कोई अक्षर ऐसा नहीं है जिससे (कोई) मन्त्र न शुरु होता हो, कोई ऐसा मूल (जड़) नहीं है, जिससे कोई औषधि न बनती हो और कोई भी व्यक्ति अयोग्य नही होता, उसको काम मे लेने वाले ही दुर्लभ हैं।
भीष्म और द्रोण जिसके दो तट हैं, जयद्रथ जिसका जल है, शकुनि ही जिसमें नीलकमल है, शल्य जलचर ग्राह है, कर्ण तथा कृपाचार्य ने जिसकी मर्यादा को आकुल कर डाला है, अश्वत्थामा और विकर्ण जिस के घोर मगर हैं, ऐसी भयंकर और दुर्योधन रूपी भंवर से युक्त रणनदी को केवल श्रीकृष्ण रूपी नाविक की सहायता से पाण्डव पार कर गये।
कालो वा कारणं राज्ञो राजा वा कालकारणम्।
इति ते संशयो मा भूद्राजा कालस्य कारणम्॥ -- महाभारत, शान्तिपर्व
राजा का कारण काल है, या काल का कारण राजा है, ऐसा सन्देह तुम्हारे मन में नहीं उठना चाहिए; क्योंकि राजा ही काल का कारण होता है। ( राजा का कारण तत्कालीन परिस्थिति है, या राजा तत्कालीन परिस्थिति का कारण है, इस सम्बन्ध में सन्देह ना रहे; राजा (ही) तत्कालीन परिस्थिति का कारण है। )
कोऽतिभारः समर्थानामं किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥ -- पंचतंत्र
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ? व्यवस्सयियों के लिये दूर क्या है? विद्वानों के लिये विदेश क्या है? प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया है ?
देवता पशुपालक की भाँति दण्ड लेकर रक्षा नहीं करते। वे जिसकी रक्षा करना चाहते हैं उसे बुद्धि प्रदान कर देते हैं।
२०वीं शताब्दी के प्रबन्धन का सबसे महत्वपूर्ण और वस्तुतः अनन्य योगदान यह था कि उसने विनिर्माण के श्रमिकों की उत्पादकता को ५० गुना बढ़ा दिया।-- पीटर ड्रकर
उस व्यक्ति को प्रबन्धक के पद पर नहीं नियुक्त किया जाना चाहिये जिसकी दृष्टि मनुष्य की शक्ति के बजाय पर केन्द्रित होने के उसकी कमजोरियों पर केन्द्रित रहती हो।-- पीटर ड्रकर
प्रबन्धक लक्ष्य निर्धारित करता है, प्रबन्धक संगठित करता है, प्रबन्धक मोटिवेट करता है और अपनी बात सामने रखता है, प्रबन्धक एक मापदण्ड स्थापित करते हुए (कार्य का) मापन करता है, - प्रबन्धक लोगों का विकास करता है।-- पीटर ड्रकर