केशव बलिराम हेडगेवार

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केशव बलिराम हेडगेवार ( 1 अप्रैल 1889 -- 21 जून 1940) भारत के स्वतन्त्रता सेनानी, समाज-संगठक एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक एवं प्रथम सरसंघचालक थे। उनके द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विश्व का सबसे बड़ा संघटन है।

उद्धरण[सम्पादन]

  • यदि हिन्दुस्तान हिन्दुओं का देश है तो इसके उद्धार की पूरी जिम्मेदारी हम हिन्दुओं के सिर पर है। अतः हम इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। यह आशा रखना व्यर्थ है कि बाहरी लोग जिन्हें इस देश से न भक्ति है न प्रेम, वे हमारी मदद करेंगे। जब हमें ही अपने देश को व्यवस्थित और संस्कृतिनिष्ठ रखना है तो संगगठन के सिवाय दूसरा कोई चारा नहीं है।
  • 'जीवो जीवस्य जीवनम्' यह प्रकृति का नियम है। अर्थात दुर्बल लोग सदैव बलवानों का भक्ष्य बनते हैं। संसार दुर्बलों के लिए गौरव से जीना असंभव है। उन्हें तो बलवानों का दास बनकर ही रहना पड़ता है। सदैव अपमानित तथा असहनीय कष्टों से परिपूर्ण जीवन ही उनके भाग्य में लिखा रहता है।
  • 'हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे परिवार का सुख है। हिंदू पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महा संकट है।
  • "हिंदू-मुस्लिम एकता" मात्र एक भ्रम है अर्थात् यह असंभव प्रतित होता हैं।
  • अगर मैं तो आपसे केवल यही कहना चाहता हूँ कि भविष्य के विषय में किसी तरह का संदेह ना रखते हुए आप नियमित रूप से शाखा में आया करें। संघ कार्य के प्रत्येक विभाग का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर उनमें निपुण बनने का प्रयास करें। बिना किसी व्यक्तियों की सहायता लिए , स्वतंत्र रीति से एक-दो संघ शाखाएं चला सकने की क्षमता प्राप्त करें।
  • अच्छे संस्कारों के बिना देशभक्ति की भावना पैदा नहीं हो सकती हैं।
  • अतीत काल में हम बहुत बलवान थे, परन्तु इस सत्य को आज हम भूल गए हैं इसलिए आज के हमारे सारे आन्दोलन दुर्बलतापूर्ण दिखाई देते हैं। हमारे आज के आंदोलनों में ना चैतन्य है और ना पुरुषार्थ ही है।
  • अनुशासन अपने संगठन की नींव है, इसी पर हमें विशाल इमारत को खड़ा करना है। किसी भी भूल से यदि नींव ज़रा सी भी कच्ची रह गई, तो इमारत का उस ओर का भाग ढल जाएगा। इमारत में दरार पड़ जाएगी, और आखिर में वह संपूर्ण इमारत ढ़ह जाएगी।
  • अपने देश का नहीं हो सकता हैं, वह किसी का नहीं हो सकता हैं।
  • अपने निजी मान सम्मान की शुद्र भावनाओं को त्यागकर, हमें प्रेम तथा नम्रता के साथ अपने समाज को सभी भाइयों के पास पहुंचाना होगा।
  • अपने समाज में संगठन निर्माण कर उसे बलवान तथा अजेय बनाने के अतिरिक्त हमें और कुछ नहीं करना है। इतना कर देने पर सारा काम आप ही आप बन जाएगा। हमें आज सताने वाली सारी राजनैतिक , सामाजिक और आर्थिक समस्याएं आसानी से हल हो जाएगी।
