सामग्री पर जाएँ

वाल्मीकि

विकिसूक्ति से
  • मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥ -- रामायण, द्वितीय सर्ग[]
अरे निषाद ! तुमको अनन्त काल तक प्रतिष्ठा (शान्ति) न मिले, क्योकि तुमने प्रेम, प्रणय-क्रिया में लीन असावधान क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक की हत्या कर दी।
  • जैसा राजा का आचरण होता है, ठीक वैसा ही प्रजा भी आचरण करती है।
  • स्त्री या पुरुष के लिए क्षमा ही अलंकार है।
  • सत्य ही सबका मूल है और सत्य से बढकर कुछ भी नही है।
  • माता पिता की सेवा और उनकी आज्ञा पालन जैसा धर्म कोई नही है।
  • जन्म देने वाली मां और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढकर होता है।
  • पराये धन का अपहरण, पर स्त्री के साथ संसर्ग, सुहृदों पर अतिशंका – ये तीनों दोष विनाशकारी है।
  • अतिसंघर्ष से चंदन में भी आग प्रकट हो जाती है, उसी प्रकार बहुत अवज्ञा किए जाने पर ज्ञानी के भी हृदय में भी क्रोध उपज जाता है।
  • जीवन में सदैव सुख ही मिले यह बहुत दुर्लभ है।
  • आप साहसी या कायर, गुणवान है या दोष से भरे हुए यह आपका चरित्र से दिख जाता है।
  • जिस प्रकार चुहिया प्रत्येक दिन थोडा-थोडा खोद कर धरती में अपना बिल बनाती है, उसी प्रकार काल प्राणियों के जीवन को क्षण-प्रतिक्षण समाप्त करता जाता है।
  • किसी वादे को तोड़ने से आपके सारे अच्छे कर्म नष्ट हो जाते हैं।
  • नीच की नम्रता अत्यंत दुखदायी है, अंकुश, धनुष, सांप और बिल्ली झुककर वार करते हैं।
  • आपकी जन्मभूमि और जननी स्वर्ग से भी बढ़कर है।
  • दृढसंकल्प लेकर आप कोई भी काम आसान कर सकते हो।
  • संत दूसरों को दु:ख से बचाने के लिए कष्ट सहते रहते हैं, दुष्ट लोग दूसरों को दु:ख में डालने के लिए।
  • किसी व्यक्ति से ज्यादा मोह रखना भी दुःख का कारण बन सकता है।
  • विवाह योग्य स्त्रियां प्रत्येक देश में मिल सकती हैं। मित्र-परिजन भी प्रत्येक देश में प्राप्त हो सकते हैं। किन्तु मुझे कोई ऐसा देश दिखाई नहीं पड़ता, जहां सहोदर भाई मिल सकते हों।
  • तुम्हें गर्व, अहंकार और कुटिलता का परित्याग करना चाहिए। तुम्हें दूसरों की आलोचना की कभी चिंता नहीं करनी चाहिए।
  • संसार में ऐसे लोग थोड़े ही होते हैं,जो कठोर किंतु हित की बात कहने वाले होते हैं।
  • संतोष नन्दनवन है तथा शांति कामधेनु है। इस पर विचार करो और शांति के लिए श्रम करो।
  • परमात्मा ने जो कुछ तुमको दिया है, तुमको चाहिए कि उसके लिए परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करो। इस विषय में तुम्हे कृतघ्न नहीं होना चाहिए।
  • प्रियजनों सेमोहवश अत्यधिक प्रेम से यश भी चला जा सकता है।
  • किसी भी मनुष्य की इच्छाशक्ति अगर उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आसानी से कर सकता है। इच्छाशक्ति और दृढ़संकल्प मनुष्य को रंक से राजा बना देती है।
  • मनुष्य का आचरण ही बतलाता है कि वह कुलीन है या अकुलीन, वीर है या कायर अथवा पवित्र है या अपवित्र।
