कामसूत्र
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कामसूत्र ऋषि वात्स्यायन द्वारा रचित एक संस्कृत ग्रन्थ है जिसमें मानव-जीवन के तृतीय पुरुषार्थ - काम के विभिन्न पहुलुओं का विस्तार से चिन्तन किया गया है।
उक्तियाँ
[सम्पादन]- शतायुर्वै पुरुषो विभज्य कालम् अन्योन्य अनुबद्धं परस्परस्य अनुपघातकं त्रिवर्गं सेवेत।
- बाल्ये विद्याग्रहणादीन् अर्थान् कामं च यौवने स्थाविरे धर्मं मोक्षं च॥ -- (कामसूत्र १.२.१ - १.२.४)
- पुरुष को सौ वर्ष की आयु को तीन भागों में बाँटकर बाल्यकाल में विद्या और अर्थ का अर्जन करना चाहिये, काम यौवन में तथा बुढ़ापे में धर्म और मोक्ष का अर्जन करना चाहिये।
- एषां समवाये पूर्वः पूर्वो गरीयान
- अर्थश्च राज्ञः/ तन्मूलत्वाल् लोकयात्रायाः/ वेश्यायाश् चैति त्रिवर्गप्रतिपत्तिः॥ -- कामसूत्र १.२.१४ - १.२.१५)
- सामान्य लोगों के लिये) धर्म, अर्थ से श्रेष्ठ है ; अर्थ, काम से श्रेष्ठ है। लेकिन राजा को अर्थ को प्राथमिकता देनी चाहिये क्योंकि अर्थ ही लोकयात्रा का आधार है। वेश्याओं के लिये इनके महत्व का क्रम उल्टा है (काम सबसे श्रेष्ठ है, फिर अर्थ है, और सबसे अन्त में धर्म)।