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वल्लभभाई पटेल

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(सरदार वल्लभभाई पटेल से अनुप्रेषित)
सरदार वल्लभभाई पटेल

सरदार वल्लभ भाई पटेल (गुजराती: સરદાર વલ્લભભાઈ પટેલ ; 31 अक्टूबर 1875 - 15 दिसंबर 1950) एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। भारत की आजादी के बाद वे गणराज्य के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री बने।

उक्तियाँ

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  • इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है।
  • आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का मजबूत हाथों से सामना कीजिये।
  • एकता के बिना जनशक्ति शक्ति नहीं है जबतक उसे ठीक तरह से सामंजस्य में ना लाया जाए और एकजुट ना किया जाए, और तब यह आध्यात्मिक शक्ति बन जाती है।
  • बेशक कर्म पूजा है किन्तु हास्य जीवन है।जो कोई भी अपना जीवन बहुत गंभीरता से लेता है उसे एक तुच्छ जीवन के लिए तैयार रहना चाहिए। जो कोई भी सुख और दुःख का समान रूप से स्वागत करता है वास्तव में वही सबसे अच्छी तरह से जीता है।
  • चर्चिल से कहो कि भारत को बचाने से पहले इंग्लैण्ड को बचाए।
  • शक्ति के अभाव में विश्वास किसी काम का नहीं है। विश्वास और शक्ति, दोनों किसी महान काम को करने के लिए अनिवार्य हैं।
  • सत्ताधीशों की सत्ता उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाती है, पर महान देशभक्तों की सत्ता मरने के बाद काम करती है, अतः देशभक्ति अर्थात् देश-सेवा में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।
  • सैनिक लड़ने के लिए तो तैयार हो, किन्तु सेनापति द्वारा बताए गये शस्त्रास्त्र न रखे, तो वह युद्ध नहीं जीत सकता, क्योंकि उसमें अनुशासन नहीं है।
  • जिसने भगवान को पहचान लिया, उसके लिए तो संसार में कोई अस्पृश्य नहीं है, उसके मन में ऊँच-नीच का भेद कहाँ ! अस्पृश्य तो वह प्राणी है जिसके प्राण निकल गए हों अर्थात वह शव बन गया हो। अस्पृश्यता एक वहम है। जब कुत्ते को छूकर, बिल्ली को छूकर नहाना नहीं पड़ता तो अपने समान मनुष्य को छूकर हम अपवित्र कैसे हुए।
  • जो तलवार चलाना जानते हुए भी तलवार को म्यान में रखता है, उसी की अहिंसा सच्ची अहिंसा कही जाएगी। कायरों की अहिंसा का मूल्य ही क्या। और जब तक अहिंसा को स्वीकार नहीं जाता, तब तक शांति कहाँ!
  • आत्मा को गोली या लाठी नहीं मार सकती। दिल के भीतर की असली चीज इस आत्मा को कोई हथियार नहीं छू सकता।
  • कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति सदैव आशावान रहता है।
  • पड़ोसी का महल देखकर अपनी झोपडी तोड़ डालनेवाला महल तो बना नहीं सकता, अपनी झोपडी भी खो बैठता है।
  • ईश्वर का नाम ही (रामवाण) दवा है। दूसरी सब दवाएं बेकार हैं। वह जब तक हमें एस संसार में रखे, तब तक हम अपना कर्तव्य करते रहें। जानेवाले का शोक न करें, क्योंकि जीवन की डोर तो उसी के हाथ में है। फिर चिंता की क्या बात। याद रहे कि सबसे दुखी मनुष्य में भगवान का वास होता है। वह महलों में नहीं रहता।
  • जब जनता एक हो जाती है, तब उसके सामने क्रूर से क्रूर शासन भी नहीं टिक सकता। अतः जात-पांत के ऊँच-नीच के भेदभाव को भुलाकर सब एक हो जाइए।
  • कठिनाई दूर करने का प्रयत्न ही न हो तो कठिनाई कैसे मिटे। इसे देखते ही हाथ-पैर बाँधकर बैठ जाना और उसे दूर करने का कोई भी प्रयास न करना निरी कायरता है।
  • कर्तव्यनिष्ठ पुरूष कभी निराश नहीं होता। अतः जब तक जीवित रहें और कर्तव्य करते रहें तो इसमें पूरा आनन्द मिलेगा।