  • अपने समाज में संगठन निर्माण कर उसे बलवान तथा अजेय बनाने के अतिरिक्त, हमें और कुछ नहीं करना है। इतना कर देने पर सारा काम अपने आप ही हो जाएगा। हमें आज सताने वाली सारी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं आसानी से हल हो जाएंगी।
  • अपने हिंदू समाज को बलशाली और संगठित करने के लिए ही, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन्म लिया है।
  • आगामी 100 सालों अर्थात 2025 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का लक्ष्य तय किया।
  • आप इस भ्रम में ना रहें कि लोग हमारी ओर नहीं देखते। वे हमारे कार्य तथा हमारे व्यक्तिगत आचरण की ओर आलोचनात्मक दृष्टि से देखा करते हैं।
  • आप यह अच्छी तरह याद रखें कि हमारा निश्चय और स्पष्ट ध्येय ही हमारी प्रगति का मूल कारण है। संघ के आरंभ से हम , हमारी भावनाएं ध्येय से , समरस हो गई है , हम कार्य से एक रूप हो गए हैं।
  • आपस के सारे कृत्रिम ऊपरी भेद मिटा कर सम्पूर्ण समाज एकत्व और प्रेम की भावना से तथा हिन्दू जाति को गंगा के हम सब हिन्दू की ओर टेढ़ी नजर से नहीं देख सकेगी।
  • आसेतु हिमाचल, अखिल भारतवर्ष हमारी कार्य भूमि है। हमारा दृष्टिकोण विशाल होना चाहिए। हमें ऐसा लगना चाहिए कि समूचे भारतवर्ष हमारा घर है। हम किस सीमा तक और कौन सा कार्य कर सकते हैं। यह पहले निश्चित कर उसके अनुसार हम अपने जीवन का आयोजन करें और प्रतिज्ञा पूर्वक उस कार्य को पूरा करके ही रहे।
  • इस समाज को जागृत एवं सुसंगठित करना ही, राष्ट्र का जागरण एवं संगठन है। यही राष्ट्रधर्म है।
  • कच्ची नींव पर खड़ी की गई इमारत प्रारंभ से भले ही सुंदर या सुघड़ प्रतीत होती होगी , परंतु बवंडर के पहले ही झोंके के साथ , वह भूमिसात हुए बिना खड़ी करना हो उतनी ही उसकी नींव विस्तृत और ठोस होनी चाहिए।
  • कार्य करते–करते कभी भ्रम हो जाता है कि चारों ओर के कोलाहल में मेरी छीन वाणी कौन सुनेगा ? यह धारणा व्यर्थ है , सब सुनेंगे और अवश्य सुनेंगे। यदि मेरे शब्दों के पीछे त्याग और चरित्र है , तो लोग सिर झुका कर सुनेंगे। यह आत्मविश्वास कार्यकर्ता में होना चाहिए। ” सारा हिंदू समाज हमारा कार्यक्षेत्र है , हम सभी हिंदुओं को अपनावे। अपनी निजी मान – अपमान की शुद्र भावनाओं को त्याग कर हमें प्रेम तथा नम्रता के साथ अपने समाज को सब भाइयों के पास पहुंचाना होगा कौन सा पत्थर हृदय हिंदू है ,जो तुम्हारे मृदुता तथा नम्रता पूर्ण शब्दों को सुनना इंकार कर देगा।
  • किसी भी आंदोलन में साधारण जनता कार्यकर्ता के कार्य का इतना ख्याल नहीं करती जितना कि उसके व्यक्तिगत चरित्र ढूंढने से भी दोष या कलंक के छींटे तक ना मिले।
  • किसी भी राष्ट्र के सार्वभौमिकता आधार, उस राष्ट्र की संस्कृति है, और इसीलिए भारत हिंदू राष्ट्र है।
  • कुछ लोगों को स्वधर्म के संरक्षण में दूसरों का धर्म विद्वेष दिखता है, किंतु अपने धर्म के संरक्षण में दूसरे के धर्म का विरोध कैसे हो सकता है!
