फणीश्वरनाथ रेणु

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फणीश्वर नाथ 'रेणु' (4 मार्च 1921-11 अप्रैल 1977) हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। उनके पहले उपन्यास 'मैला आंचल' लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनका जन्म बिहार के अररिया जिले में फॉरबिसगंज के पास औराही हिंगना गाँव में हुआ था। उनकी शिक्षा भारत और नेपाल में हुई। इन्टरमीडिएट के बाद वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। बाद में 1950 में उन्होने नेपाली क्रांतिकारी आन्दोलन में भी हिस्सा लिया। उनकी लेखन-शैली वर्णणात्मक थी। पात्रों का चरित्र-निर्माण काफी तेजी से होता था। उनका लेखन प्रेमचंद की सामाजिक यथार्थवादी परmपरा को आगे बढाता है। उनकी साहित्यिक कृतियाँ हैं; उपन्यास: मैला आंचल, परती परिकथा, जूलूस, दीर्घतपा, कितने चौराहे, पलटू बाबू रोड; कथा-संग्रह: एक आदिम रात्रि की महक, ठुमरी, अग्निखोर, अच्छे आदमी; रिपोर्ताज: ऋणजल-धनजल, नेपाली क्रांतिकथा, वनतुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्वे । 'तीसरी कसम' पर इसी नाम से प्रसिद्ध फिल्म बनी ।

उद्धरण[सम्पादन]

डॉ० प्रशान्त का कथन[सम्पादन]

  • दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें नहीं मालूम। पता नहीं आदमी लंग्स को दिल कहता है या हॉर्ट को। जो भी हो हार्ट, लंग्स, लीवर का प्रेम से कोई सम्बन्ध नहीं है।
  • क्या करेगा वह संजीवनी बूटी खोजकर ? उसे नही चाहिए संजीवनी। भूख और बेबसी से छटपटाकर मरने से अच्छा है मैलेग्नेट मलेरिया से बेहोश होकर मर जाना। तिल-तिलकर घुल-घुलकर मरने के लिए उन्हें जिलाना बहुत बड़ी क्रूरता होगी।
  • ममता ! मैं फिर काम शुरु करूंगा, यहीं इसी गांव में ! मैं प्यार की खेती करना चाहता हूँ। मैं साधना करुँगा ग्रामवासिनी भारतमाता के मैले आँचल तले।
  • आह ! एक बूंद आई ड्रॉप के बगैर दो सुन्दर आँखें सदा के लिए ज्योतिहीन हो गईं। (डॉ० प्रशान्त निर्मला की आंखे देखते हुए कहता है।)
  • आदमी के दिल होता है, शरीर की चीर फाड़ कर जिसे हम नहीं पा सकते । वह हार्ट नहीं आगम-अगोचर जैसी चीज है जिसमें दर्द होता है लेकिन जिसकी दवा एड्रिलीन नहीं । उस दर्द को मिटा दो आदमी जानवर हो जाएगा । दिल वह मंदिर है जिसमें आदमी के अन्दर का देवता वास करता है।

बालदेव के कथन[सम्पादन]

  • तुम तो आज आए हो, हम सन् तीस से जानते हैं। टीक-मोंछ काटकर मुर्गी का अंडा खिलाकर कामरेड बनाया जाता है। कफ जेहल में कितने लोगों को कामरेड होते देखा है। मुजफ्फरपुर कू एक सोशलिस्ट नेता थे। उनका काम यही था, लोगों की टीक मोंछ काटना। (बालदेव , कालीचरण से)
  • तब कोठारिनी जी से कहा जाय । अब तो खद्धड़ पहनती हैं खूब नेमटेम भी करती हैं। रोज नहाने के बाद महतमाजी की छाती पर फूल चढ़ाती हैं।
  • हमने भारत माता का नाम, महात्मा जी का नाम लेना नहीं बंद किया है। मलेटरी ने हमको नाखुन में सुई गड़ाया तिस पर भी हम इस-बिस नहीं किएं। आखिर हार कर जेलखाना में डाल दिया।
  • कांग्रेस पूंजीपतियों की भ्रष्ट संस्था है।

कालीचरण के कथन[सम्पादन]

