नास्तिकता
नास्तिकता वह विचारधारा है जो मानती है कि भगवान, गॉड, अल्लाह आदि का अस्तित्व नहीं हैं और ये केवल कल्पनाएँ हैं। जो इस विचार को मानते हैं उन्हें नास्तिक कहते हैं। नास्तिक शब्द 'नास्ति' में क प्रत्यय लगाकर बना है। नास्ति = न + अस्ति = नहीं है (भगवान/अल्लाह/गॉड)।
उद्धरण
[सम्पादन]- यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
- भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ॥
- त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचराः । -- चार्वक
- जब तक जीयें, सुख से जीना चाहिये। कर्ज लेकर घी पीना चाहिये। देह के भ्स्म हो जाने के बाद उसका पुनः धरती पर आन कैसे सम्भव है?
- जो नास्तिक हैं उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भगवान में विश्वाश करना चाहिए इसी में उनका हित है। -- ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
लोकायत दर्शन के उद्धरण
[सम्पादन]1. पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि) और वायु – ये चार ही तत्त्व हैं।
2. इन चारों के संयोग से शरीर, इन्द्रिय और विषय बनते हैं।
3. प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है।
4. अनुमान कोई प्रमाण नहीं है।
5. काम ही पुरुष है।
7. चैतन्ययुक्त शरीर ही आत्मा है।
8. लौकिक मार्ग ही अनुसरण करें।
9. मरण ही मोक्ष है।
10. लोकायत ही एकमात्र दर्शन है।
11. इस संसार के अतिरिक्त और कोई दूसरा संसार नहीं है। न तो स्वर्ग है न नरक। शिवलोक या ऐसे ही लोकों की बातें धूर्तों ने गढ़ी हैं।
12. बुद्धिमान लोगों को मोक्ष के लिए कष्ट उठाने की जरूरत नहीं है। मूर्ख ही तप और व्रत आदि से शरीर को शक्तिहीन और निर्बल बनाते हैं।
13. अग्निहोत्र, कर्मकांड, तीन वेद, त्रिदण्ड, भस्म लेपन आदि उन लोगों के जीविका कमाने के साधन हैं, जिनके पास बुद्धि और शक्ति का अभाव है।
14. बुद्धिमान लोगों को, इस संसार के सुख प्रदान करने वाले साधन, जैसे – पशुपालन, कृषि, व्यापार, राजनीतिक, प्रशासन आदि के जरिये प्राप्त करना चाहिए।
15. जहाँ तक संभव हो सुख का आनंद लेने और दुःख-दर्द से बचने में ही ज्ञान निहित है।