  • महत्वाकांक्षा से युक्त मन सदैव रिक्त रहता है। इसीलिए वह ठीक उसी प्रकार कहीं भी शांति प्राप्त नहीं करता, जैसे अपने समूह से बिछुड़ कर हिरण अशांत होता है।
  • माता पिता की सेवा करना सदैव कल्याणकारी होता है।
  • बिना अच्छे चरित्र के आप महान नहीं बन सकते।
  • जो व्यक्ति अपने पक्ष को छोड़कर दुसरो के पक्ष में मिल जाता है फिर उस पक्ष के नष्ट होने पर वह खुद ही नष्ट हो जाता है।
  • राजा को आदर्श व सच्चरित होना चाहिए क्योंकि वह प्रजापालक कहलाता है।
  • किसी के साथ अत्यंत प्रेम न करो और प्रेम का सवर्था अभाव भी न होने दो, क्योंकि ये दोनों ही महान दोष है, अत: मध्यम स्थिति पर ही दृष्टि रखो।
  • जो व्यक्ति वीर और बलवान होते है, वे जलहीन बादलों के समान खाली गर्जना नही करते है।
  • सहयोग करने वाले और सबसे मिलकर रहने वाले की सदैव जीत होती है।
  • मन इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के बाद भी ठीक वैसे ही कभी संतुष्ट नहीं होता, जैसे छिद्रयुक्त पात्र को कितना भी जल डाल कर भरा नहीं जा सकता।
  • अच्छे स्वाभाव वाले लोग अपने घर के सोने गहनों और मित्र में कोई फर्क नही समझते हैं।
  • संघर्ष से आप महान बन सकते है। आगे बढ़ना है तो संघर्ष जरूरी है।
  • संत पुरूष हमेशा लोगों को दुःख से बचाने के लिए कष्ट सहते हैं। जबकि दुष्ट प्रवित्ति के लोग दूसरों को हमेशा दुःख में डालने के लिए ही जीते हैं।
  • प्रियजनों से भी मोहवश अत्यधिक प्रेम करने से यश चला जाता है।
  • मित्र बनाना सरल है, मैत्री पालन दुष्कर है। चितों की अस्थिरता के कारण अल्प मतभेद होने पर भी मित्रता टूट जाती है।
  • अगर आपके अंदर उत्साह होगा तो आप असम्भव काम को भी संभव बना सकते हैं।
  • नारी के लिए वास्तव में उसका पति ही सम्पूर्ण आभूषण है। उससे पृथक रहकर वह कितनी भी सुंदर क्यों न हो सुशोभित नहीं होती।
  • संघर्ष से ही आप महान बन सकते है। यदि जीवन में आगे बढना है तो तो संघर्ष करना भी जरूरी है।
  • दुःख और संकट की घड़ी हमेशा बिना बताये और बिना बुलाये ही आते हैं।
  • उत्साह, सामर्थ्य और मन में हिम्मत न हारना ये कार्य की सिद्धि कराने वाले गुण कहे गये है।
  • असत्य के समान पातक पुंज नहीं है। समस्त सत्य कर्मों का आधार सत्य ही है।
  • क्रोध ही व्यक्ति के समस्त सद्गुणों का नाश करता है। इसलिए क्रोध का त्याग करो।
  • जो लोग गलत रास्ते पर चलते है, उन्हें कभी भी सच्चा ज्ञान नही प्राप्त होता है।
  • सहयोग और समन्वय की सदैव जीत होती है।

वाल्मीकि के बारे में सूक्तियाँ

[सम्पादन]
कूजन्तं राम रामेति मधुरं मधुराक्षरम्‌ ।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्‌ ॥
कविता (रूपी) शाखा पर चढ़कर जो 'राम-राम' के मधुर-मधुर अक्षरों का कूजित करते रहते हैं, उन वाल्मीकि रूपी कोकिल की वन्दना करता हूँ।

इन्हें भी देखें

[सम्पादन]

सन्दर्भ

[सम्पादन]
  1. वाल्मीकि रामायण (आई आई टी कानपुर)