स्वामी रामतीर्थ

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स्वामी रामतीर्थ भारत के महान सन्त, देशभक्त, कवि और शिक्षक थे।

विचार[सम्पादन]

  • ‘निष्काम कर्म’ ईश्वर को भी ऋणी बना देता है और ईश्वर उसको ब्याज सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है।
  • "नहीं" कहने से तुम्हारे चरित्र की शक्ति प्रकट होती है।
  • अपना आदर स्वयं करो तभी सब आपका आदर करेंगे।
  • अपने काम को चाँद, तारों और सूरज की तरह निःस्वार्थ बनाओ, तभी सफलता मिलेगी।
  • अपने प्रति सच्चे बनिये और संसार की एनी किसी बात पर ध्यान मत दीजिए।
  • आत्म साक्षात्कार मेँ बाधक बनने वाली प्यारी चीज को भी तुरंत हटा देना चाहिए।
  • निराशा निर्बलता का चिन्ह है।
  • आलस्‍य मृत्‍यु के समान है, और केवल उद्यम ही आपका जीवन है।
  • इच्छाएं सांप के जहरीले दांत के समान होती हैं।
  • इच्छाओं से ऊपर उठ जाओ वह पूरी हो जाएगी और मांगोगे उनकी पूर्ति तुमसे और दूर जा पड़ेगी ।
  • इच्छामात्र प्रेम है और प्रेम ही ईश्वर है और वही ईश्वर तुम हो।
  • उन विषयों को पढना जो हमारे जीवन में कभी काम नहीं आते, शिक्षा नहीं है।
  • उस आजादी को खत्म कर देना चाहिए, जो पाप की गुलामी कर रहा हो।
  • उसकी इन्सान का मन पवित्र नहीं है उसकी कभी जय नहीँ हो सकती है।
  • उसकी जय कभी नहीं हो सकती जिसका मन पवित्र नहीं है ।
  • किसी काम को करने से पहले इसे करने की दृढ़ इच्छा अपने मन में कर लें और सारी मानसिक शक्तियों को उस ओर झुका दें। इससे आपको अधिक सफलता प्राप्त होगी।
  • किसी देश की शांति छोटे विचारों के बड़े आदमियों से नहीं अपितु बड़े विचारों के छोटे आदमियों से बढ़ती है।
  • किसी भी मत, धर्म या पंथ को जो आजकल की वैज्ञानिक गवेषणा के स्वस्थ और कल्याणकारी परिणामों से मेल नहीं खाता, कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने अंधे भक्तों पर जबरदस्ती करे या या उन्हें अपना शिकार बनाए।
  • केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब ज़रूरतों से परे कर सकता है।
  • कोई चीज कितनी भी प्यारी क्योँ न हो अगर वह आत्म साक्षात्कार मेँ बाधक हो तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए ।
  • घोर कर्म ही विश्राम है।
  • चिंताएं, परेशानियां, दुःख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से नहीं दूर हो सकतीं, वे दूर होंगी अपनी अंदरूनी कमजोरी दूर करने से जिसके कारण ही वे सचमुच पैदा हुईं है।
  • जब आदमी उत्तम काम करने लगता है तो उससे धरती के काम दूसरी संभालते हैँ ।
  • जब तक आप दूसरों के अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने की आदत को दूर नहीं कर लेते तब तक आप ईश्‍वर का साक्षात नहीं कर सकते।
  • जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होते, तब तक यदि इस संसार में करोड़ों ईसा, मुहम्मद, बुद्ध या राम जन्म लें तो भी तुम्हारा उद्धार नहीं हो सकता।
  • जब तक तुम्‍हारें अन्‍दर दूसरों के, अवगुण ढुंढने या उनके दोष देखने, की आदत मौजूद है ईश्‍वर का साक्षात, करना अत्‍यंत मुश्किल है।
  • जिस इंसान का मन पवित्र नहीं है उसकी कभी भी जय जय कार नहीं हो सकती है।
