जातक कथाएँ

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जातक कथाएं प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ त्रिपिटक के सुत्तपिटक के खुद्दक निकाय का १०वाँ भाग है। इन कथाओं में गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएं हैं। ये कहानियां प्राचीनतम लिखित कहानियां हैं जिनमे लगभग 600 कहानियां संग्रहीत हैं। ये कहानियां न केवल पाठकों का मनोरंजन करती हैं बल्कि इनमें रीति, नीति और धर्म की बातें भी हैं। यों कहें कि ये मानव जीवन का सार हैं।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • वृक्षों की रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है क्योंकि वृक्ष ही हमारे सच्चे जीवन साथी हैं।
  • गुणों ही गुण को जनता है, निर्गुणी नहीं। बलवान ही बल को जानता है, निर्बल नहीं। हाथी ही सिंह का बल जानता है, चूहा नहीं।
  • अपने से ऊँचे का कठोर वचन भी से सहन किया जाता है और बराबर वाले का झगड़ा के डर से। यह जो अपने से नीचे के वचन का सहन करना है, इसे ही संत पुरूष उत्तम शांति कहते हैं।
  • ईर्ष्या एक ऐसी आग है जो इंसान का सब कुछ समाप्त कर देती है।
  • सात पग साथ चलने से मनुष्य मित्र हो जाता है, बारह दिन साथ रहने से सहायक हो जाता है, महीना, आध महीना साथ रहने से जाति बन्धु भी हो जाता है।
  • जिस वृक्ष की छाया में बैठे अथवा लेटे, उसकी शाखा तक न तोड़ें।
  • मित्रद्रोह पाप है।
  • जो वर्णाश्रम से ऊपर उठ जाता है, वह सतगुरू कहलाता है, वही मानव का हित कर सकता है।
  • जो शरीर वाणी तथा मन से संयत है, मन से भी कोई, पाप कर्म नहीं करता तथा स्वार्थ के लिए झूठ नहीं बोलता, ऐसे व्यक्ति को सदाचारी कहते हैं।
  • जिस प्रकार अग्नि तृष्ण काष्ठ को जलाती हुई कभी तृप्त नहीं होती और सागर नदियों को पाकर कभी तृप्त नहीं होता, उसी प्रकार पंडितजन सुभाषितों से कभी तृप्त नहीं होते।
  • मूर्ख स्वामी की सेवा उसी प्रकार निरर्थक है, जिस प्रकार से अरण्य रोदन, शव पर सुगन्धित पदार्थों का लेपन, स्थल में कमल लगाना, ऊसर भूमि में अधिक समय तक वर्षा, कुत्ते की पूँछ को सीधा करने का प्रयत्न, बहरे के कान में फुसफुसाना और अंधे को दर्पण दिखाना।
  • मनुष्य को चाहिए कि वह दुख से घिरा होने पर भी सुख की आशा न छोड़ें। बहुत सारे दुःख तथा सुख और मृत्यु बिना विचारे ही आ जाते हैं।
  • आपस में फूट होने से अपनी ही हानि होती है।
  • नक़ल करने के लिए भी अकल की जरुरत होती है।
  • दूसरों की सीख पर आँख मूंदकर नहीं विश्वास करना चाहिए। अपनी बुद्धि पर भरोसा रखना चाहिए।
  • जो व्यक्ति सतर्क रहता है वह कभी भी मार नहीं खाता है।
  • किसी के साथ भी दुष्टता नहीं करनी चाहिए। उसका अंजाम बहुत बुरा होता है।
  • जो पहले के उपकार को भूल जाता है उसे बाद में फिर काम पड़ने पर कोई उपकार करने वाला नहीं मिलता।
  • एक व्यक्ति की अच्छाई दूसरे व्यक्ति को भी अच्छा बना देती है।
  • कल्याणकर वाणी ही मुख से निकालें, पापी वाणी को नहीं। कल्याणकर वाणी का उच्चारण अच्छा है। पापी को मुख से निकालने वाला पीछे तपता है।
  • युवाओं को बुजुर्ग के अनुभवों और सीखों को आदर देना चाहिए और उसे विनम्रता पूर्वक सुनना चाहिए।