  • केवल हम संघ के स्वयंसेवक हैं, और इतने वर्ष में संघ ने ऐसा कार्य किया है, इसी बात में आनंद तथा अभिमान करते हुए, आलस्य के दिन काटना केवल पागलपन नहीं, अपितु कार्य नाशक भी है।
  • चरित्र निष्कलंक होने के कारण , अनजाने में भी हममें यह दुर्भावना छू तक नहीं आनी चाहिए कि , हम कुछ विशेष हैं तथा औरों से श्रेष्ठ हैं। किसी भी दशा में , स्वप्न में भी ऐसा ना मालूम पड़े कि , हम अन्य लोगों से कहीं अच्छे हैं। मुझे विश्वास है कि हममें , ऐसा अहंभाव रचने वाला कोई नहीं है। किंतु यदि कोई ऐसा हो जो सोचता हो कि मैं बहुत कार्य कर रहा हूं इसलिए औरों से कुछ श्रेष्ठ हूं , और इसी नाते दूसरों को नीचा तथा तुच्छ दृष्टि से देखने का अधिकारी हूं , तो मैं उसे यह परामर्श दूंगा कि वह ऐसे रिता अभिमान को सत्वर निकाल बाहर फेंके।
  • चारों ओर कोलाहल में, क्षीण वाणी को लोग अवश्य सुन सकते हैं, पर तभी जब शब्दों के पीछे त्याग और चरित्र हो तो लोग सिर झुकाकर अवश्य सुनेंगे।
  • छोटे-छोटे सामाजिक भेदभाव को मिटाकर हिंदू समाज में एकता लानी होगी ताकि कोई भी हमारे ऊपर गलत नजर नहीं डाल सके।
  • जब तक हम दुर्बल रहेंगे तब तक हम पर आक्रमण करने के लिए बलवानों का मन अवश्य ही ललचाता रहेगा। यह तो निसर्ग नियम ही है। केवल बलवानों को गालियां देने से अथवा उनकी निंदा करने से क्या लाभ होगा ऐसा करने मात्र से परिस्थितियां बदल नहीं सकती।
  • जिस ध्वज को देखते ही, मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज, हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
  • जीवन में नि:स्वार्थ भावना आये बिना खरा अनुशासन निर्माण नहीं होता।
  • जैसे हमारे विचार वैसा ही हमारा आचरण बनता है।
  • ताकत संगठन से आती है, इसीलिए हर हिंदू का कर्तव्य है कि वह हिंदू समाज को मजबूत बनाने के लिए हर संभव कोशिश करे।
  • देश की एकता और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए सामाजिक एकता होना बहुत जरूरी है।
  • ध्येय पर अविचल दृष्टि रख कर मार्ग में मखमली बिछौने हों या कांटे बिखरे हों, उनकी चिंता न करते हुए निरंतर आगे ही बढने के दृढ निश्चय वाले कृतिशील तरुण खड़े करने पड़ेंगे।
  • निर्दोष कार्य करने हेतु , शुद्ध चरित्र के साथ – साथ आकर्षकता और बुद्धिमता का मणिकांचन योग भी साधना चाहिए सच्चरित्र , आकर्षकता और चातुर्य इन तीनों के त्रिवेणी संगम से ही संघ का उत्कर्ष होता है। चरित्र के रहते हुए भी चतुराई के अभाव में संघ कार्य हो नहीं सकता। संघ कार्य सुचारू रूप से चलने के लिए हमें लोक संग्रह के तत्वों को भली-भांति समझ लेना होगा।
  • पूर्ण प्रभावी संस्कार किये बिना देशभक्ति का स्थायी स्वरूप निर्माण होना संभव नहीं है तथा इस प्रकार की स्थिति का निर्माण होने तक सामाजिक व्यवहार में प्रमाणिकता भी संभव नहीं।
  • प्रत्येक अधिकारी तथा शिक्षक को सोचना चाहिए कि उसका बर्ताव कैसा रहे और स्वयंसेवकों को कैसे तैयार किया जाए स्वयंसेवकों को पूर्णता संगठन के साथ एकरूप बनाकर उनमें से प्रत्येक के मन में यह विचार भर देना चाहिए कि मैं स्वयं ही संग हूं प्रत्येक व्यक्ति की आंखों के सामने का एक ही तारा सदा जगमगाता रहे उस पर उसकी दृष्टि तथा मन पूर्णता केंद्रित हो जाए।
