जागरण
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- उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
- क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥ -- कठोपनिषद्
- उठो, जागो, वरिष्ठ पुरुषों को पाकर उनसे बोध प्राप्त करो। छुरी की तीक्ष्णा धार पर चलकर उसे पार करने के समान दुर्गम है यह पथ-ऐसा ऋषिगण कहते हैं।
- या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।
- यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ॥ -- गीता
- सुखिया सब संसार है, खावै अरु सोवै ।
- दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रोवै। -- कबीरदास
- जागु जागु जीव जड़ जोहे जग जामिनी -- तुलसीदास
- उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है।
- जो जागत है सो पावत है जो सोवत है सो रोवत है॥