गम-स्थल है। गोमुख स्वर्ग की अनुभूति का अहसास करता है। गोमुख गंगोत्री से लगभग २५ किलोमीटर के आस-पास की दूरी पर स्थित है। यहाँ के लिए चीरवासा (चीड़ के वृक्षों की अधिकता होने के कारण यह नाम पड़ा ) और भोजवासा (भोज वृक्षों की अधिकता) से होकर जाना पड़ता है।
पतित पावनी माँ गंगा नदी का मुख्य मंदिर गंगोत्री में है। यही पर पापहरणी माँ भागीरथी की पूजा-अर्चना होती है।
गंगा का पृथवी पर अवतरण की कहानी पुराणों के आख्यानों-उपाख्यानों में मिलती है । जिसमें अनेक कथाएं प्रचलित हैं । उनमे से मुख्य है -
- (१) शान्तनु की पत्नी के रूप में पृथिवी पर गंगावतरण की कथा- जिसमे किसी शाप के कारण माँ गंगा पृथिवी पर आई और कुछ समय के लिए शान्तनु की पत्नी बनकर रहने के बाद वापस स्वर्गलोक चली गई ।
- (२) दूसरी कथा राजा सगर के पुत्रों की आत्म शान्ति एवं मुक्ति के लिए राजा भागीरथ का तपोबल के द्वारा गंगावतरण की कथा : जिसमे राजा सगर द्वारा आयोजित अश्वमेधयज्ञ के अश्व को इन्द्र द्वारा कपिलमुनि के आश्रम में छुपाकर आना और सगर के पुत्रों द्वारा कपिलमुनि की तपस्या भंग करना, जिसपर कपिलमुनि का क्रोधित होकर अपने शाप से उन्हें भस्म कर देना तथा बाद में सगर के पौत्र भागीरथ द्वारा गंगा और भगवान शंकर की तपस्या करना और पतित पावनी माँ गंगा नदी को पृथिवी पर लाना और अपने दादा और परदादाओं को मुक्ति दिलाना।
राजा भागीरथ के तपोबल से अवतरित पतित पावनी मोक्षदायिनी माँ गंगा नदी गोमुख हिमानी से निकलकर उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिमबंगाल से होते हुए सुंदरवन में गंगासागर में मिल जाती है । गोमुख से लेकर सुंदरवन तक गंगा नदी भारत के पांच 5 राज्यों से होकर गुजरती है।
गंगा नदी के अन्य नाबताए गये हैं जिनमे से प्रमुख नाम निम्नवत हैं -
- भागीरथी, सप्तागंगा, स्वर्गगंगा, पातालगंगा, गरुड़गंगा, बालगंगा, धर्मगंगा, अमृतगंगा, नदाकिनी, विरहीगंगा, लक्ष्मणगंगा, अस्सिगंगा, रुद्रगंगा, केदारगंगा, हनुमानगंगा, अलकनन्दा, मन्दाकिनी, यमुना ।
इनके अतिरिक्त गंगा नदी के विभिन्न नाम विष्णुपदी, त्रिपथगा, जान्हवी, हेमवती, स्वर्गा, गां गता, वसुमाता आदि हैं ।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- तीर्थानां परम तीर्थं नदीनां परमा नदी। -- कूर्मपुराण, पूर्वभाग 35/32
- तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में परम नदी।
- तस्य संस्पर्शनात्पूतं तीर्थं च भुवि भारते।
- तस्यैव पादरजसा सद्यः पूता बसुन्धरा॥
- पादोदकस्थानमिदं तीर्थमेव भवेदध्रुवम्॥ -- ब्रह्मवैवर्त पुराण 10/48
- गंगा नदी अपने जल से सम्पूर्ण भूतल को पवित्र कर देती है तथा उसके पादोदक स्थान निश्चत ही तीर्थ-स्थल बन जाते हैं।
- वामपादाम्बुजांगुष्ठनखस्रोतोविनिर्गताम्॥ -- विष्णुपुराण 2/8/109