  • कल किये जानेवाले कर्म का विचार करते-करते आज का कर्म भी बिगड़ जाएगा। और आज के कर्म के बिना कल का कर्म भी नहीं होगा, अतः आज का कर्म कर लिया जाये तो कल का कर्म स्वत: हो जाएगा।
  • जैसे प्रसव-वेदना के बाद राहत मिलती है, उसी प्रकार ज्यादती के बाद ही विजय होती है। समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए इससे अधिक शक्तिशाली कोई हथियार नहीं।
  • कायरता का बोझा दूसरे पड़ोसियों पर रहता है। अतः हमें मजबूत बनना चाहिए ताकि पड़ोसियों का काम सरल हो जाए।
  • मनुष्य को ठंडा रहना चाहिए, क्रोध नहीं करना चाहिए। लोहा भले ही गर्म हो जाए, हथौड़े को तो ठंडा ही रहना चाहिए अन्यथा वह स्वयं अपना हत्था जला डालेगा। कोई भी राज्य प्रजा पर कितना ही गर्म क्यों न हो जाये, अंत में तो उसे ठंडा होना ही पड़ेगा।
  • चरित्र के विकास से बुद्धि का विकास तो हो ही जाएगा। लोगों पर छाप तो हमारे चरित्र की ही पडती है।
  • जितना दुःख भाग्य में लिखा है, उसे भोगना ही पड़ेगा-फिर चिंता क्यों?
  • त्याग के मूल्य का तभी पता चलता है, जब अपनी कोई मूल्यवान वस्तु छोडनी पडती है। जिसने कभी त्याग नहीं किया, वह इसका मूल्य क्या जाने।
  • भगवान किसी को दूसरे के दोषों का धनद नहीं देता, हर व्यक्ति अपने ही दोषों से दुखी होता है।
  • दुःख उठाने के कारण प्राय: हममें कटुता आ जाती है, दृष्टी संकुचित हो जाती है और हम स्वार्थी तथा दूसरों की कमियों के प्रति असहिष्णु बन जाते हैं। शारीरिक दुःख से मानसिक दुःख अधिक बुरा होता है।
  • अधिकार मनुष्य को अँधा बना देता है। इसे हजम करने के लिए जब तक पूरा मूल्य न चुकाया जाये, तब तक मिले हुए अधिकारों को भी हम गंवा बैठेंगे।
  • जो व्यक्ति अपना दोष जनता है उसे स्वीकार करता है, वही ऊँचा उठता है। हमारा प्रयत्न होना चाहिए कि हम अपने दोषों को त्याग दें।
  • अपने धर्म का पालन करते हुए जैसी भी स्थिति आ पड़े, उसी में सुख मानना चाहिए और ईश्वर में विश्वास रखकर सभी कर्तव्यों का पालन करते हुए आनन्दपूर्वक दिन बिताने चाहिए।
  • पर हथौड़ा तो ठंडा रहकर ही काम दे सकता है।
  • जीतने के बाद नम्रता और निरभिमानता आनी चाहिए, और वह यदि न आए तो वह घमंड कहलाएगा।
  • सेवा करनेवाले मनुष्य को विन्रमता सीखनी चाहिए, वर्दी पहन कर अभिमान नहीं, विनम्रता आनी चाहिए।
  • सारी उन्नति की कुंजी ही स्त्री की उन्नति में है। स्त्री यह समझ ले तो स्वयं को अबला न कहे। वह तो शक्ति-रूप है। माता के बिना कौन पुरूष पृथ्वी पर पैदा हुआ है।
  • किसी तन्त्र या संस्थान की पुनपुर्न: निंदा की जाए तो वह ढीठ बन जाता है और फिर सुधरने की बजाय निंदक की ही निंदा करने लगता है।
  • प्राण लेने का अधिकार तो ईश्वर को है। सरकार की तोप या बंदूकें हमारा कुछ नहीं कर सकतीं। हमारी निर्भयता ही हमारा कवच है।
  • नेतापन तो सेवा में है, पर जो सीधा बन जाता है, वह किसी-न-किसी दिन लुढक अवश्य जाता है।
  • हर जाति या राष्ट्र खाली तलवार से वीर नहीं बनता। तलवार तो रक्षा-हेतु आवश्यक है, पर राष्ट्र की प्रगति को तो उसकी नैतिकता से ही मापा जा सकता है।
  • आपके घर का प्रबंध दूसरों को सौंपा गया हो तो यह कैसा लगता है- यह आपको सोचना है। जब तक प्रबंध दूसरों के हाथ में है, तब तक परतन्त्रता है, तब तक सुख नहीं।
  • चूँकि पाप का भार बढ़ गया है, अतः संसार विनाश के मार्ग पर अग्रसर है।
  • कठोर-से-कठोर हृदय को भी प्रेम से वश में किया जा सकता है। प्रेम तो प्रेम है। माता को भी अपना काना-कुबड़ा बच्चा सुंदर लगता है और वह उससे असीम प्रेम करती है।
