विल डुरंट
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(विल डुरन्ट से अनुप्रेषित)
विलियम जेम्स डुरन्ट (William James Durant ; 5 नवम्बर 1885 – 7 नवम्बर 1981) अमेरिका के एक इतिहासकार, दार्शनिक और लेखक थे। उनकी 'द स्टोरी ऑफ फिलॉसफी' और 'द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन' (१९३५) नामक कृतियाँ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। विल डुरंट के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि उनके द्वारा लिखित ग्यारह खण्डों वाली ‘दि स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन‘ श्रृंखला है, जो उन्होंने अपनी पत्नी एरियल के साथ मिलकर लिखी है। विल और एरियल को सन् 1968 में जनरल नॉन-फिक्शन के लिए पुल्तिज़र पुरस्कार मिला।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- साठ साल पहले मैं सब कुछ जानता था। अब मैं कुछ नहीं जानता। शिक्षा, हमारी एक अज्ञानता के बाद दूसरी अज्ञानता की खोज करती है। --"Books: The Great Gadfly", में उद्धृत ; 'टाइम' पत्रिका, 8 अक्तूबर 1965 ('The Age of Voltaire by Will and Ariel Durant' की समीक्षा में)
- मन का [ज्ञान से] प्रकाशित हो जाना तथा चरित्र का उन्नयन ही वास्तविक क्रांति है। व्यक्तिगत मुक्ति ही एकमात्र वास्तविक मुक्ति है। दार्शनिक और सन्त एकमात्र वास्तविक क्रांतिकारी हैं। -- The Lessons of History (1968), पृष्ट 72 पर (एरियल डुरन्ट इस पुस्तक की सह-लेखिका हैं।)
- परस्पर प्रेम करो। इतिहास से अन्ततः जो मैने सीखा है वह वही है जो जीसस की शिक्षा है। आपको लगेगा कि यह तो बस एक 'लॉलीपॉप' है, किन्तु इसे करके तो देखिये। प्रेम ही इस जगत की सबसे व्यावहारिक वस्तु है। जिससे भी आप मिलते हैं, यदि आपका व्यवहार उससे प्रेमपूर्ण होगा तो अन्ततः आपको अपना लक्ष्य मिल जाएगा। -- यह बात उन्होंने तब कही थी जब उनके 92 वर्ष के होने पर उनसे पूछा गया कि वे एक वाक्य में इतिहास की शिक्षा का सार बताएँ। Pam Proctor द्वारा लिखित "Durants on History from the Ages, with Love" (6 August 1978) पृष्ट 12 से उद्धृत
- भारत की मुस्लिम विजय शायद इतिहास की सबसे खूनी कहानी है। -- विल डुरंट, "द स्टोरी ऑफ़ सिविलाइज़ेशन : अवर ओरिएंटल हेरिटेज" में
- भारत में वर्तमान वर्ण व्यवस्था चार वर्गों से बनी है: असली ब्राह्मण है ब्रिटिश नौकरशाही; असली क्षत्रिय है ब्रिटिश सेना, असली वैश्य है ब्रिटिश व्यापारी और असली शूद्र तथा अस्पृश्य हैं हिन्दू लोग। -- ”दि कांस्ट सिस्टम इन इंडिया” उपशीर्षक के अन्तर्गत
- 1783 की शुरुआत में एडमण्ड ब्रुक ने भविष्यवाणी की थी कि भारत के संसाधनों को इंग्लैण्ड भेजने से तथा उसके बराबर संसधन भारत में वापस न आने देने की नीति वास्तव में भारत को नष्ट कर देगी। प्लासी से वाटरलू के सत्तावन वर्षों में भारत से इंग्लैण्ड को भेजी गई सम्पत्ति का हिसाब बु्रक एडमस् ने ढाई से पांच बिलियन डॉलर लगाया था। इससे काफी पहले मैकाले ने सुझाया था कि भारत से चुरा कर इंग्लैण्ड भेजी गई सम्पत्ति मशीनी आविष्कारों के विकास हेतु मुख्य पूंजी के रुप में उपयोग हुई और इसी के चलते औद्योगिक क्रांति सम्भव हो सकी।
- ...अब हम समझ सकते हैं कि भारत में अकाल क्यों हैं? सीधे शब्दों में कहें तो इसका कारण पर्याप्त खाद्य पदार्थों का न होना नहीं है, बल्कि इसका कारण यह है कि लोग खाद्य पदार्थ खरीद पाने असमर्थ हैं। ...ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत आने के बाद भारत में अकाल अधिक बार आने लगे हैं और उनकी गंभीरता भी बढ़ी है। 1770 से 1900 तक दो लाख पचास हजार हिन्दू भुखमरी के शिकर हुए। इनमें से एक लाख पचास हजार लोग तो केवल 1877, 1889, 1897 और 1900 के अकालों में मारे गये। -- विल डुरन्ट, THE CASE FOR INDIA में