- श्रीविष्णु भगवान के वाम चरण-कमल के अगुठे के नख-भाग से गंगा नदी की उत्पति हुई।
- बहिश्चकार गंगा च पादांगुष्ठनखाग्रतः॥ -- बह्मवैवर्त पुराण प्र.ख. 12/9
- निर्गता विष्णुपादाब्जात्तेन विष्णुपदी स्मृता॥ -- वही 11/141
- सर्वपपहरणी माँ भगवती गंगा को भगवान विष्णु के परमपद से उत्पन्न होने के कारण 'विष्णुपदी' भी कहा जाता है।
- तदेतत्परमम् बह्म द्रवरुपं महेश्वरि।
- गंगाख्यं यत्पुण्यतमं पृथिव्यामागतं शिवे॥
- गंगा नदी का नाम गंगा क्यों पड़ा? इस संबध में कहा गया है कि उस परम ब्रह्म का द्रव्य रूप अत्यन्त पवित्र गंगा नाम है, जो पृथ्वी पर प्राप्त है।
- गतां गतेति ततो गंगा नाम तस्या बभूव ह...। -- केदारखण्ड/०२/०१-०२
- गंगा नदी का पृथ्वी पर पहुँचने (गां गता) के कारण ही उसका नाम गंगा पड़ा।
- गंगोद्भेदं समासाद्य त्रिरात्री पोषितो नरः।
- वाजपेयमवाप्नोति ब्रह्मभूतो भवेत्सदा॥ -- महाभारत के वनपर्व में
- (गंगोत्री के विषय में कहा गया है कि) जहाँ पर गंगा का उद्गम स्थल है, उसे गंगोद्वार या गंगोत्री कहते हैं। वाजपेय यज्ञ करने से जो फल प्राप्त होता है, वह गंगोत्री मात्र जाने और तीन दिन व्रत, श्राद्ध तर्पण आदि करने से प्राप्त हो जाता है तथा मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
- शम्भोर्जटाकलापाच्च विनिष्क्रान्तास्थिशर्कराः।
- प्लावयित्वा दिवं निन्ये या पापान्सगरात्मजान्॥ -- विष्णु पुराण 2/8/15
- गंगा श्री शंकर के जटा कपाल से निकलकर सगर के पापी पुत्रों के अस्थि चूर्ण को आप्लावित कर उन्हें स्वर्ग में पहुंचा देती है-
- दर्शनात्स्पर्शनात्पानात्तथा गंगेतिकीर्तिनात्।
- पुनाति पुण्यं पुरूषाशतशोऽथ सहस्रशः॥ -- अग्नि पुराण 110/6
- इस संसार में जो मनुष्य भगवती भागीरथी मां गंगा का दर्शन, स्पर्श, जलपान तथा गंगा इस नाम का उच्चारण करता है, वह मनुष्य अपने सैकड़ों हजारों पीढ़ियों को पवित्र कर देता है।
- जन्मजन्मार्जितं पापं स्वल्पं वा यदि वा बहु।
- गंगा देवी प्रसादेन सर्वं मे यास्यति क्षयम्॥ पद्मपुराण 9/30
- जन्म जन्मांतरों से अर्जित पाप चाहे अधिक हों या कम हों, भागीरथी माँ गंगा के प्रसाद से सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
- यत्र गंगा महाराज स देशस्तत् तपोवनम्।
- सिद्धिक्षेत्र च तज्ज्ञेयं गंगातीर समाश्रितम्॥ -- महाभारत वनपर्व 84/94
- जिस-जिस देश में गंगा नदी बहती है, वही उत्तम देश है और वही तपोवन है। गंगा नदी के समीप जितने भी स्थान हैं, उन सबको सिद्ध क्षेत्र समझना चाहिए।
- क्षितौ तारयते मर्त्त्यान् नागास्तारयतेऽप्यधः।
- दिवि तारयते देवास्तेन त्रिपथगा स्मृता॥ -- कूर्मपुराण पूर्वभाग-35/30
- गंगा पृथ्वी पर मनुष्यों को तारती है, पाताल में नागों को और स्वर्ग में देवों को तारती है। इसी के कारण इसको त्रिपथगा कहा जाता है।
