स्नान

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स्नान का अर्थ है नहाना। सनातन धर्म में स्नान का बड़ा महत्व है। पुराणों में छः प्रकार के स्नानों का विधान किया गया है। वे नित्य स्नान (दैनिक स्नान), नैमित्तिक स्नान (आकस्मिक स्नान), काम्य स्नान (वांछनीय), क्रिया स्नान (औपचारिक), क्रियांग स्नान (केवल संस्कार के लिए उपयोग किए जाने वाले अंगों को स्नान करना) और मलकर्ण स्नान (मल को बाहर निकालने के लिए स्नान) हैं। (अग्नि पुराण, अध्याय 155)

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • गङ्गे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
  • स्‍नानदानतपोऽवस्थावीर्यसंस्कारकर्मभि: ।
मत्स्मृत्या चात्मन: शौचं शुद्ध: कर्माचरेद्‌द्विज: ॥ -- श्रीमद्भागवत 11.21.14
स्नान, दान, तप, आयु, निजी बल (सामर्थ्य), संस्कार, नियत कर्म तथा इन सबसे ऊपर मेरे स्मरण द्वारा आत्म-शुद्धि की जा सकती है। ब्राह्मण तथा अन्य द्विजातियों को अपना अपना विहित कर्म करने के पूर्व ठीक से शुद्ध हो लेना चाहिए।
  • तैलाभ्यङ्गे चिताधूमे मैथुने क्षौरकर्मणि।
तावद् भवति चाण्डालो यावत् स्नानं न चाचरेत्॥ -- चाणक्य
तेल से मालिश करने के बाद, दाह संस्कार से वापसी के बाद, मैथुन करने के बाद, और बाल कटवाने के बाद मनुष्य तब तक चाण्डाल बना रहता है जब तक स्नान न कर ले।
  • गुणा दश स्नान परस्य साधो रूपञ्च तेजश्च बलं च शौचम्।
आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं दु:स्वप्रनाशश्च यशश्च मेधा:॥
जो लोग सुबह उठकर जल्दी नहाते हैं वे सदैव सुंदर बने रहते हैं और लंबे समय तक जवान नजर आते हैं। जल्दी स्नान करने से व्यक्ति के तेज में वृद्धि होती है। त्वचा का आकर्षण बढ़ जाता है। सुबह स्नान करने से शरीर मजबूत बनता है। कई मौसमी बीमारियों से बचाव होता है।
  • कुरुक्षेत्र में स्नान करने से समफल, काशी में स्नान करने से दस गुना फल, प्रयाग त्रिवेणी में 100 गुणा फल और गंगासागर स्नान करना 1000 गुणा फलदायी है। लेकिन शूकर क्षेत्र में गंगा स्नान करने से अनन्त फल मिलता है।
  • तीरथ कोट्टा की ऐसानन दी बहू दान महा बरता धरे ॥
देसा फिरिओ कर भेसा तपोधन केसा धरे न मिले हरि प्यारे॥
आसन कोटि करे असट्टांग धरे बहू नियासा करे मुख करे ॥
दीना दइयाला अकाल भजे बिनु आंता को अंत के धाम सिद्धारे॥ -- दशम ग्रन्थ साहिब 10॥252॥
हे प्यारे ! करोड़ों तीर्थों में स्नान करने से, दान-दक्षिणा देकर और महान व्रत करने से, अनेक देशों में तपस्वी के वेश में विचरने और जटा धारण करने से प्रभु का साक्षात्कार नहीं होता। करोड़ों आसन करके अष्टांग योग करने से, मंत्र पढ़ते-पढ़ते अंगों को छूने और चेहरे को काला करने से भी प्रभु का दर्शन नहीं होता। लेकिन दीन-दुखियों के अलौकिक और दयालु भगवान के स्मरण के बिना अंततः यम के निवास में जाएगा।