संस्कृत का उदय
संस्कृत का उदय
संस्कृत से ही सबका कल्याण हो सकता है। जिसमें मनुष्य के सभी दोषों को दूर करने की क्षमता है। और उसका सम्पूर्ण विकास सम्भव हैं। भारत को पुनः विश्वगुरु का सम्मान प्राप्त हो सकता हैं।
संस्कृत के बिना हमारे देश को विवेकानन्द और शंकराचार्य नहीं मिल सकते थे जो विश्व में भारत की आवाज बनें। विज्ञान के क्षेत्र में भी कौन नहीं जानता बोधायन, भास्कराचार्य, सुश्रुत, चरक, आर्यभट्ट के योगदान को। सुश्रुत को तो प्लास्टिक सर्जरी का पिता माना जाता है। इन तथ्यों को हमसे बेहतर तो विल दुरंत और सर विलियम जोंस जानते हैं जिन्होंने संस्कृत के महत्व को दुनिया के सामने रखा है। यह हमारी गुलाम मानसिकता है कि हम प्रत्येक अच्छी बात को पश्चिम से होते हुए आने से मान लेते हैं। हम तो यह भी मान बैठे थे कि आर्य पश्चिम से आए थे। भला हो उन वैज्ञानिकों का जिन्होंने बायोटेक्नाेलॉजी में जीन्स के आधार पर प्रमाणित किया कि आर्य बाहर से नहीं आए थे। उनका मूल यहीं है -संस्कृत का उदय