वाल्मीकि रामायण में भी गंगा नदी के जल को परम पवित्र तथा समस्त प्राणियों के पाप का नाश करने वाला बताया गया है। जिसमे कहा गया है कि, विष्णु के चरणों से उत्पन्न, श्री शंकर के सिर पर विराजमान, तथा सम्पूर्ण पापों को हरने वाला गंगाजल मुझको पवित्र कर दे।
- गंगेतिनाम संस्मृत्य यस्तु कूपजलेऽपि च।
- करोतिमानवाः स्नानं गंगास्नानफलं लभेत॥ -- पद्मपुराण 7/11
- जो व्यक्ति मां गंगा के नाम का उच्चारण करते हुए कुएं के जल से स्नान करता है उसको गंगा नदी में स्नान करने वाले व्यक्ति के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।
- यावदस्थीनी गंगायां तिष्ठन्ति षुरूषस्य तु।
- तावद् वर्षसहस्राणि स्वर्गलोके महीयते॥ -- कूर्म पुराण 35/31
- मां गंगा सभी पापों को विनष्ट करने वाली तथा स्वर्ग लोक प्रदान करने वाली है । पुराणों के अनुसार जब तक पुरुष की हड्डियां गंगा में रहती हैं, उतने सहस्त्र वर्षों तक वह स्वर्ग में पूजित होता है।
- गंगा गंगेति यैर्नाम योजनानां शतेपि।
- स्थितैरुच्चारितं हन्ति पापं जन्मत्रयार्जितम्॥ -- विष्णुपुराण 2/8/121
- मोक्षदायनी माँ गंगा का नाम सौ योजन दूरी से भी उच्चारण किए जाने पर जीव के तीनों जन्मों के संचित पाप नष्ट हो जाते है।
- स्नातस्य सलिले यस्याः सद्यः पापं प्रणश्यति ।
- अपूर्वपुण्यप्राप्तिश्च सद्यो मैत्रेय जायते॥ विष्णुपुराण 2/8/16
- गंगा नदी जल में स्नान करने से शीघ्र ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अपूर्व पुण्य की प्राप्ति होती है।
- स्पर्शनं दर्शनाद्देव्याः पुण्यं दशगुनां ततः॥ -- देवीपुराण 10/27
- मनुष्यों द्वारा उपार्जित करोड़ों जन्मों के पाप गंगा की वायु स्पर्श मात्र से नष्ट हो जाते हैं। भगवती गंगा के दर्शन मात्र एवं स्पर्श करने से दस गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता है।
- श्वेतपंकजवर्णाभां गंगा पापप्रगाशिनीम्॥ -- देवीपुराण 9/12/1
- पतित पावनी मां गंगा का रंग श्वेत कमल के समान स्वच्छ है। यह उसी प्रकार समस्त पापों का उच्छेदन कर देती है।
- सुरधुनि मुनिकन्ये तारयेः पुण्यवन्तं स तरति निजपुण्यैस्तत्र किं ते महत्वम्।
- यदि च गतिहीनं तारयेः पापिनं मां तदपि तव मातर्यन्महत्वं महत्वम्॥ -- दारफ खान
- ओह! जाह्नु मुनि की पुत्री, सुरधुनी गंगा, आपकी महानता क्या होगी यदि आप पुण्यात्माओं को मोक्ष प्रदान करेंगी, जो अपने पुण्य के बल से ही तर जाते हैं?और यदि आप मुझे, जो कि एक गतिहीन (असहाय) पापी है, उसे तार दें तब आपके तारने का महत्व महत्व है।
- कीरति भनिति भूति भलि सोई। सुरसरि सम सबकँह हित होई॥ -- तुलसीदास, रामचरितमानस में
- कीर्ति, काव्य और ऐश्वर्य तो वही श्रेष्ठ है जिससे गंगा के समान हित हो।