  • जिस समय दुनिया के सभी लोग तुम्हारी प्रशंसा करेंगे तो वह समय तुम्हारे रोने का होगा।
  • जिसे निज गौरव का भान रहता है वह किसी चीज को मुफ्त पा जाने की बनिस्बत उसे अपने पौरुष से प्राप्त करता है ।
  • जो आज़ादी पाप की गुलामी कर रही हो, उस आजादी को खत्म कर देना चाहिए।
  • तुम समाज से जुड़े हुए हो ! तुम समाज के साथ ही ऊपर उठ सकते हो और समाज के साथ ही तुम्हें नीचे गिरना होगा। यह नितांत असंभव है कि कोई व्यक्ति अपूर्ण समाज में पूर्ण बन सके।
  • नियमों का निर्माण मनुष्य के लिए हुआ है, मनुष्य का निर्माण नियमों के लिए नहीं हुआ है।
  • परस्पर विरोधी इच्छाएँ कठिनाइयाँ रंज और दुख लाती हैँ ।
  • परिवर्तन, समयानुकूल परिवर्तन से घृणा करके पुरानी रीतियों तथा वंश परम्परा पर अधिक जोर देकर अपने को मनुष्यता के आसन से निचे मत गिराओ।
  • पाप की गुलामी करने वाली आजादी को नष्ट कर दो ।
  • भय से और दंड से पाप कभी बंद नहीं होते।
  • भाग्य का दूसरा नाम विचार है। जैसा आप सोचते है, वैसा आप बन जाते है।
  • यदि आप अहंकार और स्वार्थ को नहीं छोड़ सकते तो आप सच्चा कार्य नहीं कर सकते।
  • यदि कोई प्यारी चीज़ भी आत्म साक्षात्कार में बाधा बन रही हो तो उस प्यारी चीज को भी तुरंत हटा देना चाहिए।
  • यदि कोई मुझे अपना दर्शन एक शब्द में प्रकट करने की आज्ञा दे तो मैं कहूँगा -'आत्मविश्वास'
  • यदि तुमने आसक्ति का राक्षस नष्ट कर दिया तो इच्छित वस्तुएं तुम्हारी पूजा करने लगेंगी।
  • यह नहीं हो सकता की तुम दुनिया के भी मजे लो और सत्य को भी पालो।
  • लक्ष्मी पूजा के अनेक रूप हैं, लेकिन गरीबों की पेट पूजा (गरीबों का पेट भरना) ही श्रेष्ठ लक्ष्मी पूजन है। इससे आत्मतोष भी होता है।
  • वही उन्नति कर सकता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।
  • वास्तविक शिक्षा का आदर्श यह है कि हम अपने भीतर से कितनी विद्या निकल सकते है, यह नहीं कि बाहर से कितनी भीतर डाल चुके है।
  • विद्या व ज्ञान का दान सर्वोपरि श्रेष्ठ दान होता है, जो आप किसी मनुष्य को दे सकते है।
  • विश्व राम का शरीर है।
  • विश्वास का अभाव अज्ञान है।
  • वे मित्रताएं जहाँ दिल नहीं मिलते, बारूद से भी बदतर है, बड़ी ऊँची आवाज से टूटती है।
  • वेदान्त की पुस्तकों को अलमारियों में बंद रखने से काम नहीं चलेगा, तुम्हें आचरण में लाना होगा। संसार के धर्मग्रन्थों को उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए, जिस प्रकार रसायनशास्त्र का हम अध्ययन करते हैं और अपने अनुभव के अनुसार अन्तिम निश्चय पर पहुंचते हैं।
  • शब्दों की अपेक्षा कर्म अधिक जोर से बोलते है।
  • शरीर की जो रात है, आत्मा का वह दिन है।
  • शाश्वतता का विचार ही विवेक है।
  • सच्चा कार्य अहंकार और स्वार्थ को छोड़े बिना नहीं होता।
  • सांसारिक बुद्धिमता केवल अज्ञान का बहाना है।
  • सांसारिक वस्तुओं में सुख की तलाश करना व्यर्थ है। आनन्द का खजाना तुम्हारे भीतर ही है।
  • सौन्दर्य आत्मदेव की भाषा है।
  • हमारे समस्त दुख का प्रमुख कारण यह है कि हम स्वयं अपने प्रति ही सच्चे न रहकर दूसरों को खुश करते रहते हैं।