  • प्रत्येक अधिकारी व शिक्षक को प्रत्येक के मन में यह विचार भर देना चाहिए कि मैं स्वयं ही संघ हूं।
  • प्रत्येक व्यक्ति को उत्साह और हिम्मत से आगे आना चाहिए, और संघ कार्यों में जुट जाना चाहिए।
  • प्रत्येक व्यक्ति को, अपने चरित्र पर विचार करना चाहिए। अपने चरित्र को कभी भी कमजोर व क्षीण ना होने दें।
  • बिना कष्ट उठाए और बिना स्वार्थ त्याग किए, हमें कुछ भी फल मिलना असंभव है।
  • बोलते–चलते, आचार–व्यवहार करते, तथा प्रत्येक कार्य करते समय हम सावधान रहे कि हमारी किसी भी कृति के कारण संघ के ध्येय तथा कार्य को कोई क्षति न पंहुचे।
  • भगवा ध्वज को हम अपने गुरु स्थान पर मानते हैं, उसे देखते ही मन में एक विशिष्ट स्फूर्ति और उमंग हिलोरे मारने लगे, ऐसा भगवा ध्वज जो हमारी राष्ट्रीयता का प्रतीक है।
  • भला हो जिससे देश का, वह काम करते चलो।
  • भारतवर्ष, भारतखण्ड, आर्यावर्त, हिन्दुस्थान आदि नामों के द्वारा एक ही अर्थ प्रकट होता है परन्तु उस अर्थ की कल्पना मात्र से हम अकारण हड़बड़ में आ जाते हैं। बंधन में जकड़े हुए तोते जैसे हमारी अवस्था हो रही है। हम भ्रम के भंवर में फंसकर गोते खा रहे हैं। हमारी संस्कृति को नष्ट–भ्रष्ट करने पर जो लोग तुले हुए हैं उन्हें गले लगाने के लिए हम मरे जा रहे हैं। यह सारा हमारी मानसिक दुर्बलता का परिणाम है।
  • भावना के वेग तथा जवानी के जोश में कई तरुण खड़े हो जाते हैं, परन्तु दमन चक्र प्रारंभ होते ही वे मुंह मोड़ कर सदा के लिए सामाजिक क्षेत्रों से दूर हट जाते हैं. ऐसे लोगों के भरोसे देश की विकट तथा उलझी समस्याएँ कैसे सुलझ सकेगी?
  • भावनाओं में बहकर या आवेश में आकर कई लोग सामाजिक हितों के लिए खड़े हो जाते हैं लेकिन समस्या आते ही वह पीछे हट जाते हैं. ऐसे लोगों के सहारे देश की विकट समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता है।
  • मेरी अटल श्रद्धा हो गई है कि , हम पर भगवान की कृपा सदा बनी रहे और आगे भी बनी रहेगी क्योंकि भगवान हमारे हृदय के भावों को ठीक-ठीक जानते हैं हमारा हृदय पवित्र और शुद्ध है हमारे मन में पाप का लेस भी नहीं है।
  • यदि आप कहेंगे कि हम तो अलग रहेंगे खड़े देखते रहेंगे तो उससे कुछ लाभ नहीं , यह संघ तो सब हिंदुओं का है तब फिर सब हिंदुओं को इसमें सम्मिलित हो जाना चाहिए।
  • यदि आप स्वयं को संघ का कार्यकर्ता समझते हैं तो पहले आपको सोचना होगा कि, आप हर दिन और हर माह कौन से कार्य कर रहे हैं। अपने किए हुए कार्य की , आपको सदैव जांच-पड़ताल करते रहना चाहिए। केवल हम संघ के स्वयंसेवक हैं , और इतने वर्ष में संघ ने ऐसा कार्य किया है , इसी बात में आनंद तथा अभिमान मानते हुए , आलस्य में दिन काटना , गिरा पागलपन ही नहीं , अपितु कार्यनासक भी है।
  • यदि प्रौढ़ लोग अपने प्रतिष्ठा और व्यवहार कुशलता का उपयोग संघ कार्य किए तो करें, तो युवा अधिक उत्साह से कार्य कर सकेंगे।
