शास्त्र
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- अकुलीनोऽपि शास्त्रज्ञो दैवतेरपि पूज्यते -- हितोपदेश
- नीच कुल वाला भी यदि शास्त्र जानता हो तो देवताओं द्वारा भी पूजा जाता है।
- काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमताम्।
- व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा॥
- बुद्धिमान व्यक्ति काव्य, शास्त्र आदि का पठन करके अपना मनोविनोद करते हुए समय को व्यतीत करते हैं और मूर्ख व्यक्ति व्यसन में, सोकर या कलह करके समय बिताते हैं।
- यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
- लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ॥
- जिस मनुष्य में स्वयं का विवेक, चेतना एवं बोध नहीं है, उसके लिए शास्त्र क्या कर सकता है। आंखों से हीन अर्थात् अंधे मनुष्य के लिए दर्पण क्या कर सकता है?
- अनन्तशास्त्रं बहुलाश्च विद्याः
- अल्पश्च कालो बहुविघ्नता च।
- यत्सारभूतं तदुपासनीयं
- हंसो यथा क्षीरमिवाम्बुमध्यात्॥ -- चाणक्यनीति
- अर्थात- शास्त्रों का ज्ञान अगाध है; वे कलाएँ अनन्त हैं जो हमें सीखनी चाहिये; हमारे पास समय अल्प है, जो सीखने के मौके हैं उनमें अनेक विघ्न आते हैं। इसीलिए वही सीखें जो अत्यन्त सारभूत (महत्वपूर्ण) है, उसी प्रकार जैसे हंस पानी छोड़कर उसमे मिला हुआ दूध पी लेता है।
- शास्त्रं ज्योतिः प्रकाशार्थं दर्शनं बुद्धिः आत्मनः ।
- ताभ्यां भिषक् सुयुक्ताभ्यां चिकित्सत् न अपराध्यति ॥ -- चरकसंहिता
- शास्त्र ज्योति के समान होते हैं जो (वस्तुओं को) प्रकाशित करता है। बुद्धि आँख के समान है। इन दोनों से युक्त वैद्य चिकित्सा करते समय गलती नहीं करता।
- केवलं शास्त्रं आश्रित्य न कर्तव्यो विनिर्णयः
- युक्तिहीने विचारे तु धर्महानिः प्रजायते॥ -- बृहस्पतिस्मृति
- केवल कानून की किताबों व पोथियों मात्र के अध्ययन के आधार पर निर्णय देना उचित नहीं होता। इसके लिए ‘युक्ति’ का सहारा लिया जाना चाहिए। युक्तिहीन विचार से तो धर्म की हानि होती है।