स्वाध्याय

विकिसूक्ति से
  • सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः। -- तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १
सत्य बोलना । धर्मसम्मत कर्म करना । स्वाध्याय के प्रति प्रमाद मत करना।
  • स्वाध्याय में नित्य तत्पर होना चाहिये। -- मनुस्मृति
  • स्वाध्यायेन व्रतैर्होमैस्त्रैविद्येनेज्यया सुतैः।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः॥ -- मनुस्मृति 2/28
वेदों के पढ़ने से, ब्रह्मचर्य, विहित अवसरों पर अग्निहोत्र करने से, पक्षेष्टि आदि अनुष्ठान करने से, धर्मानुसार सुसन्तानोत्पत्ति से, पांच महायज्ञों के प्रतिदिन करने से, अग्निष्टोम आदि यज्ञ-विशेष करने से मनुष्य का शरीर ब्राह्मण का बनता है।[१]
  • यः स्वाध्यायं अधीतेऽब्दं विधिना नियतः शुचिः।
तस्य नित्यं क्षरत्येष पयो दधि घृतं मधु ॥ -- मनुस्मृति 2/107
जो मनुष्य एक वर्ष तक यथाविधि नियम से वेद का स्वाध्याय करता है, वेद उसको कामधेनु की नाई दूध घी देता है। (टिप्पणी : दूध घी से तात्पर्य सुख, यश और निर्भयता से है।)
  • तपः स्वाध्यायेश्वरप्राणिधानानि क्रियायोगः। -- पतञ्जलि, योगसूत्र में
तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्राणिधान को क्रियायोग कहते हैं।
  • स्वाध्याय करना मनुष्य की वाणी का तप है। -- श्रीमद्भगवतगीता
  • स्वाध्याय बुद्धि का यज्ञ है। स्वाध्याय के द्वारा मानव सत को प्राप्त होता है। -- जयशंकर प्रसाद
  • स्वाध्याय का परित्याग कर देने से उत्तम कुल भी नीच कुल हो जाते है। -- विष्णुपुराण
  • स्वाध्याय की संपत्ति से परमात्मा का साक्षात्कार होता है। -- योगसूत्र

सन्दर्भ[सम्पादन]