  • यह जो लाल झंडा है, आपका झंडा है, जनता का झंडा है, अवाम का झंडा है, इकालाब झण्डा है। इसकी लाली उगते हुए आफताब की लाली है। यह खुद आफताब है । इसकी लाली, इसका रंग क्या है? रंग नहीं। यह गरीबों, महरूमों, मजदूरों, के खून में रंगा हुआ झंडा है।
  • जात दो ही है एक गरीब और दूसरी अमीर।
  • एक असहाय औरत देवता के संरक्षण में भी सुख-चैन से नहीं सो सकती है। (कालीचरण ने मंगला के लिए कहा)
  • कमाने वाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो। किसान राज कायम हो मजदूर राज कायम हो।

ममता के कथन[सम्पादन]

  • डॉक्टर ! रोज डिस्पेंसरी खोलकर शिवजी की मूर्ति पर बेलपत्र चढाने के बाद, संक्रामक और भयानक रोगों के फैलने की आशा में कुर्सी पर बैठे रहना, अथवा अपने बंगले पर सैकड़ों रोगियों की भीड़ जमा करके रोग की परीक्षा करने के पहले नोटों और रुपयों की परीक्षा करना, मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों पर पांडित्य की वर्षा करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री समझना और अस्पताल में कराहते हुए गरीब रोगियों के रूदन को जिंदगी का एक संगीत समझकर उपभोग करना ही डॉक्टर का कर्त्तव्य नहीं ! -- मैला आँचल , ममता द्वारा डॉक्टर को लिखे गए एक पत्र में
  • कोई रिसर्च की असफल नहीं होता है डॉक्टर ! तुमने कम से कम मिट्टी को तो पहचाना है। मिट्टी और मनुष्य में मोहब्बत छोटी बात नहीं। -- ममता का कथन
  • मिट्टी और मनुष्य में गहरी मोहब्बत किसी लेबोरेटरी में नहीं बनती। -- ममता का कथन
  • मिट्टी और मनुष्य के कल्याण तथा संस्कृति से विरहित होकर विज्ञान विश्व के लिए अभिशक्त हो उठा है। युद्ध के विषैले गैसों के सारे समाज के मानवों को विकृत कर दिया है। साम्राज्य लोभी शासकों को संगीनों के साये में वैज्ञानिकों दल खोज कर रहे हैं, प्रयोग कर रहे हैं, एटम ब्रेक कर रहा है, मकड़ी की जाल की तरह। चारों ओर मह अंधकार। सब वाष्प। प्रकृति पुष्प अंड पिंड। मिट्टी और मनुष्य के शुभचिंतक छोटी सी टोली अंधेरे में टटोल रही है।

अन्य कथन[सम्पादन]

