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  • दिया जहाँ उनकी मृत्यु हुई। लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में बुलबुल को पासबाँ से न सैयाद से गिला क़िस्मत में क़ैद लिखी...
    २ KB (१६६ शब्द) - १०:२९, ११ मई २०२२
  • शुतुरमुर्ग परी नाम है मेरा ।। फन्दे से मेरे कोई निकले नहीं पाता। इस गुलशने आलम में बिछा दाम है मेरा ।। दो चार टके ही पै कभी रात गँवा दूँ। कारूँ का खजाना...
    ७ KB (६१२ शब्द) - ००:३३, १३ मार्च २०१४
  • शब्दों का व्यवहार किया है। बिहारी की भाषा इस दोष से भी बहुत कुछ मुक्त है। आलम ये प्रेमोन्मत्त कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार रचना करते थे। शृंगार रस की...
    ५६ KB (४,१५४ शब्द) - १७:०८, ५ दिसम्बर २०२२
  • छीन । -- आलम नेहीं महा ब्रजभाषा प्रवीन और सुंदरतानि के भेद को जानै । -- ब्रजनाथ एक सुभान कै आनन पै करबान जहाँ लगि रूप जहाँ को । -- बोधा आलम नेवाज सिरताज...
    ८७ KB (६,२०८ शब्द) - १८:३३, ५ दिसम्बर २०२२