लोभ

विकिसूक्ति से
(लालच से अनुप्रेषित)
  • लोभमूलानि पापानि संकटानि तथैव च ।
लोभात्प्रवर्तते वैरं अतिलोभात्विनश्यति ॥
लोभ पाप का मूल (जड़) है , सभी संकटों का मूल भी लोभ है , लोभ के कारण ही शत्रुता होती है और बढ़ती है और अतिलोभ के कारण हि किसी का विनाश होता है।
  • लोभः पापस्य कारणम् (लोभ, पाप का कारण है।)
  • लालच बुरी बला है।
  • माखी गुड़ में गड़ि रही, पंख रही लपटाय।
तारी पीटै सिर धुनै, लालच बुरी बलाय॥ -- कबीरदास
भावार्थ- मक्खी जब गुड़ के लालच में अपने पंख फंसा देती है तब अपने हाथ पांव पटकने और सिर धुनने के बावजूद भी उसकी मुक्ति नहीं होती। लालच बुरी बला है।
  • काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान।
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान॥ -- तुलसीदास
जब किसी व्यक्ति पर काम, क्रोध, अहंकार और लालच हावी रहते हैं तब तक पण्डित और मूर्ख दोनों एकसमान होते हैं।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]