विदुर नीति
विदुर धृतराष्ट्र के महामंत्री और नीतिशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे। महाभारत में बहुत ही महान बता कर उनकी प्रशंसा की गई है। उन्होंने महाभारत के युद्ध को टालने का हरसम्भव प्रयास किया था परन्तु असफल रहे। युद्ध के अनन्तर विदुर पांडवों के भी मंत्री हुए। पांडवों ने उनकी ही आज्ञा तथा सलाह लेकर शासन आरम्भ किया और आदर्श राज्य की स्थापना की।
महाभारत में महात्मा विदुर सदैव अपनी नीतियों से सही समय पर सही सुझाव देते नजर आते हैं। ये दूरदर्शी थे जो समय से पहले ही परेशानियों को भांप लेते थे। महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले विदुर ने धृतराष्ट्र को चेताया था कि इस युद्ध का अन्त अत्यन्त ही बुरा होगा। महात्मा विदुर को अपने समय के बुद्धिजीवियों में से एक माना जाता है।
विदुर-नीति वास्तव में महाभारत युद्ध से पूर्व युद्ध के परिणाम के प्रति शंकित हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र के साथ उनका संवाद है। युद्ध के पूर्व महाराजा धृतराष्ट्र अपने सलाहकार विदुर को बुलाकर अच्छे और बुरे के बारे में चर्चा करते हैं। ‘महाभारत’ के उद्योग पर्व में इस चर्चा का वर्णन मिलता है।
उपदेश[सम्पादन]
- जो लोग अच्छे कार्य करते हैं उनके पास स्थाई लक्ष्मी आती है, यानी सही तरीके से कमाया गया धन ही हमारे पास टिकता है।
- जिस धन को अर्जित करने में मन तथा शरीर को क्लेश हो, धर्म का उल्लंघन करना पड़े, शत्रु के सामने अपना सिर झुकाने की बाध्यता उपस्थित हो, उसे प्राप्त करने का विचार ही त्याग देना श्रेयस्कर है।
- आत्मज्ञानं समारम्भस्तितिक्षा धर्मनित्यता । यमार्थान्नापकर्षन्ति स वै पण्डित उच्यते॥
- अर्थ : आत्मज्ञान, उद्योग, कष्ट सहने की सामर्थ्य और धर्म में स्थिरता, ये बातें जिसको 'अर्थ' (पुरुषार्थ) से नहीं भटका पातीं हैं वही पंडित कहलाता है। दूसरे शब्दों में, महात्मा विदुर का कहना है कि तमाम सदगुणों के बाद भी जो व्यक्ति अर्थ से विचलित नहीं होता है, उसे ही बुद्धिमान माना जा सकता है।
- परस्त्री का स्पर्श, पर धन का हरण, मित्रों का त्याग रूप यह तीनों दोष क्रमशः काम, लोभ, और क्रोध से उत्पन्न होते हैं।
- जो विश्वास का पात्र नहीं है, उसका तो कभी विश्वास किया ही नहीं जाना चाहिए। पर जो विश्वास के योग्य है, उस पर भी अधिक विश्वास नहीं किया जाना चाहिए। विश्वास से जो भय उत्पन्न होता है, वह मूल उद्देश्य का भी नाश कर डालता है।
- संसार के छह सुख प्रमुख है- धन प्राप्ति, हमेशा स्वस्थ रहना, वश में रहने वाले पुत्र, प्रिय भार्या, प्रिय बोलने वाली भार्या और मनोरथ पूर्ण कराने वाली विद्या- अर्थात् इन छह से संसार में सुख उपलब्ध होता है।
- बुद्धिमान व्यक्ति के प्रति अपराध कर कोई दूर भी चला जाए तो चैन से न बैठे, क्योंकि बुद्धिमान व्यक्ति की बाहें लंबी होती है और समय आने पर वह अपना बदला लेता है।
- क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, निश्चय ही क्षमा परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का क्षमा भूषण है।
- ईर्ष्या, दूसरों से घृणा करने वाला, असंतुष्ट, क्रोध करने वाला, शंकालु और पराश्रित (दूसरों पर आश्रित रहने वाले) इन छह प्रकार के व्यक्ति सदा दुखी रहते हैं।
- जो पुरुष अच्छे कर्मों और पुरुषों में विश्वास नहीं रखता, गुरुजनों में भी स्वभाव से ही शंकित रहता है। किसी का विश्वास नहीं करता, मित्रों का परित्याग करता है... वह पुरुष निश्चय ही अधर्मी होता है।
- जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है उसके ये सद्गुण पंडित होने के लक्षण हैं।
- जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगा जी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, वह ज्ञानी कहलाता है।
- मूढ़ चित वाला नीच व्यक्ति बिना बुलाए ही अंदर चला आता है, बिना पूछे ही बोलने लगता है तथा जो विश्वास करने योग्य नहीं हैं उन पर भी विश्वास कर लेता है।
- जो बहुत धन, विद्या तथा ऐश्वर्य को पाकर भी इठलाता नहीं, वह पंडित कहलाता है।
- मनुष्य अकेला पाप करता है और बहुत से लोग उसका आनंद उठाते हैं। आनंद उठाने वाले तो बच जाते हैं पर पाप करने वाला दोष का भागी होता है।
