सामग्री पर जाएँ

अनर्थ

विकिसूक्ति से
  • यौवनं धनसंपत्तिः प्रभुत्वमविवेकिता ।
एकैकमप्यनर्थाय किमु यत्र चतुष्टयम्॥ -- हितोपदेश
यौवन, धन-सम्पत्ति, प्रभुता, अविवेकिता - ये अनर्थ के लिये अकेले ही पर्याप्त हैं, जहाँ (जिसमें) ये चारों इकट्ठे हो जाँय वहाँ क्या होगा?
  • छिद्रेष्वनर्थाः बहुली भवन्ति।
छेदों में अनेक अनर्थ होते हैं।
  • अनर्थ अवसर की ताक में रहते हैं। -- कालिदास
  • मृगयाक्षो दिवास्वप्नः परिवादः स्त्रियो मदः ।
तौर्यत्रिकं वृथाट्या च कामजो दशको गणः ॥ -- मनुस्मृति
मृगया (शिकार खेलना), अक्ष (चोपड़ खेलना, जूआ खेलना आदि), दिन में सोना, काम कथा वा दूसरे की निन्दा किया करना, स्त्रियों का अति संग, मादक द्रव्य (अफीम, भांग, गांजा आदि) का सेवन, गाना-बजाना, नाचना व नाच कराना सुनना और देखना (ये तीन बातें), इधर-उधर घूमते रहना -- ये दश कामोत्मन्न व्यसन हैं।

इन्हें भी देखें

[सम्पादन]