माधवराव सप्रे

विकिसूक्ति से

माधवराव सप्रे (१८७१ - १९२६) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार एवं हिन्दी साहित्यकार थे।

विचार[सम्पादन]

  • मैं महाराष्ट्री हूँ, परन्तु हिंदी के विषय में मुझे उतना ही अभिमान है जितना किसी हिंदी भाषी को हो सकता है।
  • जिस शिक्षा से स्वाभिमान की वृत्ति जागृत नहीं होती वह शिक्षा किसी काम की नहीं।
  • विदेशी भाषा में शिक्षा होने के कारण हमारी बुद्धि भी विदेशी हो गई है।
  • यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी शिक्षा विदेशी भाषा में होती है और मातृभाषा में नहीं होती
  • अंग्रेज सरकार का राज्य, व्यवस्थित और शासन की दृष्टि से सुराज्य होने पर भी, हम लोगों के लिए सुखकारी या लाभदायक नहीं है और यदि हाल की पद्धति कायम रही तो होना भी संभव नहीं है, क्योंकि यह राज्य केवल गोरे राज्याधिकारियों की सलाह पर चलता है, जिन्हें हिंदुस्तान के हित की अपेक्षा गोरे लोगों का हित अधिक प्रिय है। (‘सुराज्य और सुराज्य’ नामक लेख में)
  • जब तक संघ शक्ति उत्पन्न न होगी तब तक प्रार्थना में कुछ जान नहीं हो सकती।
  • जेलखाने का शासन जैसा कष्ट देता है, उसी तरह अंग्रेजी राज्य-प्रबन्ध के कानून और कायदों से प्रजा चारों ओर से जकड़ी हुई है। अंग्रेजी व्यापारियों का भला करने के लिए, खुले व्यापार का तत्व शुरू करने से, इस देश का व्यापार डूब गया।
  • शिक्षा का प्रचार और विद्या की उन्नति इसलिये अपेक्षित है कि जिससे हमारे स्वत्व का रक्षण हो।