कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी

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सन १९८८ के एक डाक टिकट पर मुंशी जी का चित्र

कन्हैयालाल मणिकलाल मुंशी (३० दिसंबर सन १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) आधुनिक भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, शिक्षाविद्, वकील एवं सहित्यकार थे। उन्होंने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की थी और सोमनाथ मंदिर के पुनर्निमाण में भी भूमिका निभाई थी।

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी का जन्म 30 दिसंबर सन 1887 को गुजरात के भरूच में हुआ था। एक छात्र के रुप में वह बहुत प्रतिभाशाली थे और उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए बड़ौदा कॉलेज में प्रवेश ले लिया था। यहां उनके एक शिक्षक श्री अरविन्द घोष भी थे, जो क्रांतिकारी थे जिनसे प्रभावित होकर वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए थे।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • लोगों में स्वराज की भूख है। ये भूख उस स्तर तक बढ़ रही है, जहाँ जनता को सन्तोष से वंचित नहीं रखा जा सकता। ये भूख केवल भावना नहीं है, यहां तक कि, ये उन लोगों का भी काम नहीं है जिन्हें उस समय खतरनाक आन्दोलनकारी कहा जाता था। ये दरअसल अंग्रेज़ों का काम था। वे यहां 175 साल पहले आए थे। उन्होंने यहां अपने हितों के लिए हुकूमत की और देश पर नियंत्रण किया। उन्होंने देश के उद्योगों को नष्ट किया, सब कुछ अपने भले के लिए किया, विकास नहीं होने दिया, लोगों को कुपोषण का शिकार बनाया और लोगों को पिछड़ा बनाए रखा। -- अपनी पुस्तक “द रुइन्स देट ब्रिटैन रॉट (1946)” में
  • भारत के हमारे अधिकतर इतिहास में परिपेक्ष का अभाव है। ये इतिहास कुछ घटनाओं और काल से संबंधित हैं। ये इतिहास भारतीय दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि कुछ सूत्रों के हवाले से लिखा गया है, जो पक्षपाती हैं और जो मूल स्वभाव में भारत के विरुद्ध हैं। इन घटनाओं और काल का वर्णन बहुत असंगत और विस्तृत है जिसका उस काल पर विकृत प्रभाव पड़ता है। -- “अखण्ड हिंदुस्तान” (1942)
  • अपवित्र किए जाने, जलाए जाने और तोड़े जाने के बावजूद ये अब भी मज़बूती से खड़ा था- हमारे अपमान और अकृतज्ञता का एक स्मारक। मुझे शायद ही कभी इतनी शर्म मेहसूस हुई होगी, जितनी उस सुबह हुई जब मैं कभी पवित्र रहे सभा मंडप के टूटे फ़र्श पर चला, फर्श पर टूटे स्तम्भ और पत्थर बिखरे पड़े थे। छिपकलियां अपने बिलों से आ जा रहीं थीं और मेरे अपरिचित कदमों की आवाज, और आह! इसकी शर्म! - वहां बंधा एक इंस्पेक्टर का घोड़ा अपवित्र अशिष्टता के साथ मेरे आगमन से हिनगिनाने लगा। -- सोमनाथ मन्दिर के बारे में
  • भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं है। वह चिन्तन का एक सतत प्रवाह है।
  • मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि भारत का सामूहिक अवचेतन मन इस योजना से खुश है कि सोमनाथ का पुनर्निर्माण भारत सरकार प्रायोजित होने जा रहा है... मैं हिंदुत्व से जुड़ी कुछ दकियानूसी बातों को नकारता रहा हूं और इसके कुछ पहलुओं को अपने लेखन व काम से आकार देता रहा हूँ। मुझे विश्वास है कि इस कदम से भारत आधुनिक स्थितियों में काफी एडवांस देश के रूप में उभरेगा। -- सोमनाथ मन्दिर के निर्माण से सम्बन्धित नेहरू के आशंकाओं और बयानों के उत्तर में