रणजीत सिंह

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महारजा रणजीत सिंह (13 नवम्बर 1780 – 27 जून 1839) सिख साम्र्ज्य के प्रथम महाराजा थे। उन्होंने १९वीं शताब्दी के आरम्भिक काल में भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर राज किया। उन्हें 'पंजाब केसरी' (पंजाब का शेर) कहते हैं।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • मेरे लिए प्रजा ही सब कुछ है। यदि मेरी प्रजा दुखी और भूखी रहे और मेरे अन्न के भंडार भरे रहे तो मैं राजा बनने योग्य कैसे रहूंगा। सबका पेट भरना तो मेरा कर्तव्य है।
  • वेश बदलकर मैं अपनी प्रजा को ना देखूं तो मुझे कभी असली बात पता नहीं चलेगी। अधिकारियों की बातों का क्या, सत्य भी हो सकता है और झूठ भी।
  • मेरा राज्य एक महान राज्य है। मैं यह निष्कंटक राज्य अपने उत्तराधिकारी को सौपूंगा।
  • हर व्यक्ति भूल कर सकता है। केवल परमात्मा ही एक ऐसा है जो कभी भूल नहीं करता।
  • यह ईश्वर की इच्छा थी कि मैं सभी धर्मों को एक आंख से देखूं, इसलिए उसने मुझे एक आंख की रोशनी से वंचित कर दिया।
  • एक बार उनकी मुस्लिम बीबी मोहरा ने उनसे पूछा – “आप कहां थे जब अल्लाह सुंदरता बांट रहा था।” महाराजा ने उत्तर दिया – “तब मैं अपने लिए एक शक्तिशाली राज्य मांग रहा था।