  • मानव ईश्वरप्रदत्त बुद्धि का उपयोग नहीं करता, आँखें होते हुए भी नहीं देखता, इसीलिए वह दुखी रहता है।
  • हिंसा के बल पर ही जो सारी तैयारी करते हैं। उनके दिल में भी के सिवाय और कुछ नहीं होता। भी तो ईश्वर से होना चाहिए,किसी मनुष्य या सत्ता से नहीं और भी को मिटाकर हम दूसरों को भयभीत करें तो इस जैसा कोई पाप नहीं।
  • भारत की एक बड़ी विशेषता है, वह यह कि चाहे कितने ही उतर-चढ़ाव आएँ, किन्तु पुण्यशाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती ही रहती हैं।
  • प्राणियों के इस शरीर की रक्षा का दायित्व बहुत-कुछ हमारे मन पर भी निर्भर करता है।
  • प्रत्येक मनुष्य में प्रकृति ने चेतना का अंश रख दिया है जिसका विकास करके मनुष्य उन्नति कर सकता है।
  • मृत्यु ईश्वर-निर्मित है, कोई किसी को प्राण न दे सकता है, न ले सकता है। सरकार की तोपें और बंदूकें हमारा कुछ भी नहीं कर सकतीं।
  • विश्वास का न होना ही का कारण है। प्रज्ञा का विश्वास राज्य की निर्भयता की निशानी है।
  • शक्ति के बिना बोलने से लाभ नहीं। गोला-बारूद के बिना बत्ती लगाने से धडाका नहीं होता।
  • संस्कृति समझ-बूझकर शांति पर रची गयी है। मरना होगा तो वे अपने पापों से मरेंगे। जो काम प्रेम, शांति से होता है, वह वैर-भाव से नहीं होता।
  • शारीरिक और मानसिक शिक्षा साथ –साथ दी जाये, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। शिक्षा इसी हो जो छात्र के मन का, शरीर का, और आत्मा का विकास करे।
  • शक्ति के बिना श्रद्धा व्यर्थ है। किसी भी महान कार्य को पूरा करने में श्रद्धा और शक्ति दोनों की आवश्यकता है।
  • वह इन्सान कभी सुख प्राप्त नहीं कर सकता जिसने कभी किसी संत को दुःख पहुंचाया हो।
  • देश में अनेक धर्म, अनेक भाषाएँ हैं, तो भी इसकी संस्कृति एक है।
  • सत्य के मार्ग पर चलने हेतु बुरे का त्याग अवश्यक है, चरित्र का सुधार आवश्यक है।
  • जल्दी करने से आम नहीं पकता। आम की कच्ची कैरी तोड़ेंगे तो दांत खट्टे होंगे। फल को पकने दें, पकेगा तो स्वयं गिरेगा और रसीला होगा। इसी भांति समझौते का समय आएगा, तब सच्चा लाभ मिलेगा।
  • जो मनुष्य सम्मान प्राप्त करने योग्य होता है, वह हर जगह सम्मान प्राप्त कर लेता है, पर अपने जन्म-स्थान पर उसके लिए सम्मान प्राप्त करना कठिन ही है।
  • सुख और दुःख मन के कारण ही पैदा होते हैं और वे मात्र कागज के गोले हैं।
  • सेवा-धर्म बहुत कठिन है। यह तो काँटों की सेज पर सोने के समान ही है।
  • किसी राष्ट्र के अंतर में स्वतन्त्रता की अग्नि जल जाने के बाद वह दमन से नहीं बुझाई जा सकती। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भी यदि परतन्त्रता की दुर्गन्ध आती रहे तो स्वतन्त्रता की सुगंध नहीं फैल सकती।
  • सच्चे त्याग और आत्मशुद्धि के बिना स्वराज नहीं आएगा। आलसी, ऐश-आराम में लिप्त के लिए स्वराज कहाँ! आत्मबल के आधार पर खड़े रहने को ही स्वराज कहते हैं।
  • स्वार्थ के हेतु राजद्रोह करनेवालों से नरककुंड भरा है।
  • हम कभी हिंसा न करें, किसी को कष्ट न दें और इसी उद्देश्य से हिंसा के विरूद्ध गांधीजी ने अहिंसा का हथियार आजमा कर संसार को चकित कर दिया।
  • कुछ सत्ता पर काबिज कांग्रेसी सोचते हैं कि वे अपनी ताक़त के बल पर आरएसएस को कुचल सकते हैं। आप किसी संगठन को सत्ता के बल पर नहीं कुचल सकते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग चोर और लुटेरे नहीं हैं। वे देशभक्त हैं। वे अपने देश से प्यार करते हैं लेकिन उनके विचार गुमराह हैं। -- सरदार पटेल, लखनऊ में दिए एक भाषण में

