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विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल

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विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल (सन २०१६ में)

विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल (वी एस नैपाल ; 17 अगस्त 1932 - 11 अगस्त 2018) भारत-नेपाल मूल के ब्रिटिश नागरिक थे। उनका जन्म त्रिनिनाद में हुआ और वहीं पले बढ़े। सन २००१ में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था।

वीएस नैपाल अपने विचारों के कारण से प्रसिद्ध रहे हैं। वे इस्लाम के कट्टर आलोचक थे।

उक्तियाँ

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  • अन्ततः किसी लेखक की लिखी पुस्तकें ही लेखक नहीं हैं, बल्कि लेखक अपने मिथ से पहचाना जाता है। और वह मिथ दूसरे लोगों के पास रहता है। -- "Steinbeck in Monterey" (1970), in Daily Telegraph Magazine (3 April 1970), later published in The Overcrowded Barracoon, and other articles (1972)
  • एकमात्र झूठ जिसके लिए हमें वास्तव में दंडित किया जाता है, वह है जो हम स्वयं से कहते हैं।
  • अधिकांश लोग वास्तव में स्वतंत्र नहीं हैं। संसार में वे उस स्थान तक ही सीमित हैं जो उन्होंने स्वयं के लिये बनाया है। अपनी दृष्टि की संकीर्णता से वे खुद को कम संभावनाओं तक सीमित कर लेते हैं।
  • संसार वही है जो (दिखता) है। जो मनुष्य कुछ भी नहीं हैं और जो खुद को कुछ भी बनने नहीं देते हैं, इसमें उनके लिये कोई जगह नहीं है। -- ए बेंड इन द रिवर, वी.एस. नैपाल
  • हम वास्तव में केवल उस झूठ के लिए दंडित होते हैं, जिसे हम स्वयं बताते हैं।
  • कुछ भावनाएँ वर्षों की दूरी ख़त्म कर देती हैं और असंभव स्थानों को जोड़ देती हैं।
  • जो सरकार अपने क़ानून तोड़ देती है, वह आपको भी आसानी से तोड़ सकती है।
  • अगर किसी लेखक को सब पता हो जो होने जा रहा है, तो उसकी पुस्तक उसके शुरू करने से पहले ही मर जाएगी।
  • मैं जानता था कि मुझे कहाँ जाना है। मैंने सही दरवाज़ा खटखटाया।
  • खंडहरों में होने से हमारा समय-बोध गड़बड़ा जाता है।
  • मेरा जीवन छोटा है। मैं घिसी-पिटी बातें नहीं सुन सकता।
  • मैं कहता हूँ कि मैं अपनी किताबों का निचोड़ हूँ।
  • लेखकों को लोगों को असहमति के लिए उकसाना चाहिए।
  • हमें हमेशा स्थिति की सच्चाई देखने की कोशिश करनी चाहिए, इससे हम चीज़ों को सार्वभौमिक बना सकते हैं।
  • मेरे बारे में जो कुछ भी मायने रखता है, सब मेरी किताबों में है।
  • यह महत्वपूर्ण है कि लोगों पर बहुत अधिक भरोसा न किया जाए।
  • अगर लेखक बैठकर बस दमन के बारे में बात करते रहेंगे, तो वे ज़्यादा लिख नहीं पाएँगे।
  • जिस सभ्यता ने दुनिया भर पर क़ब्ज़ा किया हो, उसे मरती हुई सभ्यता नहीं कहा जा सकता।
  • एक लेखक की जीवनी में, या यहाँ तक कि उसकी आत्मकथा में भी, हमेशा अपूर्णता रहेगी।
  • अयोध्या एक तरह का जुनून था और हर जुनून को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. मैं हमेशा जुनून से बाहर आने वाले कार्यों का समर्थन करता हूं, क्योंकि ये रचनात्मकता को दर्शाता है। -- अयोध्या के विवादित ढांचे के विध्वंस पर
  • बाबरी मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाकर ठीक कर दिया गया। जिस तरह स्पेन ने अपने राष्ट्रीय स्मारकों

इस्लाम पर विचार

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  • इस्लाम ने लोगों को ग़ुलाम बनाया और दूसरों की संस्कृतियों को नष्ट करने की कोशिश की।
  • "जिनका धर्मान्तरण हुआ, उन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। जिनका धर्म परिवर्तन होता है, उनका अपना अतीत नष्ट हो जाता है। आपको अपना इतिहास कुचलना होता है। आपको कहना होता है कि मेरे पूर्वजों की संस्कृति अस्तित्व में ही नहीं है और न ही कोई मायने रखती है। मुसलमानों द्वारा इस तरह से पहचान को मिटाना, उपनिवेशवाद से भी बदतर है। पाकिस्तान इसका जीता जागता उदाहरण है। वास्तव में पाकिस्तान की कहानी एक आतंक की कहानी है। यह एक कवि से शुरू होती है जो यह सोचता था कि मुसलमान अत्यधिक विकसित हैं जिनको भारत में रहने के लिए एक ख़ास जगह होनी चाहिए।... किसी भी देश को सांस्कृतिक रेगिस्तान में उतना नहीं बदला गया जितना पाकिस्तान को।
  • भारत की सहस्राब्दी की शुरुआत काफी त्रासदीपूर्ण रही है। इसकी शुरुआत मुस्लिम आक्रमण से हुई जिसने उत्तर में हिंदू-बौद्ध संस्कृति को कुचलना शुरू कर दिया। -- वर्ष 1999 में अंग्रेज़ी पत्रिका आउटलुक को दिए साक्षात्कार में
  • कला और इतिहास की किताबों में लोग लिखते हैं कि मुसलमान भारत 'आए', मानो वे टूरिस्ट बस में आए थे और चले गए। मुसलमानों ने मूर्तियां और मंदिर तोड़े गए, लूटमार की, स्थानीय लोगों को ग़ुलाम बनाया। उत्तर में हिंदू स्मारकों का नहीं होना इसके सबूत हैं। उन्हें यह लिखना चाहिए कि इस्लाम न मानने वाले लोगों को किस तरह जीवित दीवार में चुनवा दिया गया और यदि उन्होंने फिर भी ना माना तो उनका शरीर धीरे-धीरे आरी से काटकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। उस काल का कोई हिंदू रिकॉर्ड नहीं है। हारे हुए लोग कभी अपना इतिहास नहीं लिखते। विजेता अपना इतिहास लिखते हैं और मुसलमान विजेता थे। दूसरी तरफ़ के लोगों के लिए यह अंधेरे का दौर था।
  • ईसाइयों ने भारत का उतना नुकसान नहीं किया जितना मुसलमानों ने किया।