  • बिलैती कपड़ा के पिकेटिंग के जमाने में चानमल-सागरमल के गोला पर पिकेटिंग के दिन क्या हुआ था, सो याद है तुमको बालदेव ? चानमल मड़बाड़ी के बेटा सागरमल ने अपने हाथों सभी भोलटियरों को पीटा था; जेहल में भोलटियरों को रखने के लिए सरकार को खर्चा दिया था। वही सागरमल आज नरपतनगर थाना कांग्रेस का सभापति है। और सुनोगे ?...दुलारचन्द कापरा को जानते हो न? वही जुआ कम्पनीवाला, एक बार नेपाली लड़कियों को भगाकर लाते समय जो जोगबनी में पकड़ा गया था। वह कटहा थाना का सिकरेटरी है।...भारथमाता और भी, जार-बेजार रो रही हैं। -- बावनदास, बालदेव से
  • पिकेटिंग के समय कांग्रेस के वालेटियरों को पीटने वाला चानमल मारवाड़ी का बेटा सागरमल नरपत नगर थाना कांग्रेस का सभापति है जबकि नेपाल से लड़कियों भगाकर लाने वाला दुलारचंद कापरा कटहा थाने का सेक्रेटरी है। -- बावनदास
  • अब लोगों को चाहिए की अपनी अपनी टोपी पे लिखवा लें - भूमिहार, राजपूत, कायस्थ, यादव, हरिजन !... कौन काजकर्ता किस पार्टी का है, समझ में नहीं आता। -- बावनदास मन में सोचता है
  • कमली डॉ प्रशांत से, हरगौरी अपनी मौसेरी बहन से, बालदेव कोठारिन (लछमी) से, कालीचरण चर्खा स्कूल की मास्टरनी से प्रेम करते हैं। -- सहदेव
  • डॉक्टर से इतना हेल-मेल बढ़ाना ठीक नहीं है, वह उनकी आंखों में झॉककर यह सोचकर कॉप जाती है कि कही उसने अपने आंचल को तो मेला नहीं कर लिया है। -- कमली की मां कमली से
  • "चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के, से कब होइ है गवना हमार हो भउजिया।" -- (गाड़ीवाले का दल यह गीत गाता हुआ चल रहा है)
  • भाई आदमी को एक ही रंग में रहना चाहिए यह तीन रंग का झंडा थोड़ा सादा, थोड़ा लाल और पीला, यह है तो खिचड़ी पार्टी का झंडा है। कांग्रेस तो खिचड़ी पार्टी है। इसमें जमीदार है, सेठ लोग हैं और पासंग मारने के लिए थोडे किसान,मजदूरों को भी मेंबर बना लिया गया है। गरीबों को एक ही रंग के झंडे वाली पार्टी में रहना चाहिए। -- वासुदेव का कथन
  • सुबह में रोने का कारन पूछने पर चुपचाप टुकर-टुकर मुंह देखने लगती थी ठीक गाय की बाछी की तरह जिसकी मां मर गई हो। -- लछमी के बारे में कहा गया
  • खेलावन यादव को देखा यादवों की ही जमीन हड़प रहा है।… देख लो आंख खोलकर गाँव में सिरिफ दो जात हैं। अमीर-गरीब। -- रेणु रचनावली, भाग २, पृष्ठ176
  • सिर्फ हिन्दू कह देने से ही पिंड नहीं छूट सकता। ब्राह्मण हैं? कौन ब्राह्मण? गोत्रा क्या है? मूल क्या है?” -- रेणु रचनावली भाग २, पृष्ठ 60
  • तहसीलदार साहब की बेटी कमली जब गमकौआ साबुन से नहाने लगती है तो सारा गाँव गम-गम करने लगता है। -- मैला आंचल
  • माघ का जाड़ा तो बाघ को भी ठंडा कर देता है। -- मैला आंचल
  • मैं प्यार की खेती करना चाहता है। आँसू से भीगी हुई धरती पर प्यार के पौधे लहलहाएँगे। -- मैला आंचल
  • गणेश की नानी बुढ़ापे में भी जिसकी सुंदरता नष्ट नहीं हुई, जिसके चेहरे की झुर्रियों ने एक नई खूबसूरती ला दी है। सिर के सफेद बालों के घुँघराले लट। होंठो की लाली ज्यों की त्यों है। -- मैला आंचल


  • दुनिया दूषती है
हँसती है
उँगलियाँ उठा
कहती है—
कहकहे कसती है–
राम हे राम!
क्या पहरावा है
क्या चाल-ढाल
सबड़-भबड़
आल-जाल-बाल
हाथ में लिया है भेख?
जटा या केश?
जनाना-ना-मर्दाना
या जन–––
आ-खा-हा-हा
हीं-हीं
-- कवि रेणु कहे (कविता-संग्रह) पृष्ठ-45
  • कांग्रेस की करो चाकरी, योग्य सदस्य बनाओ,
परम पूज्य काले परवाना खुलकर मौज उड़ाओ।
जोगी जी सर-र-र-––
ख़ाली पहनो, चाँदी काटो, रहे हाथ में झोली
दिनदहाड़े करो डकैती, बोल सुदेशी बोली।
जोगी जी सर-र-र–
-- मँगरू मियाँ के नए जोगोड़े (कविता-संग्रह) पृष्ठ-98 ; गांधीजी के कुछ अनुयायियों पर जो छल-कपट तथा "खाओ-पियो मौज उड़ाओ” की राजनीति किये जा रहे थे।

मैला आँचल तथा साहित्य सम्बन्धी रेणु के विचार[सम्पादन]