मुसलमानों पर उक्तियाँ

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  • मैं मुसलमानों का सच्चा दोस्त हूं लेकिन मुझे उनका सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। मैं अपनी बात स्पष्ट रूप से कहने में विश्वास रखता हूँ। मैं उन्हें स्पष्ट करना चाहता हूं कि ऐसी स्थिति में भारतीय संघ के प्रति देशभक्ति की घोषणा मात्र से उन्हें मदद नहीं मिलेगी। उनकी घोषणा का व्यावहारिक प्रमाण भी उन्हें प्रस्तुत करना चाहिए। -- ०६ जनवरी, १९४८ को लखनऊ में दिये गये भाषण में[]
  • मैं भारतीय मुसलमानों से एक सवाल पूछना चाहता हूं कि हाल ही में संपन्न अखिल भारतीय मुस्लिम सम्मेलन में उन्होंने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान की आक्रामकता की निन्दा क्यों नहीं की? यह लोगों के मन में संदेह पैदा करता है। अब आपको एक साथ तैरना होगा या एक साथ डूबना होगा। एक ही नाव में, आप दो घोड़ों की सवारी नहीं कर सकते। -- ०६ जनवरी, १९४८ को लखनऊ में दिये गये भाषण में
  • जो लोग पाकिस्तान जाना चाहते हैं उन्हें वहां जाना चाहिए और शांति से रहना चाहिए, लेकिन यहां के लोगों को भी शांति से रहना चाहिए और प्रगति के काम में योगदान देना चाहिए। -- ०६ जनवरी, १९४८ को लखनऊ में दिये गये भाषण में
  • तुम जो भी करो, शांति और प्रेम के साथ करो और तुम सफल हो जाओगे, लेकिन तलवार का जवाब तलवार से दिया जाएगा। -- नवम्बर, 1946 के चौथे सप्ताह में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मेरठ में भाषण में पाकिस्तान की मांग करने वालों से (राजमोहन गांधी द्वारा ‘पटेल, ए लाइफ’ में उद्धृत)
  • मुसलमान कहते हैं कि उनकी निष्ठा पर सवाल क्यों उठाया जाता है। मैं कहता हूं कि आप अपनी अंतरात्मा से क्यों नहीं पूछते?-- 5 जनवरी, 1948 को कलकत्ता में अपने भाषण में सरदार पटेल
  • भारत में केवल एक ही ‘राष्ट्रवादी मुस्लिम’ है और वह ‘नेहरू’ हैं। -- ज़कारिया द्वारा उद्धृत पटेल का कथन (यह बात इतनी फैल गई कि गांधीजी को सरदार से कहना पड़ा कि ‘वह अपनी हाज़िर जवाबी को अपने विवेक पर हावी न होने दें।)

