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विक्रम साराभाई

विकिसूक्ति से

विक्रम साराभाई (12 अगस्त, 1919 – 30 दिसम्बर, 1971) भारत के एक भौतिकविज्ञानी थे। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम का जनक माना जाता है। वे एक महान वैज्ञानिक ही नहीं थे, बल्कि उद्योग, प्रबन्धन, कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी उनका योगदान उल्लेखनीय है। उनकी सक्रिय भूमिका और प्रेरणा से देश में कई प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना हुई। राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला अहमदाबाद; आईआईएम, अहमदाबाद; इसरो; स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर, अहमदाबाद जैसे अनेक राष्ट्रीय संस्थानों की स्थापना में उनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका रही है। अपनी पत्नी प्रसिद्ध भरतनाट्यम-कुचीपुडी नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई के साथ मिलकर उनहोंने नाट्य संस्थान ‘दर्पण अकैडमी’ की भी स्थापना की थी। आजादी के बाद, जब भारत को विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के लिए योग्य वैज्ञानिकों और मजबूत संस्थानों की तत्काल आवश्यकता थी, तब विक्रम साराभाई जैसे दूरदर्शी वैज्ञानिकों इस क्षेत्र में सक्षम नेतृत्व प्रदान किया।

उनका जन्म गुजरात के एक सम्पन्न जैन परिवार में हुआ था।

  • भारत अपने विशेषज्ञों के लिए विदेशों पर निर्भर नहीं रहेगा बल्कि खुद अपने हाथों से उनका निर्माण करेगा।
  • कुछ लोग विकासशील देशों में अंतरिक्ष सम्बन्धी कार्यकलापों की सार्थकता पर सवाल उठाते हैं। हमारे मन में इसकी सार्थकता संदेश से परे है। हमें आर्थिक रूप से विकसित देशों से के साथ चन्द्रयात्रा या ग्रहों की यात्रा या अंतरिक्ष में यान भेजने में कोई प्रतियोगिता नहीं करना है। लेकिन हमे यह विश्वास है कि एक राष्ट्र के रूप में यदि हमे सार्थक भूमिका निभानी है तो मानव और समाज की समस्याओं के हल के लिये उन्नत प्रौद्योगिकी के उपयोग में हमे किसी भी देश से पीछे नहीं रह सकते। -- "डॉ विक्रम साराभाई के व्याख्यान और शोधपत्रों की सूची" से
  • जो व्यक्ति कोलाहल में भी संगीत सुन सकता है, वह महान वस्तुएँ प्राप्त कर सकता है।
  • किसी देश का विकास अन्ततः उस देश के लोगों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी की समझ और उसके अनुप्रयोग पर निर्भर है। -- "विक्रम ए. साराभाई" से उद्धृत
  • मेरा मानना है जो व्यक्ति समय का सम्मान नहीं करता, और जिसे वक्त की परवाह नहीं होती वह कुछ खास हासिल नहीं कर पाता।
  • जब आप भीड़ से ऊपर खड़े होते हैं, तो आपको अपने ऊपर फेंके जाने वाले पत्थरों के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
  • आपका सफल नहीं होना असफलता नहीं है। असफलता वह होती है जिसमें आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास नहीं करते और लोककल्याण के कार्यों में अपना थोड़ा भी योगदान नहीं देते।
  • मेरा मानना है कि आधुनिक भौतिक विज्ञान अपनी उल्लेखनीय प्रगति के लिए प्राचीन भारतीय दार्शनिक अवधारणाओं और उस गणितीय ढांचे के अनुसंधान का ऋणी है जिसके तहत वे परिमाणात्मक रूप से सूत्रबद्ध किए जा सकते हैं।
  • हमारे राष्ट्रीय लक्ष्य में निहित होना चाहिए छोटे-छोटे विकासशील कदम उठाकर आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन की अवस्था से उस परिवर्तन को जल्द हासिल करना जिसमें दूसरे देशों को सैकड़ों साल लगे। इसलिए लिए जरूररी हर स्तर पर नवाचार (इनोवेशन) को अपनाना। -डॉ. विक्रम साराभाई
  • बाह्य अंतरिक्ष पर हुए समझौते का लाभ केवल पारस्परिक निर्भरता आधारित अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए उठाया जा सकता है।
  • यदि हमें समाज की वास्तविक समस्याओं के समाधान में विज्ञान और वैज्ञानिकों की मदद लेनी है, तो वैज्ञानिकों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपनी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र से बाहर जाकर लोगों की समस्याओं से परिचित हों।
  • आज नौकरशाही बहुत ज्यादा फूल गई है और इस कारण यह बोझ बन गई है। -डॉ. विक्रम साराभाई
  • दरअसल न कोई नेतृत्वकर्ता होता है, न कोई अनुसरणकर्ता। यदि किसी को हम नेतृत्वकर्ता मानते हैं तो वह निर्माता नहीं, किसान जैसा उत्पादक होगा। उसे मिट्टी, जलवायु और वैसा वातावरण मुहैया कराना होगा जिसमें बीज का विकास हो सके।
  • लोग ऐसे सरल और सुनम्य व्यक्तियों को चाहते हैं जो लोगों से खुद को नेतृत्वकर्ता मानने की मानसिकता से मुक्त हों।
  • जो व्यक्ति शोर के बीच भी संगीत सुन सकता है वह बड़ी चीजें हासिल करने की क्षमता रखता है।
  • सरकार सही मायने में क्या है? सरकार वह है जो “शासन” कम करे और उसकी बजाए लोगों की क्षमताओं को एकजुट करने के तरीके ढूंढ़े।
  • सहकारिता का ढांचा कभी भी नौकरशाही की विशाल व्यवस्था को बढ़ावा नहीं देता, क्योंकि इसे पता होता है कि विशाल नौकरशाही लोगों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील नहीं हो सकती।
  • हमारे वैज्ञानिक यदि कहीं बाहर से परामर्श लेते हैं तो हम उन्हें नीची निगाह से देखते हैं।
  • देश का विकास उसके नागरिकों द्वारा विज्ञान और प्रौद्योगिकी को समझने और उनके उपयोग के साथ गहराई से जुड़ा होता है।
  • मेरा परिवार गैर-रूढ़ीवादी परिवार था। बचपन मे मेरी परवरिश विवेक आधारित सत्य के सिद्धांतो पर हुई न कि इस बात पर कि समाज क्या सही मानता है।
  • मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि देश की सुरक्षा को खतरा केवल बाहर से नहीं होता अंदर से भी हो सकता है, यदि हम आर्थिक विकास की दर को कायम नहीं रखते।
  • किसी संगठन की शक्ति का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि विपत्ति का सामना वह कैसे करता है।
  • उचित सहायता मिले तो प्रतियोगिता सही वक्त पर लाभकारी होती है।
  • सामाजिक और आर्थिक मौलिक परिवर्तन क्रमिक रूप से धीरे-धीरे किया जाना चाहिए। जितनी सावधानी के साथ और विचारपूर्वक इसे लागू किया जाएगा उतना ही यह स्थायी होगा।