वेश्या
दिखावट
वेश्या जो अर्थ के बदले लोगों के साथ कामक्रीडा करती है। गणिका, वारांगना आदि इसके समानार्थी हैं।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- दूरस्थाः पर्वताः रम्याः वेश्याः च मुखमण्डने।
- युध्यस्य तु कथा रम्या त्रीणि रम्याणि दूरतः॥
- दूर स्थित पर्वत सुन्दर लगते हैं। वेश्या मुखमण्डन से रम्य लगती है। युद्ध की कथा रम्य लगती है। तीनों दूर से ही सुन्दर लगते हैं।
- असंतुष्टा द्विजा नष्टाः संतुष्टाश्च महीभुजः।
- सलज्जा गणिका नष्टा निर्लज्जाश्च कुलांगना॥ -- चाणक्य नीति
- वे ब्राह्मण नष्ट हो जाते हैं जो सन्तोषी नहीं हैं, वह राजा नष्ट हो जाता है जो संतुष्ट रहता है। लज्जावान गणिका नष्ट हो जाती है जबकि निर्लज्ज कुलवधू नष्ट हो जाती है।
- राजा वेश्या यमश्चाग्निस्तस्करो बालयाचकौ ।
- परदुःखं न जानन्ति अष्टमो ग्रामकण्टकः ॥ -- चाणक्य
- राजा, वेश्या, यमराज, अग्नि, चोर, छोटा बच्चा, भिखारी और कर वसूल करने वाला - ये आठो कभी दुसरो का दुःख नहीं समझ सकते।
- प्रियवादी प्रियकथा स्फुटा दक्षा जितश्रमा।
- एभिर्गुणैस्तु संयुक्ता गणिका परिकीर्तिता॥ -- नाट्यशास्त्र
- प्रिय वचन बोलनेवाली, प्रिय कथा कहने वाली, स्पष्ट बात करने वाली, प्रियतम की कृपा-दृष्टि पाने में सक्षम, जो कभी थकती नहीं अर्थात किसी भी तरह से प्रेमी को विरस नहीं होने देती- इन गुणों से संयुक्त गणिका की कीर्ति चारो ओर फैलती है।
- पूजिता या सदा राज्ञा गुणवद्भिश्च संस्तुता ।
- प्रार्थनीयाभिगम्या च लक्ष्यभूता च जायते॥ -- वात्स्यायन कामसूत्र
- वह (गणिका) राजा के द्वारा सदा पूजित और गुणीजनों द्वारा प्रशंसित होती है। वह प्रर्थनीय और अभिगम्य होती है । इस प्रकार वह सबका लक्ष्य (आँखों के सामने रखने योग्य) है।
- असत्येनैव जीवन्ति वेश्याः सत्यविवर्जिताः।
- एताः सत्येन नश्यन्ति मद्यनेव कुलाङ्गनाः ॥ -- समयमातृका
- सत्य से विवर्जित वेश्यायें असत्य से ही जीवित रहतीं हैं। ये सत्य से वैसे ही नष्ट हो जातीं हैं जैसे मद्यपान से कुलीन स्त्रियां।
- गतानुगतिको मूर्खः शास्त्रोन्मादश्च पण्डितः ।
- नित्य-क्षीबश्च वेश्यानां जङ्गमाः कल्पपादपाः॥ -- समयमातृका, पञ्चम समय
- गतानुगतिक अर्थात् अन्धानुकरण करनेवाला मूर्ख, शास्त्रोन्मादी ( शास्त्रप्रवीण होते हुये भी व्यवहार से अनभिज्ञ ) पण्डित, मदिरा के पान से सर्वदा मत्त रहने वाला - ये सभी वेश्याओं के लिये चलने-फिरने वाले कल्पतरु माने गये हैं।
- पक्षिनां वायसौ धूर्तः श्वपादानाम च जम्बुकः ।
- नराणां नापितो धूर्तः नारीणां गणिका मता॥
- पक्षियों में कौआ धूर्त होता है, जन्तुओं में सियार। पुरुषों में नाई धूर्त होता है और नारियों में गणिका।
- गणिकागणकौ समानधर्मो निजपञ्चाङ्गनिदर्शकावुभौ।
- जनमानसमोहकारिणौ तौ विधिना वित्तहरौ विनिर्मितौ॥
- वेश्या और (कुत्सित) ज्योतिषी का बर्ताव एक ही सा जान पड़ता है। ज्योतिषी अपना पंचांग (पत्रा) दिखाता है और वेश्या भी अपने पंचांग (पाँच अंग) दिखाती है। इसी प्रकार ये दोनों, लोगों के मन मोहने वाले हैं। कदाचित् ऐसा ही समझकर विधि ने इन दोनों को लोगों का द्रव्य अपहरण करने के लिए निर्माण किया है।
- सत्यानृता च परुषा प्रियवादिनी च
- हिंस्रा दयालुरपि चार्थपरा वदान्या।
- नित्यव्यया प्रचुरनित्यधनागमा च
- वाराङ्गनेव नृपनीतिरनेकरूपा॥ -- भर्तृहरि, नीतिशतक
- कहीं सत्य और कहीं मिथ्या, कहीं कटु (कठोर) भाषा और कहीं प्रिय भाषा, कहीं हिंसा और कहीं दयालुता, कहीं लोभ और कहीं दान, कहीं व्यय करने वाली और कहीं धन सञ्चय करने वाली राजनीति भी एक वारांगना (व्यभिचारिणी स्त्री) की भाँति अनेक रूपों वाली होती है।
- न मे स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मद्यप ।
- नानाहिताग्रिर्नाविद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुतः ॥ -- छान्दोग्य उपनिषद् ५/११/१५
- मेरे राज्यमें न तो कोई चोर है, न कोई कृपण , न कोई मदिरा पीनेवाला है, न कोई अनाहिताग्नि (अग्निहोत्र न करनेवाला) है, न कोई अविद्वान् है और कोई परस्त्रीगामी ही है, फिर कुलटा स्त्री (वेश्या) होगी ही कैसे ?
- आप शहर में ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ देखते हैं... ये ख़ूबसूरत और नफ़ीस गाड़ियाँ कूड़ा करकट उठाने के काम नहीं आ सकतीं। गंदगी और ग़लाज़त उठा कर बाहर फेंकने के लिए और गाड़ियाँ मौजूद हैं जिन्हें आप कम देखते हैं और अगर देखते हैं तो फ़ौरन अपनी नाक पर रूमाल रख लेते हैं... इन गाड़ियों का वुजूद ज़रूरी है और उन औरतों का वुजूद भी ज़रूरी है जो आपकी ग़लाज़त उठाती हैं। अगर ये औरतें ना होतीं तो हमारे सब गली कूचे मर्दों की ग़लीज़ हरकात से भरे होते। -- सआदत हसन मंटो
- वेश्या और बा-इस्मत औरत का मुक़ाबला हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं करना चाहिए। इन दोनों का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता। वेश्या ख़ुद कमाती है और बा-इस्मत औरत के पास कमा कर लाने वाले कई मौजूद होते है। -- सआदत हसन मंटो
- वेश्या पैदा नहीं होती, बनाई जाती है। या ख़ुद बनती है। जिस चीज़ की मांग होगी मंडी में ज़रूर आएगी। मर्द की नफ़सानी ख़्वाहिशात की मांग औरत है। ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो। चुनांचे इस मांग का असर ये है कि हर शहर में कोई ना कोई चकला मौजूद है। अगर आज ये मांग दूर हो जाये तो ये चकले ख़ुद बख़ुद ग़ायब हो जाऐंगे। -- सआदत हसन मंटो