  • * इसमें फूल भी है शूल भी, धूल भी है गुलाब भी, कीचड भी है चंदन भी, सुन्दरता भी कुरुपता भी मैं किसी से भी दामन बचााकर निकाल नहीं पाया। -- रेणु ने उपन्यास की भूमिका में मैला आँचल के बारे में
  • सूक्ष्मता से देखना और पहचानना साहित्यकार का कर्तव्य है, परिवेश से ऐसे ही सूक्ष्म लगाव का संबंध साहित्य से अपेक्षित है।
  • एक कीड़ा होता है अँखफोड़वा, जो केवल उड़ते वक़्त बोलता है भनु-भनु-भन्! क्या कारण है कि वह बैठकर नहीं बोल पाता? सूक्ष्म पर्यवेक्षण से ज्ञात होगा कि यह आवाज़ उड़ने में चलते हुए उसके पंखों की है।
  • साहित्यकार को चाहिए कि वह अपने परिवेश को संपूर्णता और ईमानदारी से जिए।
  • साहित्य की पौध बड़ी नाज़ुक और हरी होती है। इसे राजनीति की भैंस द्वारा चर लिए जाने से बचाए रख सकें तभी फ़सल हमें मिल सकती है।
  • लेखक के संप्रेषण में ईमानदारी है तो रचना सशक्त होगी, चाहे जिस विधा की हो।
  • मैं फुल टाइम साहित्य करने के पहले राजनीति करता था, यानी पार्टी में था किसान मजदूरों के बीच। किसानों की कई एक बड़ी लड़ाइयाँ लड़ीं। मज़दूर आंदोलनों में सक्रिय भाग लेता रहा। राजनीतिक पार्टी का सदस्य न होकर भी आदमी राजनीति कर सकता है—यह बात लोगों के दिमाग़ में अटेगी भी नहीं। मेरी रचनाएँ ख़ासकर मैला आँचल, परती परिकथा, तथा दीर्घतपा, जुलूस, कितने चौराहे सभी राजनीतिक समस्याओं एवं विचारों के ही प्रतिफल हैं। -- राजनीति के संदर्भ में एक साक्षात्‌कार में
  • धान की इतनी अच्छी फसल, जितनी अच्छी इस साल है, हो तो खेती करने में कविता करने का आनंद है। खेती और कविता में जरा भी फर्क नहीं लगता। मेरे विचार से तो अभी एक बीघा खेत में खेती कर लेना पांच लेख और पांच कहानियाँ लिखने से ज्यादा फायदेमंद है। -- कथाकार सुवास कुमार से, अपने गाँव में (रेणु रचनावली, भाग 4)
  • लेखक अपने प्रारंभिक दौर में ही ऊर्जावान और उत्साही रहता है। इसी उम्र में कुछ क्रान्तिकारी विचार आते हैं। विचारों में कुछ आग होती है। उम्र ढलने के साथ वह आग बुझ जाती है। किसी की कृति का मूल्यांकन उसकी प्रारम्भिक पुस्तक के आधार पर करना चाहिए। यदि आग रहते सम्मान नहीं किया तो चुक जाने के बाद तो निर्जीव शरीर को सुन्दर कपड़े पहना देने के बराबर है। चाहिए यह भी कि जो तथाकथित क्रांतिकारी, नक्सलवादी या और उग्रवादी साहित्य है उस पर भी पूर्ण विचार हो, बातचीत हो तभी पुरस्कार देने की घोषणा की जाए। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास किताब छापने का काम करे तथा साहित्य अकादेमी पुस्तक को परखने का कार्य करे। नये लोगों के विचार को तरजीह देनी चाहिए। मैं रचनात्मक क्रियाशीलता का पक्षधर हूँ। -- साहित्य अकादेमी की पुरस्कार नीति पर (४ मार्च १९७३)

फणीश्वरनाथ रेणु और उनके साहित्य पर विचार[सम्पादन]

