कर्पूरी ठाकुर

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कर्पूरी ठाकुर () भारत के एक स्वतन्त्रता सेनानी तथा राजनेता थे। वे बिहार राज्य के दो बार मुख्यमन्त्री रहे। सन २०२४ में भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरान्त भारतरत्न से सम्मानित किया।

उक्तियाँ[सम्पादन]

  • संसद के विशेषाधिकार कायम रहें, अक्षुण रहें, आवश्यकतानुसार बढ़ते रहें। परन्तु जनता के अधिकार भी। यदि जनता के अधिकार कुचले जायेंगे तो जनता आज-न-कल संसद के विशेषाधिकारों को चुनौती देगी।
  • अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो
पग पग पर अड़ना सीखो
जीना है तो मरना सीखो।
  • हम सोए वतन को जगाने चले है
हम मुर्दा दिलो को जिलाने चले है।
गरीबों को रोटी ना देती हुकूमत,
जलिमो से लोहा बजाने चले है।
हमे और ज़्यादा ना छेड ,ए जालिम
मिटा देने जुल्म के ये सारे नज़ारे।
या मिटने को हम खुद दीवाने चले है,
हम सोए वतन को जगाने चले है ।
  • सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।
धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥
  • क्रांति वह धारा है जो समाज के जकड़े हुए स्रोतों को खोल देती है।
  • सत्ता परिवर्तन का उद्देश्य गरीबों का कल्याण होना चाहिए, न कि कुर्सियों का सुख।
  • जमींदारी प्रथा का उन्मूलन किसानों की मुक्ति का पहला कदम है।
  • शोषक और शोषित के बीच का संघर्ष अनिवार्य है, और इस संघर्ष में विजय शोषितों की ही होगी।
  • सामाजिक न्याय के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं है।
  • सच्चा समाजवाद वह है जो गरीबों के आंसू पोंछ सके।
  • शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो नौकरी दिलाने वाली न हो, बल्कि समाज बदलने वाली हो।
  • सत्ता का उपयोग जनता की सेवा के लिए करना चाहिए, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए।
  • भ्रष्टाचार समाज का सबसे बड़ा शत्रु है, इसे जड़ से खत्म करना होगा।
  • जब तक अंतिम व्यक्ति को गरीबी और शोषण से मुक्ति नहीं मिल जाती, तब तक मेरा संघर्ष जारी रहेगा।