- किसी धनुर्धर वीर के द्वारा छोड़ा हुआ बाण संभव है किसी एक को भी मारे या न मारे, मगर बुद्धिमान द्वारा प्रयुक्त की हुई बुद्धि राजा के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र का विनाश कर सकती है।
- विदुर धृतराष्ट्र को समझाते हुए कहते हैं: राजन! जैसे समुद्र के पार जाने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है उसी प्रकार स्वर्ग के लिए सत्य ही एकमात्र सीढ़ी है, कुछ और नहीं, किन्तु आप इसे नहीं समझ रहे हैं।
- केवल धर्म ही परम कल्याणकारक है, एकमात्र क्षमा ही शांति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। एक विद्या ही परम संतोष देने वाली है और एकमात्र अहिंसा ही सुख देने वाली है।
- विदुर धृतराष्ट्र से कहते हैं : राजन! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं- शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
- त्रिविधं नरकस्येदं द्वारम नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥
- (अर्थ : काम, क्रोध और लोभ यह तीन प्रकार के नरक के द्वार हैं, यानी दुखों की ओर जाने के मार्ग हैं। यह तीनों आत्मा का नाश करने वाले हैं, इसलिए इनसे हमेशा दूर रहना चाहिए।
- भरतश्रेष्ठ! पिता, माता, अग्नि, आत्मा और गुरु-मनुष्य को इन पांच की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए।
- अच्छे कर्मो को अपनाना और बुरे कर्मों से दूर रहना साथ ही परमात्मा में विश्वास रखना और श्रद्धालु भी होना - ऐसे सद्गुण बुद्धिमान और पंडित होने का लक्षण है।
- क्रोध, हर्ष, गर्व, लज्जा, उद्दंडता, तथा स्वयं को पूज्य समझना - ये भाव जिस व्यक्ति को पुरुषार्थ के मार्ग (सन्मार्ग) से नहीं भटकाते वही बुद्धिमान या पंडित कहलाता है।
- जिस व्यक्ति के कर्त्तव्य, सलाह और पहले से लिए गए निर्णय को दूसरे लोग केवल काम संपन्न होने पर ही जान पाते हैं, वही पंडित कहलाता है।
- जिस व्यकित के कर्मों में न ही सर्दी और न ही गर्मी, न ही भय और न ही अनुराग, न ही संपत्ति और न ही दरिद्रता विघ्न डाल पाते हैं वही पण्डित कहलाता है।
- जिस व्यक्ति का निर्णय और बुद्धि धर्मं का अनुशरण करती है और जो भोग विलास ओ त्याग कर पुरुषार्थ को चुनता है वही पण्डित कहलाता है।
- ज्ञानी और बुद्धिमान पुरुष शक्ति के अनुसार काम करने के इच्छा रखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं तथा किसी वस्तु को तुक्ष्य समझ कर उसकी अवहेलना नहीं करते हैं।
- जो व्यक्ति किसी विषय को शीघ्र समझ लेते हैं, उस विषय के बारे में धैर्य पूर्वक सुनते हैं, और अपने कार्यों को कामना से नहीं बल्कि बुद्धिमानी से संपन्न करते हैं, तथा किसी के बारे में बिना पूछे व्यर्थ की बात नहीं करते हैं वही पण्डित कहलाते हैं।
- बुद्धिमान तथा ज्ञानी लोग दुर्लभ वस्तुओं की कामना नहीं रखते, न ही खोयी हुए वस्तु के विषय में शोक करना चाहते हैं तथा विपत्ति की घडी में भी घबराते नहीं हैं।
- जो व्यक्ति पहले निश्चय करके रूप रेखा बनाकर काम को शुरू करता है तथा काम के बीच में कभी नहीं रुकता और समय को नहीं गँवाता और अपने मन को वश में किये रखता है वही पण्डित कहलाता है।
- हे भारत कुलभूषण (धृतराष्ट्र), ज्ञानी पुरुष हमेशा श्रेष्ठ कर्मों में रूचि रखते हैं, और उन्न्नति के लिए कार्य करते व प्रयासरत रहते हैं तथा भलाई करनेवालों में अवगुण नहीं निकालते हैं।
- जो अपना आदर-सम्मान होने पर भी फूला नहीं समाता, और अपमान होने पर भी दुखी व विचलित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसके मन को कोई दुख नहीं होता वह पण्डित कहलाता है।
- जो व्यक्ति प्रकृति के सभी पदार्थों का वास्तविक ज्ञान रखता है, सब कार्यों के करने का उचित ढंग जाननेवाला है तथा मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ उपायों का जानकार है वही मनुष्य पण्डित कहलाता है।
- जो निर्भीक होकर बात करता है , कई विषयों पर अच्छे से बात कर सकता है, तर्क-वितर्क में कुशल है, प्रतिभाशाली है और शाश्त्रों में लिखे गए बातों को शीघ्रता से समझ सकता है वही पण्डित कहलाता है।
- जिस व्यक्ति की विद्या या ज्ञान उसके बुद्धि का अनुशरण करती है और बुद्धि उसके ज्ञान का तथा जो भद्र पुरुषों की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता वही पण्डित की पदवी पा सकता है।