  • हिंदी उपन्यास साहित्य में आंचलिकता की एक नई धारा को जन्म देने वाले महान कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु की प्रथम उपन्यास एक कृति “मैला आँचल” अपने प्रसिद्धि और सफलता के बावजूद कुछ साहित्यकारों के द्वारा उसकी मौलिकता पर लगाए गए प्रश्न चिह्न से आहत हुई है। -- डॉ. कलानाथ मिश्र, परिषद पत्रिका के एक अंक में
  • रेणु की संपूर्ण कहानियों में मूलत: गाँवों में पलते छोटे-छोटे सपने एवं अरमानों के चित्र हैं तथा इन्हें पूरा करने में संघर्षरत लोग अपनी समस्त बुराइयों के बावजूद वे अपने भीतर के इंसान को कभी मरने नहीं देते या तो वे जीतते हैं या हार कर भी हार को स्वीकार नहीं करते। शहरी सभ्यता या यूँ कहें शहरों में सभ्य होने का जो ढोंग हम करते हैं उस पर यह कहानियाँ कालिख पोतती-सी नज़र आती हैं। -- डॉ० अनीता राकेश ने “रेणु की संपूर्ण कहानियाँ” शीर्षक से लिखे अपने आलेख में
  • रेणु भारतीय गाँव के अनोखे और सच्चे कथाकार हैं। प्रेमचंद की तरह प्रामाणिक। रेणु को प्रेमचन्द और शरतचन्द्र के बीच कहीं रखा जा सकता है। रेणु में प्रेमचंद की तरह ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को पकड़ने और शरद की तरह मानवीय स्थितियों और स्त्री-पुरुष संबंधों की जटिलताओं को पहचानने की कोशिश दिखलाई देती है। रेणु की कहानियाँ मुख्यतः मानव संबंधों की कहानियाँ हैं। -- आशीष त्रिपाठी
  • रेणु जी को अनेक स्थानों पर घनघोर उपेक्षा का शिकार होना पड़ा क्योंकि वह कहानियों के उस दौर में फ़िट नहीं बैठ रहे थे और यही कारण है कि आगे चलकर बहुत बाद उनकी कहानियों ने प्रसिद्धि प्राप्त की। -- भारत यायावर
  • 'कितने चौराहे' नामक उपन्यास स्वाधीनता आन्दोलन का औपन्यासिक अभिलेख प्रतीत होता है। इस लघु उपन्यास में किशोर नामक मनमोहन के राष्ट्रीय व्यक्तित्व का विकास क्रम चित्रित हुआ है। यह राष्ट्रीय बोध के विकास क्रम का उपन्यास है। इस विकास क्रम के अनेक चौराहे आते हैं। ऐसा लगता है कि मनमोहन (मुनि जी) के रूप में रेणु जी का कैशोर्य विकसित होता है। आइरिस कोर्ट के स्कूल में पहुँचकर मुनि जी क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ा प्रियवत राय से राष्ट्रीयता, स्वराज साधन, संघर्ष एवं सेवा की दीक्षा पाता है। -- डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद
  • रेणु अद्भुत कथाकार थे — कुछ हद तक शरद की तरह। रेणु ने कथा वाचन के साथ खुलकर प्रयोग किए हैं। अपने उपन्यासों और कहानियों में भी। कथा के भीतर कथा और अतीत के भीतर धड़कते हुए वर्तमान को रेणु बड़ी सहजता से प्रस्तुत करते हैं। कथा वाचन के अनेक स्तरीयता में मौजूद जातीय संभावनाओं का उपयोग रेणु जी ने अपने आशय को व्यक्त करने के लिए किया है। -- विद्या सिन्हा, अपने एक आलेख में
  • धरती के सच और इतिहास की चेतना को फणीश्वर नाथ रेणु ने एक साथ आत्मसात किया था। उनकी रचनाएँ इसका प्रमाण है गाँव के खेत-खलिहान, पर्व-त्यौहार, गीत, कथा, रीति-रिवाज़, टोन, भाषा-बोली, मुहावरे, मिज़ाज, तेवर, सोच, मानसिकता, क्रिया-प्रतिक्रिया, जाति-गठन, सामाजिक बनावट, शक्ति-संतुलन, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक यथार्थ, निरंतर होनेवाला परिवर्तन जनित दबाव, इन सब की आपसी अनावश्यक टकराहटें, व्यक्ति समूह और समाज के आपसी बनते-बिगड़ते रिश्ते, प्रकृति के विभिन्न रूप, प्रकृति और मनुष्य का अंतर्संबंध—सब एक जादुई संतुलन में बँधे रेणु के कथा विधान में इस तरह उतरते हैं जैसे साक्षात्‌ एक स्थान (गाँव, क़स्बा, शहर) अपने सारे कार्य-व्यापारों और धड़कनों के साथ वह मूर्त हो रहा हो। -- आधुनिक हिंदी साहित्य के कीर्ति-स्तम्भ, सम्पादक-योगेन्द्र दत्त शर्मा, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, पृष्ठ-192 (ISBN978-81-230-1671-9)