वेद प्रताप वैदिक

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डॉ. वेद प्रताप वैदिक () भारत के प्रख्यात लेखक, पत्रकार, विचारक व स्वप्नद्रष्टा रहे हैं। उनके विचार, स्वप्न, लेखन और पत्रकारिता सहज ही हमारे दिलो दिमाग में घर कर जाते हैं। उनकी पहचान यहीं तक सीमित नहीं है। वे हिन्दी के प्रखर समर्थक रहे हैं। सच कहें तो डॉ. वेद प्रताप वैदिक हिंदी भाषा के सिर्फ प्रबल समर्थक ही नहीं, समूचा आंदोलन थे, या यूं कहें कि वह हिंदी सत्याग्रही थे। वर्ष 2018 में मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक का दायित्व संभाल कर हिन्दी में हस्ताक्षर बदलो आंदोलन के प्रणेता रहे. आपके मार्गदर्शन में संस्थान द्वारा 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर अन्य भाषाओं से हिन्दी में बदलवाए. यह अपनी तरह का अनूठा आंदोलन रहा, जिसके कारण वर्ष 2020 में इसे विश्व कीर्तिमान में भी दर्ज किया गया।

डॉ. वैदिक ने ‘अफ़गानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेज़ी हटाओ: क्यों और कैसे?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’, ‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’, ‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका: इंडियाज ऑप्शन्स’, ‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो?’, ‘वर्तमान भारत’, ‘अफ़गानिस्तान: कल, आज और कल’, ‘महाशक्ति भारत’, ‘भाजपा, हिंदुत्व और मुसलमान’, ‘कुछ मित्र और कुछ महापुरुष,’ ‘मेरे सपनों का हिंदी विश्वविद्यालय’ ‘हिंदी कैसे बने विश्वभाषा’ ‘स्वभाषा लाओ:अंग्रेज़ी हटाओ’, आदि पुस्तकें लिखीं।

सन् 1999 में वे संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर व्याख्यान देने के लिए भी आमंत्रित किए गए थे। भारतीय विदेश नीति के चिन्तन और संचालन में उनकी भूमिका उल्लेखनीय है। उन्हें विश्व हिंदी सम्मान (2003), महात्मा गांधी सम्मान (2008) सहित कई पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया गया।

विचार[सम्पादन]

  • स्वभाषा में किया गया काम अंग्रेजी के मुकाबले कहीं बेहतर हो सकता है।
  • पत्रकारिता की पढ़ाई केवल हिन्दी में हो।
  • कोई भी स्वाभिमानी और विकसित राष्ट्र अंग्रेजी में नहीं, बल्कि अपनी मातृभाषा में सारा काम करता है।
  • भारत में अनेकानेक स्थानों पर अंग्रेजी की अनिवार्यता के कारण ही आरक्षण अपरिहार्य हो गया है, जबकि इस देश में इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]