पुण्य

विकिसूक्ति से
  • भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर वरांगना।
विभवो दानशक्तिश्च नाऽल्पस्य तपसः फलम्॥ -- चाणक्य
भोजन और भोजनशक्ति, रतिशक्ति और सुन्दर स्त्री, वैभव और दानशक्ति - ये अल्प तप के फल नहीं हैं।
  • एकतः क्रतवः सर्वे सहस्त्रवरदक्षिणा ।
अन्यतो रोगभीतानां प्रााणिनां प्रााणरक्षणम् ॥
एक ओर सब को अच्छी दक्षिणा दे कर विधिपूर्वक किया गया यज्ञ कर्म तथा दूसरी ओर दुःखी और रोग से पीड़ित प्राणियों के प्राण की रक्षा करना - ये दोनों ही कर्म एक जैसे (पुण्यप्रद) हैं।
  • तुलसी काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप पुण्य दोउ बीज हैं, बुवै सौ लुनै निदान॥ -- तुलसीदास
तुलसीदास कहते हैं कि हमारा शरीर एक खेत है और मन किसान है तथा पाप व पुण्य दोनों बीज हैं। इस खेत में जिस प्रकार का बीज बो कर खेती होती है, वैसी फसल प्राप्त होती है।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]