  • यह खूब समझ लो कि बिना कष्ट उठाए और बिना स्वार्थ त्याग किए हमें कुछ भी फल मिलना असंभव है। मैंने स्वार्थ त्याग शब्द और उपयोग किया है परंतु उनमें जो कार्य करना है , वह हमारी हिंदू जाति के स्वार्थ पूर्ति के लिए है। अतः उसी में हमारा व्यक्तिगत स्वार्थ भी अनारभूत है। फिर हमारे लिए भला दूसरा कौन सा स्वार्थ बचता है यदि इस प्रकार यह कार्य हमारे स्वार्थ का ही है , तो फिर उसके लिए हमें जो भी कष्ट उठाने पड़ेंगे उसे हम स्वार्थ त्याग कैसे कह कैसे कह सकेंगे ? वास्तव में यह स्वार्थ त्याग हो ही नहीं सकता। हमें केवल अपने स्व का अर्थ विशाल करना है। अपने स्वार्थ को हिंदू राष्ट्र के स्वार्थ से हम एक रूप कर दें।
  • युवा पीढ़ी में डाले गए संस्कार ही एक अच्छे राष्ट्र का निर्माण करते हैं।
  • राष्ट्र रक्षा के समान कोई पुण्य नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई व्रत नहीं, राष्ट्र रक्षा के समान कोई यज्ञ नहीं - अतः राष्ट्र रक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।
  • राष्ट्र सेवा सर्वोपरि है।
  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खूब सोच समझ कर अपना कार्य क्षेत्र निर्धारित किया है और इसलिए वह अन्य किसी कार्य के झमेले में नहीं पड़ना चाहता है। इस पर दृष्टि रखते हुए हमें अपने निश्चित मार्ग पर अग्रसर होना है।
  • लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर रास्ते में आने वाली सुख सुविधा और कठिनाइयों की चिंता किए बिना जो दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ सके ऐसी तरुण (युवा) पीढ़ी को खड़ी करनी होगी।
  • लोकतंत्र सिर्फ़ भाषणों में नहीं बल्कि समर्थन करने वाले लोगों के व्यवहार में समाहित हैं।
  • वयोवृद्ध लोगों को तो संघ कार्य में काफी महत्व का स्थान है। वे संघ में महत्वपूर्ण कार्य का दायित्व उठा सकते हैं। यदि प्रौढ़ लोग अपनी प्रतिष्ठा तथा व्यवहार कुशलता का उपयोग संघ कार्य के हेतु करें तो युवजन अधिकाधिक उत्साह से कार्य कर सकेंगे। बड़ों के मार्गदर्शन से युवकों की शक्ति कई गुना बढ़ती है और तब संघ कार्य अपने निश्चित ध्येय कि और द्रुतगति से बढ़ता चला जाता है। इसलिए किसी भी संघ के प्रति उदासीनता नहीं रखनी चाहिए प्रत्येक को उत्साह तथा हिम्मत से आगे आना चाहिए कार्य में जुट जाना चाहिए।
  • शक्ति केवल सेना या शास्त्रों में नहीं होती, बल्कि सेना का निर्माण जिस समाज से होता है, वह समाज जितना राष्ट्र प्रेमी, नीतिवान और चरित्रवान संपन्न होगा, उतनी मात्रा में वह शक्तिमान होगा।
  • शतक बीत गए। हम पर विदेशी आक्रमणों का तांता लगातार क्यों लगा हुआ है? हम दिन दुर्बल तथा मातृप्राय हो गए हैं इसलिए ना? हमारी सब विपत्तियों की जड़ में हमारी शक्तिहीनता ही है। उसे हमें सर्वप्रथम उखाड़ फेंकना होगा।
  • संघ का कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें लोक संग्रह के तत्वों को भली भांति समझ लेना होगा।
  • संघ का ध्येय धर्म, समाज तथा संस्कृति का संरक्षण है।
  • संघ का लक्ष्य भारत राष्ट्र को पुनः परम वैभव तक ले जाना है।
  • संघ केवल स्वयं सेवकों के लिए नहीं , संघ के बाहर जो लोग हैं , उनके लिए भी है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि उन लोगों को हम राष्ट्र के उद्धार का सच्चा मार्ग बताएं। और यह मार्ग है , केवल संगठन का।
