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कलियुग

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वर्तमान युग, कलियुग है। इसमें मानव स्वभाव की विभिन्न चिन्तकों ने भिन्न भिन्न तरह से विवेचना की है।

उक्तियाँ

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  • भैक्षव्रतपराः शूद्राः प्रव्रज्यालिङ्गिनोऽधमाः।
पाषण्ड संश्रयम् वृत्तिमाश्रयिष्यन्ति सत्कृताः ॥ -- विष्णुपुराण, ४-१-३७१
कलियुग में अधम शूद्रगण संन्‍यासाश्रम के चिह्न धारण कर भिक्षावृत्ति में तत्पर रहेंगे और लोगों से सम्मानित होकर पाषण्ड-वृत्ति का आश्रय ग्रहण करेंगे।
  • कलौ कल्मषचित्तानां पापद्रव्योपजीविनाम् ।
विधिक्रियाविहीनानां गतिर्गोविन्दकीर्तनम् ॥
In this Kali Yuga, where the mind is impure and the living is earned through sinful means and where living by prescribed rules is difficult, the only way to liberation is singing the Holy Name of God.
  • बालानां हितकामिनामतिमहापापैः पुरोपार्जितै-
र्माहात्म्यात्तमसः स्वयं कलिबलात् प्रायोगुणद्वेषिभिः।
न्यायोऽयं मलिनीकृतः कथमपि प्रक्षाल्य नेनीयते,
सम्यग्ज्ञानजलैर्वचोभिरमलं तत्रानुकम्पापरैः॥ -- आचार्य अकलंकदेव
अहो, आत्महिताभिलाषी जीवों के पूर्वोपार्जित महापाप कर्म के उदय से, अविद्या-अंधकार के माहात्म्य से और स्वयं कलियुग के प्रभाव से वर्तमान में गुणद्वेषी लोगों ने न्याय को मलिन कर दिया है। तथापि धन्य हैं वे अनुकम्पा-परायण आचार्य जो आज भी उसे किसी प्रकार सम्यग्ज्ञानरूपी जल से प्रक्षालित करते हुए आगे लिए चले जा रहे हैं।
  • सङ्घे शक्तिः कलौ युगे।
कलियुग में संगठन में ही शक्ति है।
  • कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड ।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इंधन अनल प्रचंड॥ -- रामचरितमानस
राम के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दंभ और पाखंड को जलाने के लिए वैसे ही हैं, जैसे ईंधन के लिए प्रचंड अग्नि।
  • कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ।
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ॥ -- रामचरितमानस (कलियुग वर्णन)
कलियुग के पापों ने सब धर्मों को ग्रस लिया, सद्ग्रन्थ लुप्त हो गए, दंभियों ने अपनी बुद्धि से कल्पना कर-करके बहुत-से पंथ प्रकट कर दिए।
  • मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥ -- रामचरितमानस (कलियुग वर्णन)
  • देखिअत चक्रबाक खग नाहीं। कलिहि पाइ जिमि धर्म पराहीं॥
ऊषर बरषइ तृन नहिं जामा। जिमि हरिजन हियँ उपज न कामा॥
भावार्थ:-चक्रवाक पक्षी दिखाई नहीं दे रहे हैं, जैसे कलियुग को पाकर धर्म भाग जाते हैं। ऊसर में वर्षा होती है, पर वहाँ घास तक नहीं उगती। जैसे हरिभक्त के हृदय में काम नहीं उत्पन्न होता॥
  • जो व्यक्ति दूसरों के विषय में सोचता है और स्वार्थ से बिल्कुल दूर है, वही व्यक्ति कलियुग में सफलता प्राप्त कर सकता है। -- विष्णु पुराण
  • कलियुग के चार प्रमुख लक्षण हैं, (1) महिलाओं के साथ अवैध संबंध, (2) पशु वध, (3) नशा, (4) सभी प्रकार के सट्टा जुआ। -- स्वामी प्रभुपाद
  • कलियुग में रहना है या सतयुग में यह तुम स्वयं चुनो, तुम्हारा युग तुम्हारे पास है। -- विनोबा भावे