कहावतें
अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत
स्वर वर्ण[सम्पादन]
अ[सम्पादन]
- अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गयी खेत
- अन्धो मे , काना राजा
- अधजल गगरी छलकत जाय। भरी गगरिया चुप्पे जाय।
- अषाढ़ मास अधियारी, चंदा निकरे जल-धारी। चंदा निकरे बादर फोर, तीन मास को वर्षा जोग।
आ[सम्पादन]
omkar mohan bhosale
- आगे रवि, पीछे चले, मंगल जो आषाढ़। तो बरसे अनमोल हो, धरती उमगे बाढ़।
इ[सम्पादन]
- ईंट से ईंट बजाना (युद्धात्मक विनाश लाना)
- ईंट का जवाब पत्थर से देना (किसी की दुष्टता का करारा जवाब देना)
- ईंद का चाँद होना (बहुत दिनों पर दीखना)
ओ[सम्पादन]
- ओछे की प्रीत, बालू की भीत।
व्यंजन[सम्पादन]
क[सम्पादन]
- कल करे सो आज कर, आज करे सो अब्। पल में परलय होयेगी, बहुरि करेगा कब॥
- कान-आँख-मोती-मतौ बासन-बाजौ ताल।गढ़ मठ डौड़ा जंत्र पुनि, जै फूटे बेहाल।
- कमला नारी कूपजल,और बरगद की छांय।गरमी में शीतल रहें शीतल में गरमाय।
- काबुल गये मुगल बन आये, बोलन लागे वानी।आव-आव कर मर गये, खटिया तर रओ पानी।
- कोदन की रोटी, और कल्लू लुगाई।पानी के मइरे में, राम की का थराई
- कागज काला करना ( बिना मतलब कुछ लिखना)
- किस खेत की मूली ( अधिकारहीन, शक्तिहीन)
- कुआं खोदना ( हानि पहुंचाने का यत्न करना)
ख[सम्पादन]
- खरी-खोटी सुनना (भला-बुरा कहना)
- खरी-खरी सुनना (कटु सत्य कहना)
- खेत रहना या आना (वीरगति पाना)
- खून-पसीना एक करना (कठिन परिश्रम करना)
- खटाई में पड़ना (झमेले में पड़ना, रूक जाना)
- खाक जानना (भटकना)
- खेल खेलाना (परेशान करना)
च[सम्पादन]
- चन्दा निकरे बादर फोर, असाढ़ मास अंधियारी,तीन मास कौ वर्षा जोर, सवत्तर रये जलधारी।
- चौदस पूनो जेठ की, वर्षा बरसे जोय। चौमासो बरसे नहीं, नदियन नीर न होय।
- चित्रा बरसे तीन गये,कोदों तिली कपास।चित्रा बरस तीन भये, गेहूं शक्कर मास।
ज[सम्पादन]
- जैसे उदई, तैसेई भान, न उनके चुटिया, न उनके कान। (इसका अर्थ इस रूप में लगाया जाता है जब किसी भी काम को करने के लिए एक जैसे स्वभाव के लोग मिल जायें और काम उनके कारण बिगड़ जाये।)
- जब उठें धुआंधारे, तब आंय नदिया नारे।
- जेठ बदी दसमीं दिनां, जो शनिवासर होई।पानी रहे न धरनी पै, विरला जीवै कोई।
त[सम्पादन]
- तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय। वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
थ[सम्पादन]
- थोथा चना बाजे घना। (कम योग्यता वाले लोग ज्यादा शोर मचाते हैं)
द[सम्पादन]
- दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल।
- दच्छिन वयें जल-थल अलमीरा, ताइ सरूप जूझे बड़ बीरा। मघा न बरसे भरे न खेत, माई न परसे भरे न पेट।
ध[सम्पादन]
- धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय। जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।
न[सम्पादन]
- नाकों चने चाबाना दाँत खटटे कर देना
- निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
- नार सुहागन घट भर ल्यावै, दध मछली सन्मुख जो आवै।
सामें गऊ-चुखावै बच्छा, ऐई सगुन है सबमें अच्छा। दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य न जॉय।
- निन्नें पानी जो पियें, भूंज हर्र नित खांय।दूध ब्यारी जे करें, उन पर बैध न जांय।
नाच न जाने आँगन टेडा (अपनी अयोग्यता पर दूसरो को दोष)
प[सम्पादन]
- पानी रहे न धरनी पै, विरला जीवै कोई।
- पय-पान-रस-पानहीं, पान दान सम्मान। जे दस मीटे चाहिए, साव-राज-दीवान।।
- पानी को धन पानी में,नाक कटे बेईमानी में।
फ[सम्पादन]
- फागुन मास चले पुखाई, तब गेंहू के गिरूवा धाई।नीचे आद ऊपर बदराई, पानी बरसे पुनि-पुनि आई। तब गेहूं को गिरूवा खाई।
ब[सम्पादन]
- बन्दर जोगी अगिन जल, सूजी सुआ सुनार।जे दस होंय ना आपनें, कूटी कटक कलार।
म[सम्पादन]
- मन मोती मूंगा मतो, ढ़ोगा मठ गढ़ ताल।दल-मल बाजौ बन्धुआ, घर फुटे वेहाल।
- माता-बाकी जल बसे, पिता बसे आकाश। जूने कहो तो भेजदें, नये आंहें कातक मास।
ल[सम्पादन]
- लाल बरसे ताल भरैं, सेत बरसै खेत भरै कारे बरसें पारे भर, जब उठे धुंआ धारे तब आवै नदिया नारे।
व[सम्पादन]
- वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह
- वेल पत्र शाखा नहीं, पंक्षी बसे ना डार।वे फल हमखों भेजियो, सियाराम रखवार।
स[सम्पादन]
- सेत बरसें खेत भर, कारे बरसें पारे भर।
- सामें गऊ-चुखावै बच्छा, ऐई सगुन है सबमें अच्छा।
दूदन ब्यारी जो करें, तिन घर वैद्य