  • संघ केवल स्वयंसेवकों के लिए नहीं, बल्कि संघ के बाहर जो लोग हैं, उनके लिए भी है। हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि उन लोगों को हम राष्ट्र के उद्धार का सच्चा मार्ग बताएं।
  • संघ हिंदू समाज की अखंडता और अक्षुण्णता को जीवित रखने के लिए कार्य करने का लक्ष्य रखता है।
  • सच्चरित्र, आकर्षकता और चातुर्य इन तीनों के त्रिवेणी संगम से ही, संघ का उत्कर्ष होता है। चरित्र के रहते हुए भी चतुराई के अभाव में संघ का कार्य नहीं हो सकता।
  • सभी हिंदुओं को संघ में सम्मिलित होना चाहिए। अलग खड़े रहकर देखते रहने से कुछ भी लाभ नहीं होगा।
  • समरसता के बिना, समता स्थायी नहीं हो सकती, और दोनों के अभाव में राष्ट्रीयता की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
  • सारा हिंदू समाज हमारा कार्य क्षेत्र है। हम सभी हिंदुओं को अपनाएं। कौन सा पत्थर हृदय हिंदू होगा, जो तुम्हारे मृदुल और नम्रता पूर्ण शब्दों को सुनकर इंकार कर देगा।
  • स्वयं अब जागकर हमको अपना जगाना देश है।
  • हम किसी पर आक्रमण करने नहीं चले हैं। पर इस बात के लिए हमे सदैव सतर्क तथा सचेत रहना होगा कि हम पर भी कोई आक्रमण न करे।
  • हम लोगों को हमेशा सोचना चाहिए कि जिस कार्य को करने का हमने प्रण किया है और जो उद्देश्य हमारे सामने है , उसे प्राप्त करने के लिए हम कितना काम कर रहे हैं। जिस गति से तथा जिस प्रमाण से हम अपने कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं , क्या वह गति या प्रमाण हमारी कार्य सिद्धि के लिए पर्याप्त है ? “
  • हममें रात दिन केवल इसी बात का विचार बना रहे कि हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण इस पवित्र कार्य के लिए किस प्रकार खर्च हो सकेगा , साथ ही साथ हमें अपने विचारों के अनुरूप आचरण करना भी सीखना चाहिए हमें सतत इसी बात की लगन लगी रहनी चाहिए कि हमारा संगठन प्रतिक्षण किस प्रकार बढे ।
  • हमारा कार्य अखिल हिंदू समाज के लिए होने के कारण, उसके किसी भी अंग की उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा। सभी हिंदू भाइयों के साथ, फिर वह किसी भी उच्च या नीच श्रेणी के समझे जाते हों, हमारा बर्ताव हर एक से प्रेम का होना चाहिए। किसी भी हिंदू भाई को नीच समझकर उसे दुत्कारना पाप है।
  • हमारा धर्म तथा संस्कृति कितनी ही श्रेष्ठ क्यों न हो , जब तक उनकी रक्षा के लिए हमारे पास आवश्यक शक्ति नहीं है , उनका कुछ भी महत्व नहीं।
  • हमारा निश्चय और स्पष्ट ध्येय ही, हमारी प्रगति का मूल कारण है।
  • हमारा विश्वास है कि भगवान हमारे साथ है। हमारा काम किसी पर आक्रमण करना नहीं है , अपितु अपनी शक्ति और संगठन का है। हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के लिए हमे यह पवित्र कार्य करना चाहिए और अपनी उज्जवल संस्कृति की रक्षा कर उसकी वृद्धि करनी चाहिए। तब ही आज की दुनिया में हमारा समाज टिक सकेगा।
  • हमारी सारी अवनति की जड़ है, हमारी मानसिक दुर्बलता। इस दुर्बलता को हम सर्वप्रथम नष्ट करें।