- दर्शन से, स्पर्श से, जलपान करने तथा नाम कीर्तन से सैकड़ो तथा हजारो पापियों को गंगा पवित्र कर देती है। -- वेदव्यास
- ना मुझे यहाँ किसी ने भेजा है – ना मैं यहाँ आया हूँ – मुझे तो गंगा ने बुलाया है । -- नरेन्द्र मोदी
- गंगा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं करने जाता. गंगा के निकट पहुँच जाने पर अनायास, वह विश्वास पता नहीं कहाँ से आ जाता है। -- लक्ष्मीनारायण मिश्र
- भारत की तो गंगा प्राण है, शोभा है, वरंच सर्वस्व है। -- प्रतापनारायण मिश्र
- गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है और माता के समान कोई गुरू नहीं है। -- नारदपुराण
- नमामि गंगे ! तव पादपंकजं. सुरसुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् । भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम्. भावानुसारेण सदा नराणाम् ।। हे गंगाजी ! मैं देव व दैत्यों द्वारा पूजित आपके दिव्य पादपद्मों को प्रणाम करता हूँ. आप मनुष्यों को सदा उनके भावानुसार भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं…
- गंगा पर सुविचार जिस प्रकार देवताओं को अमृत, पितरों को स्वाधा तथा नागों को सुधा तृप्तिकारक है, उसी प्रकार मनुष्यों को गंगाजल तृप्तिकारक है। -- वेदव्यास
- गंगा की बात क्या करूँ गंगा उदास है, वह जूझ रही खुद से और बदहवास है…न अब वो रंगोरूप है न वो मिठास है, गंगाजली को जल नहीं गंगा के पास है। -- कैलाश गौतम
- तीर्थ तो केवल गंगा है, उसके अतिरिक्त नदियाँ तो निर्मल जल का समूह मात्र है. उसकी उत्पति साक्षात् विष्णु से हुई है अन्य बेचारे देवता तो स्वर्ग के है. जहाँ वह है, वही जनपद है, शेष तो मिट्टी मात्र हैं. उसको जा नित्य नमन करता है, वही विद्धान् हैं, अन्य तो बुद्धिशून्य हैं। -- अज्ञात
- गंगा के जल सशब्द तिर्यक् प्रवाह में स्नान करने वाले संसार-तापकृत हा-हा शब्द स अपरिचित, सुमेरूपतिपर्यन्त जाने में समर्थ, कुटिल इन्द्रियों के वश में न रहने वाले, पाप-रूपी कौओं को नष्ट करने वाले आप स्वर्ग को जाओगे तथा पृथ्वी की प्रदक्षिण करोंगे। -- अज्ञात
- और वह नदी ! वह लहराता हुआ नीला मैदान ! वह प्यासों की प्यास बुझाने वाली ! वह निराश की आशा ! वह वरदानों की देवी ! वह पवित्रता का स्त्रोत ! वह मुट्ठभर खाक को आश्रय देने वाली गंगा हँसती-मुस्कराती थी और उछलती थी। -- प्रेमचन्द
- गंगा तो विशेष कर भारत की नदी है, जनता की प्रिय है, जिससे लिपटी हुई हैं भारत की जातीय स्मृत्तियाँ, उसको आशाएँ और उसके भय, उसके विजयदान, उसकी विजय और पराजय ! गंगा तो भारत प्राचीन सभ्यता का प्रतीक रही है, निशानी रही है, सदा बलवती, सदा बहती, फिर वही गंगा की गंगा। -- जवाहरलाल नेहरू
- निस्सन्देह गंगा के तट पर, बहुत समय तक रहना और उसके व्यक्तित्व के जादू से प्रभावित न होना कठिन बात है। -- भगिनी निवेदिता