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जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन

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जार्ज ग्रियर्सन (१८५१-१९४१) इंडियन सिविल सर्विस के अधिकारी थे। वर्षों तक वे बिहार में मिथिला के परगना अधिकारी (एस.डी.ओ.) रहे। जार्ज ग्रियर्सन की "लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया" भारत के कोने-कोने की एक-एक भाषा और बोली के श्रमपूर्वक संकलित नमूनों के साथ अमूल्य भाषा परिवारों की जानकारी देने वाला अक्षय स्रोत है।

देशी भाषाओं के अध्ययन का उद्देश्य लेकर ग्रियर्सन सन १८७३ में भारत आये थे। अपने अध्ययन के क्रम में ही उन्होंने अनुभव किया कि तुलसी या कबीर के दोहे और चौपाइयां लोगों से जीवंत और सहज संबंध बनाने में काफी मददगार साबित होती हैं। धीरे-धीरे उनकी रूचि तुलसी के प्रति बढ़ती गयी। उन्होंने १८८६ में प्राच्यविदों की बर्लिन सभा में तुलसी विषयक अपना एक परचा पढ़ा था जिसका शीर्षक था ‘द मॉडर्न वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ़ हिन्दुस्तान, विद स्पेशल रिफरेन्स टू तुलसीदास’।

ग्रियर्सन पर भारतीय विद्वानों का विचार प्रशंसा और आलोचना से मिला-जुल है। महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा जैसे गंभीर अध्येता ग्रियर्सन के लेखन पर गंभीर आरोप लगाते हैं। रामविलास शर्मा अपनी पुस्तक 'भाषा और समाज' में ग्रियर्सन की संस्कृत संबंधी और हिंदी-संस्कृत संबंध के बारे में रखी गई मान्यताओं का खण्डन करते हैं। ग्रियर्सन की भाषा-नीति में रामविलासजी विद्वेष के बीज और ब्रिटिश कूटनीति का प्रसार देखते हैं। रामविलास जी ने लिखा है कि 'बिहारी भाषा' ग्रियर्सन का अविष्कार थी।

विचार

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  • हिंदी, संस्कृत की बेटियों में सबसे अच्छी और शिरोमणि है।
  • भारत के इतिहास में तुलसीदास का महत्व जितना भी अधिक आँका जाता है वह अत्यधिक नहीं है। इनके ग्रंथ के साहित्यिक महत्व को यदि ध्यान में न रखा जाए, तो भी भागलपुर से पंजाब और हिमालय से नर्मदा तक के विस्तृत क्षेत्र में, इस ग्रंथ का सभी वर्ग के लोगों में समान रूप से समादर पाना निश्चय ही ध्यान देने के योग्य है। ...पिछले तीन सौ वर्षों में हिंदू समाज के जीवन, आचरण और कथन में यह घुल-मिल गया है और अपने काव्यगत सौंदर्य के कारण वह न केवल उनका प्रिय एवं प्रशंसित ग्रंथ है, बल्कि उनके द्वारा पूजित भी है और उनका धर्म ग्रंथ हो गया है। यह दस करोड़ जनता का धर्मग्रंथ है और उनके द्वारा यह उतना ही भगवत्प्रेरित माना जाता है, अँग्रेज पादरियों द्वारा जितना भगवत्प्रेरित बाइबिल मानी जाती है। -- 'द मॉडर्न व वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान' (अनुवाद - किशोरी लाल गुप्त), बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पृ.124
  • जिस काम को टॉड इतनी गौरवपूर्ण शब्दावली में पहले ही कर गए हैं, उसी को पुनः करने की और भारतीय साहित्य पर लगाए गए इस आरोप को कि इसमें ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं हैं, ये राजपूत चारण किस प्रकार पूर्णतया निराधार सिद्ध कर देते हैं, यह संकेत करने की कोई आवश्यकता यहाँ नहीं प्रतीत होती। चारणों द्वारा प्रस्तुत इन वृतांतों का महत्व, जिनमें से कुछ के आधार नवीं शताब्दी तक के पुरातन ग्रंथ हैं, जितना ही अधिक आँका जाए, उतना कम है। यह सत्य है कि ऐसी अनेक कथाएँ हैं, जिनकी प्रामाणिकता संदेहास्पद है, किंतु कौन सा तत्कालीन यूरोपीय इतिहास इनसे बरी है। -- 'द मॉडर्न व वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान' (अनुवाद - किशोरी लाल गुप्त), बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पृ.124

ग्रियर्सन पर विचार

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  • ग्रियर्सन जी, आपने विदेशी होते हुए भी हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास लिखा। हम हिंदी भाषा-भाषी इसके लिए आपके कृतज्ञ हैं, यह इसी से स्पष्ट है कि आपने जो कुछ लिखा, हमने उसे प्रायः उसी रूप में स्वीकार कर लिया और आपके द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान ने बाद में लिखे जाने वाले हिंदी साहित्य के इतिहासों के रूप-रंग को सँवारा। -- 'मॉडर्न वर्नाक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' के अनुवादक किशोरीलाल गुप्त
  • भारती और भाषिकी के प्रति आपकी विशिष्ट सेवाओं के महत्व का अतिशयोक्तिपूर्ण कथन असंभव है। अपने आगामी पीढ़ियों और शताब्दियों को भाषिक तथ्यों का एक कल्पतरु प्रदान किया है। आपने भारत के भाषा-संबंधी साहित्य को जितना समृद्ध किया है, उतना संसार का कोई देश गर्व नहीं कर सकता। -- 1932 में भारतीय विद्वानों द्वारा ग्रियर्सन के सम्मान में प्रकाशित स्मृति-ग्रंथ के 'समर्पण' में
  • एक ही जिले में दो-चार कोस के फासले में बोली में अंतर पड़ जाता है। बोली के इस तरह बदलने को भाषा का बदलना मान लिया जाए तो कहीं-कहीं पर हर जिले में दो तीन बोलियों या भाषाओं की कल्पना करनी पड़ेगी। बोली में जैसे यहाँ, थोड़ी दूर पर अंतर हो गया है वैसे ही इंग्लैंड में भी हो गया है। यह बात मर्दुमशुमारी के सुपरिंटेंडेंट स्वयं भी स्वीकार करते हैं। पर वहाँ अँग्रेजों की अँग्रेजी बनी हुई है। उसमें भेद कल्पना नहीं की गई।-- -- महावीर प्रसाद द्विवेदी, सन १९२३ , 'मर्दुम शुमारी की हिंदुस्तानी भाषा' नामक लेख में , 3 में ग्रियर्सन की भाषा में भेद-भाव की नीति पर
  • इस देश की सरकार के द्वारा नियत किए गए डॉक्टर ग्रियर्सन ने यहाँ की भाषाओं की नाप जोख करके संयुक्त प्रांत की भाषा को चार भागों में बाँट दिया है - माध्यमिक पहाड़ी, पश्चिमी हिंदी, पूर्वी हिंदी, बिहारी। आपका वह बाँट-चूँट वैज्ञानिक कहा जाता है और इसी के अनुसार आपकी लिखी हुई भाषा विषयक रिपोर्ट में बड़े बड़े व्याख्यानों, विवरणों और विवेचनों के अनंतर इन चारों भागों के भेद समझाए गए हैं। पर भेदभाव के इतने बड़े भक्त डॉक्टर ग्रियर्सन ने भी इस प्रांत में हिंदुस्तानी नाम की एक भी भाषा को प्रधानता नहीं दी। -- , रामविलास शर्मा द्वारा "महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण", राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, 2009, पृ.234 में उधृत


इन्हें भी देखें

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