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वक्रोक्ति

विकिसूक्ति से

वक्रोक्ति का शाब्दिक अर्थ है 'वक्र उक्ति' या 'टेढ़ी बात' । कुंतक ने भामह और दण्डी के समान वक्रोक्ति का व्यापक अर्थ लिया। उनके अनुसार वक्रोक्ति कहते हैं- वेदग्ध्य-भंगी भणिति को, अर्थात्‌ कविकर्म कौशल से उत्पन्न वैचित्रपपूर्ण कथन को। दूसरे शब्दों में, जो काव्यतत्त्व किसी कथन में लोकोत्तर चमत्कार उत्पन्न कर दे, उसका नाम वक्रोक्ति है। इसका तात्पर्य यह है कि लोकवार्ता से, या यों कहिए लोकिक सामान्य वचन से, विशिष्ट कथन ' वक्रोक्ति' के अंतर्गत आता हे। उन्होंने वक्रोक्ति को एक ओर तो “काव्य का अपूर्व अलंकार कहा ओर दूसरी ओर इसे 'विचित्रा अभिधा' (प्रकारान्तर से कहें, तो ' ध्वनि!) की संज्ञा प्रदान की। इससे प्रतीत होता है कि वह अलंकार और ध्वनि से प्रभावित होते हुए भी वक्रोक्ति को इन तीनों तत्त्वों की भांति व्यापक रूप से प्रतिपादित करना चाहते थे। वस्तुतः, ध्वनि के बहुसंख्यक भेदोपभेदों को जो कि पदांश से लेकर प्रबंध तक फैले हुए हैं-वक्रोक्ति के कलेवर में समाविष्ट करने के उद्देश्य से ही इन्होंने इस सिद्धांत का प्रतिष्ठापप किया और इसके अनेक भेदोपभेद प्रस्तुत किए।

कुन्तक-सम्मत वक्रोक्ति के छः प्रमुख भेद हैं :1. वर्णविन्यासवक्रता, 2. पदपूर्वार्धवक्रता, 3. पदपरार्धवक्रता, 4. वाक्यवक्रता, 5. प्रकरणवक्रता, 6. प्रबंधवक्रता।

उक्तियाँ

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