  • हमें अपने नित्य के व्यवहार भी ध्येय पर दृष्टि रखकर ही करने चाहिए प्रत्येक को अपना चरित्र कैसा रहे इसका विचार करना चाहिए अपने चरित्र में किसी भी प्रकार की त्रुटि ना रहे।
  • हमें केवल अपने कार्य में व्यक्तिगत चाल-चलन की दृष्टि से सावधानी नहीं बरतनी चाहिए, बल्कि सामूहिक व सार्वजनिक जीवन में भी इसका ध्यान रखना चाहिए‌।
  • हिंदुत्व के हित की रक्षा के लिए, युवाओं की सोच को बदलना संघ का परम लक्ष्य है।
  • हिंदुस्तान के साथ जिस के सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारत माता कहकर अति पवित्र दृष्टि से देखता है, तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नहीं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एक सूत्र में गूंथा हुआ हिंदू समाज ही, यहां का राष्ट्रीय समाज है।
  • हिंदुस्तान पर प्रेम करने वाले हर एक हिंदू से हमारा व्यवहार भाई जैसा ही होना चाहिए। लोग कैसा व्यवहार करते हैं , और क्या बोलते हैं इसका कोई महत्व नहीं है । हमारा बर्ताव अगर आदर्श हो तो , हमारे सारे हिंदू भाई हमारी और ठीक रूप से आकर्षित होंगे। ” हमारा कार्य अखिल हिंदू समाज के लिए होने के कारण उसके किसी भी अंग की उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा। सभी हिंदू भाइयों के साथ फिर वह किसी भी उच्च या नीच श्रेणी के समझे जाते हो हमारा बर्ताव हर एक से प्रेम का होना चाहिए। किसी भी हिंदू भाई को नीच समझ कर उसे दुत्कारना पाप है।
  • हिंदुस्तान पर प्रेम करने वाले हर हिंदू से हमारा व्यवहार भाई जैसा ही होना चाहिए। यदि हमारा व्यवहार आदर्श होगा, तो सभी हमारी ओर आकर्षित होंगे।
  • हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है, ऐसी आत्मीयता हर हिंदू के रोम-रोम में व्याप्त होनी चाहिए। यही संघ का मूल मंत्र है।
  • हिंदू धर्म और संस्कृति के लिए, हमें शक्ति और संगठन का कार्य करना चाहिए, और अपनी उज्जवल संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए।
  • हिंदू समाज की तरुण पीढ़ी (बाल्यावस्था) में संस्कार डालने चाहिए।
  • हिंदू समाज को संगठित और जागृत करना ही राष्ट्र जागृति हैं, यह राष्ट्र हित में कार्य हैं।
  • हिंदू समाज में तरुण पीढ़ी को हाथ में लेकर, उसके ऊपर संस्कार डालने चाहिए।
  • हिंदू समाज ही यहां का राष्ट्रीय समाज हैं क्योंकि हिंदुस्तान के साथ इनका हित जुड़ा हुआ है, यह समाज देश को भारतमाता कहकर संबोधित करता है और अपने देश को को सब कुछ मानता है।
  • हिंदू संस्कृति हिंदुस्तान की धड़कन है, अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है, तो पहले हिंदू संस्कृति को संवारना होगा।
  • हिन्दुस्थान के साथ जिसके सारे हित संबंध जुड़े हैं, जो इस देश को भारतमाता कह कर अति पवित्र दृष्टि से देखता है तथा जिसका देश के बाहर कोई अन्य आधार नहीं है, ऐसा महान धर्म और संस्कृति से एकसूत्र में गुंथा हुआ हिन्दू समाज ही यहाँ का राष्ट्रीय समाज है।
  • हिन्दू-मुसलमानों की एकता की कल्पना भ्रम मात्र है।

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