राजेन्द्र प्रसाद
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 3 दिसम्बर 1884 को बिहार के सीवान जिले के जीरादेई गांव में हुआ था। वे पढ़ाई लिखाई में अच्छे थे। उन्होंने कानून में मास्टर की डिग्री और डाक्टरेट की उपाधि हासिल कर रखी थी। उन्होने भारतीय संविधान के निर्माण में अपना खास योगदान दिया था। वे 1950 में देश के पहले राष्ट्रपति बने और 12 साल तक राष्ट्रपति पद पर बने रहे। साल 1962 में राष्ट्रपति पद से निवृत होने के बाद राजेंद्र प्रसाद को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वे एक उच्च कोटि के लेखक भी थे उन्होंने 1946 में अपनी आत्मकथा के अलावा और भी कई पुस्तकें लिखी जिनमें 'बापू के कदमों में' (1954), 'इंडिया डिवाइडेड' (1946), 'सत्याग्रह ऐट चंपारण' (1922), 'गांधी जी की देन', 'भारतीय संस्कृति' व 'खादी का अर्थशास्त्र' आदि कई रचनाएं शामिल हैं।
उद्धरण
[सम्पादन]- मंजिल को पाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए याद रहे कि मंजिल की ओर बढ़ता रास्ता भी उतना ही नेक हो।
- किसी की गलत मंशाएं आपको किनारे नहीं लगा सकतीं।
- जो बात सिद्धान्त में गलत है, वह बात व्यवहार में भी सही नहीं होती।
- हर किसी को अपनी उम्र के साथ सीखने के लिए खेलना चाहिए।
- जो मैं करता हूं, उन सभी भूमिकाओं के बारे में सावधान रहता हूँ।
- खुद पर उम्र को कभी हावी नहीं होने देना चाहिए।
- मैं एक ऐसे पड़ाव पर हूं, जहां खुद की उम्र को बेहद अच्छी तरह समझता हूँ।
- पेड़ों के आसपास चलने वाला अभिनेता कभी आगे नहीं बढ़ सकता।
- मैं जानता हूँ कि दस साल पहले किए गए काम दोबारा उसी शिद्दत से नहीं कर पाउँगा।
- आजकल का सिनेमा तड़क-भड़क और भावनाओं पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है।
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