पवन
दिखावट
- द्रुमाः सपुष्पाः सलिलं सपद्मम्
- स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः ।
- सुखाः प्रदोषाः दिवसाश्च रम्याः
- सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते ॥ -- कालिदास (ऋतुसंहार में)
- कान्तारं न यथेतरो ज्वलयितुं दक्षो दवाग्निं विना
- दावाग्निं न यथेतरः शमयितुं शक्तो विनाम्भोधरम् ।
- निष्णातं पवनं विना निरसितुं नान्यो यथाम्भोधरम्
- कर्मौघं तपसा विना किमपरं हर्तुं समर्थं तथा ॥
- जिस तरह दावाग्नि के अतिरिक्त अन्य कोई वन को जलाने में प्रवीण नहीं, जिस तरह दावाग्नि के शमन में बादलों के सिवा अन्य कोई समर्थ नहीं, और निष्णात पवन के अलावा अन्य कोई बादलों को हटाने शक्तिमान नहीं, वैसे तप के अलावा और कोई, कर्मप्रवाह को नष्ट करने में समर्थ नहीं।
- गगन चढहिं रज पवन प्रसंगा ।
- कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ॥ -- गोस्वामी तुलसीदास
- हवा का साथ पाकर धूल आकाश पर चढ जाता है, और वही धूल नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है।
- कूजहिं खग-मृग नाना वृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनन्दा॥
- सीतल सुरभ पवन वह मन्दा। गुंजत अलि लै चलि मकरन्दा॥ -- तुलसीदास
- लोल लहर लहि पवन एक पैं इक इमि आवत।
- जिमि नरगन मन बिबिध मनोरथ करत मिटावत ॥ -- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (सत्य हरिश्चन्द्र में)
- हृदय उस चित्र की भांति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झकोरा भी उसे हटा देता है। - प्रेमचन्द
- यदि आप अपने रहस्य पवन पर खोल देते हैं तो वृक्षों में बात फैल जाने का दोष पवन पर मत मढ़ें। -- ख़लील जिब्रान