ब्राह्म समाज

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ब्राह्म समाज, हिन्दू धर्म में पहला सुधार आन्दोलन था जिस पर आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा का बहुत प्रभाव पड़ा था। इसकी स्थापना सन् 1828 में हुई। राजा राम मोहन राय इसके प्रवर्तक थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। जिस समय पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित हो तरूण बंगाली ईसाई धर्म की ओर आकर्षित हो रहे थे उस समय राजा राम मोहन राय हिन्दू धर्म के रक्षक के रूप में सामने आये। एक ओर उन्होंने पादरी प्रचारकों के विरूद्ध हिन्दू धर्म की रक्षा की और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म में आए झूठ और अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयत्न किया।

विचार[सम्पादन]

  • ईश्वर एक है और वह संसार का निर्माणकर्ता है। वह सभी गुणों का केंद्र एवं भण्डार है। इश्वर न तो कभी पैदा हुआ और न उसने कभी शरीर धारण किया।
  • आत्मा अमर है।
  • मनुष्य को अहिंसा अपनाना चाहिए।
  • सभी मानव समान है।
  • सभी जाति और वर्ण के लोग उसकी पूजा कर सकते हैं। पूजा शुद्ध हृदय से ही की जा सकती हैं, उसके लिए मंदिर, मस्जिद तथा एनी प्रकार के बाह्य आडम्बरों की कोई आवश्यकता नहीं।
  • पाप कर्म छोड़ने तथा उसके लिए पश्चाताप करने से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
  • किसी भी पुस्तक को दैवी मानने के ज़रूरत नहीं है क्योंकि सभी में कोई न कोई त्रुटि होती है। मानसिक ज्योति और विशाल हृदय से ही ईश्वर के बारें में ज्ञान प्राप्त हो सकता हैं।

समाजिक सिद्धान्त[सम्पादन]

  • भारतीय समाज में जातीय भेदभाव और छुआछूत का अंत होना चाहिए क्योंकि इन बुराइयों के रहते कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता हैं।
  • समाज में अंधविश्वास एवं रूढिवादिता का अंत तथा विवेक सम्मत व्यवहार होना चाहिए।
  • बाल-विवाह प्रथा, बहुविवाह प्रथा, सतीप्रथा और भ्रूण हत्या का अंत होना चाहिए।
  • समाज में विधवा-विवाह का प्रचलन होना चाहिए।