काका हाथरसी

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काका हाथरसी (18 सितंबर 1906 - 18 सितंबर 1995) भारत के एक हिंदी व्यंग्यकार और हास्य कवि थे।

कविताएँ[सम्पादन]

  • मेरी भाव बाधा हरो, पूज्य बिहारीलाल ।
दोहा बनकर सामने, दर्शन दो तत्काल॥
  • अँग्रेजी से प्यार है, हिंदी से परहेज,
ऊपर से हैं इंडियन, भीतर से अँगरेज॥
  • अंतरपट में खोजिए, छिपा हुआ है खोट।
मिल जाएगी आपको, बिल्कुल सत्य रिपोट॥
  • अगर ले लिया कर्ज कुछ, क्या है इसमें हर्ज ।
यदि पहचानोगे उसे, माँगे पिछला कर्ज़॥
  • अतिकी बुरी कुरूपता, अति का भला न रूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
  • अरे बाबरे बुढ़ापे, तू क्या देखे मोहि।
पुनर्जन्म यौवन मिले, तब देखूँगा तोहि॥
  • अर्थ-लाभ के केस को, लपक लेउ तत्काल।
बेमतलब की बात को, कल-परसों पर टाल॥
  • आवश्यकता से अधिक, बढ़े राग-अनुराग।
पानी छिड़को त्याग का, बुझे हृदय की आग॥
  • आशा-तृष्णा को रखो, जीवन-भर बलवान।
जिस दिन यह ढीली पड़ें, निष्क्रिय हो इंसान॥
  • इस दुनिया में दो बड़े, दामोदर औ दाम।
दामोदर बैठे रहें, दाम करें सब काम॥
  • इसी धरा पर देख लो, स्वर्ग-नर्क का फर्क।
फिल्मी बँगले स्वर्ग हैं, अस्पताल है नर्क॥
  • ऊँचा साबित कीजिए, ऊँची गप्पें हाँक ।
ऊँचा मानव है वही, जिसकी ऊँची नाक॥
  • एक लाख की लाटरी, दें भगवान निकाल।
सवा रुपे का भांग हम, लगवा दे तत्काल।
  • औसर मानुस जन्म का, मिलै न बारंबार।
प्याले का प्याला पियो, यहि जीवन का सार॥
  • कभी हँसे-खेले नहीं, मनोरंजन से दूर।
यों जीवन उड़ जाएगा, जैसे धूप-कपूर॥
  • काका इस संसार में, मत बैठो चुपचाप।
कलम बंद हो जाए तो, जीभ चलाओ आप॥
  • काका की कविता पढो, करो काव्य से नेह।
हास्य-व्यंग्य के रंग से, स्वस्थ-मस्त हो देह॥
  • काका या संसार में, व्यर्थ राम का नाम।
नोट जेब में होंय तो, बन जावें सब काम॥
  • किसको माने दोस्त हम, यह कलिकाल विचित्र ।
नोटों का बंडल समझ, सबसे बढ़िया मित्र॥
  • कीचड़ हो जब स्वार्थ की, न्याय-नीति पछताय ।
जिसकी लाठी बलवती, भैंस वही ले जाय॥
  • कुत्ते बंदर या गधे, कभी न देखे त्रस्त।
इन पर राशनकार्ड नहिं, फिर भी हैं अलमस्त॥
  • गांधी जी आएँ नहीं, कर दो टेलीफोन।
उनकी पीढ़ी मर चुकी, पहचानेगा कौन ॥
  • जप-तप-तीरथ व्यर्थ हैं, व्यर्थ यज्ञ औ योग।
करजा लेकर खाइए, नितप्रति मोहन-भोग ॥
  • रूठ गई हो प्रेमिका, बीज प्रेम के बोय।
याद सताए रात-दिन, धक-धक दिन में होय॥
धक-धक दिल में होय, व्यर्थ जा रही जवानी।
देख आजमाकर नुस्खा, यह पाकिस्तानी॥
कह ‘काका’ कवि, तवा बाँधकर अपने सर पर।
लेकर छाता कूदो, महबूबा के घर पर॥
  • राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर।
‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुंच गये बलवीर ॥
पहुंच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला।
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला॥
कहं ‘काका’ कवि, करके बंद धरम का कांटा।
लाला बोले – भागो, खत्म हो गया आटा॥
  • एक पुलिंदा बांधकर कर दीं उस पर सील,
खोला तो निकले वहां लखमीचंद वकील।
लखमीचंद वकील बदन में इतने भारी
बैठ जाएं तो पंचर हो जाती है लाली।
अगर कभी श्रीमान् ऊंट गाड़ी में जाएं
पहिए चूं-चूं करें, ऊंच को मिर्गी आएं।
  • बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा।
कहँ ‘काका’, जो ऐश कर रहे रजधानी में
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में?
  • पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस
हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस।
जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी
इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी।
कहँ ‘काका’ कविराय, ध्येय को भेजो लानत
अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत।
  • जनता के संकट दूर करूँ, इच्छा होती, मन भी चलता।
पर भ्रमण और उद्घाटन-भाषण से अवकाश नहीं मिलता॥
  • आटा महँगा, भाटे महँगे, महँगाई से मत घबराओ।
राशन से पेट न भर पाओ, तो गाजर शकरकन्द खाओ॥
  • ऋषियों की वाणी याद करो, उन तथ्यों पर विश्वास करो।
यदि आत्मशुद्धि करना चाहो, उपवास करो, उपवास करो॥
  • दर्शन-वेदांत बताते हैं, यह जीवन-जगत अनित्या है।
इसलिए दूध, घी, तेल, चून, चीनी, चावल, सब मिथ्या है॥
  • रिश्वत अथवा उपहार-भेंट मैं नहीं किसी से लेता हूँ।
यदि भूले भटके ले भी लूँ तो कृष्णार्पण कर देता हूँ॥
  • ले भाँति-भाँति की औषधियाँ, शासक-नेता आगे आए।
भारत से भ्रष्टाचार अभी तक दूर नहीं वे कर पाए॥
  • अब केवल एक इलाज शेष, मेरा यह नुस्खा नोट करो।
जब खोट करो, मत ओट करो, सब कुछ डंके की चोट करो॥

इन्हें भी देखें[सम्पादन]