वल्लभभाई पटेल के बारे में अन्य लोगों के विचार

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  • मैंने मौलाना की आलोचना से सरदार को बचाने की कोशिश की है। उनमें कोई दोष न हो, ऐसा नहीं है, पर मौलाना का हमला सही नहीं है। मैंने सिर्फ ऐतिहासिक रिकार्ड को सही करने की कोशिश की है। पर मौलाना ने जो कुछ लिखा है, उससे यह धारणा बनती है कि सरदार अगर मुसलमानों के दुश्‍मन नहीं तो दिल से सांप्रदायिक व्यक्ति तो थे ही, जबकि यह सच्चाई नहीं है। -- मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा 'इंडिया विन्स फ्रीडम' में सरदार पटेल को दोषी ठहराने पर आचार्य कृपलानी की प्रतिक्रिया
  • देश के विभाजन के दौरान हिंदू शरणार्थियों की हालत देखकर सरदार के मन में हिंदू समर्थक रवैया भले देखा जा सकता है लेकिन उनमें भारतीय मुसलमानों के साथ अन्याय करने की कोई प्रवृत्ति देखी नहीं जा सकती थी। -- रफ़ीक़ ज़कारिया, अपनी किताब ‘सरदार पटेल तथा भारतीय मुसलमान’ में
  • वे बिना सोचे-समझे नहीं बोलते थे। संदर्भों में देखें तो, यह कहना ग़लत नहीं होगा कि जिस धर्म ने देश को विभाजित किया, उसके अनुयायी देश के प्रति वफ़ादार रहेंगे। -- रिज़वान कादरी, पटेल के सम्बन्ध में, बीबीसी गुजराती से
  • जब दिल्ली में मुसलमान कुत्ते-बिल्लियों की तरह मर रहे थे, तब मैं, जवाहर और सरदार गांधीजी के साथ बैठे थे। जब जवाहरलाल ने दिल्ली में हिंसा को रोकने के लिए प्रशासन के काम करने के तरीके पर नाराजगी व्यक्त की, तो सरदार ने उनसे कहा कि मुसलमानों को डरने की जरूरत नहीं है। सरकार मुसलमानों की जान-माल बचाने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन और कुछ नहीं किया जा सकता। -- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अपनी पुस्तक 'इंडिया विन्स फ्रीडम' में
  • पीड़ितों की संख्या इतनी अधिक थी कि पुराने किले में उनके लिए एक राहत शिविर स्थापित करना पड़ा। गांधीजी मुझसे, सरदार पटेल और नेहरू से मामले पर विवरण देने के लिए कहते थे। सरदार का दृष्टिकोण अलग था. हम दोनों के बीच मतभेद बढ़े। एक तरफ मैं और जवाहरलाल थे जबकि दूसरी तरफ सरदार थे। प्रशासन में दो गुट हो गए। लोग सरदार की ओर देखते थे क्योंकि वह देश के गृह मंत्री थे। उन्होंने ऐसा काम किया कि बहुसंख्यक गुट उनसे खुश था। अल्पसंख्यक गुट मुझसे और जवाहरलाल से उम्मीद कर रहा था। -- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अपनी पुस्तक 'इंडिया विन्स फ्रीडम' में

बाहरी कडियाँ

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सन्दर्भ

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