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  • विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम्।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः॥
इस विचित्र संसार में कुछ भी निरर्थक (बिना काम का) नहीं है। अश्व दौड़ने में वीर है तो गदहा भार ढोने में।
  • अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः॥
ऐसा कोई अक्षर नहीं हैं जिसमें मन्त्रशक्ति ना हो, ऐसा कोई पौधा नहीं है जिसमें औषधीय गुण न हो तथा ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है अयोग्य (किसी काम का नहीं) हो। (परन्तु) ऐसे व्यक्ति ही दुर्लभ हैं जो हर व्यक्ति में गुण देख कर उन्हें सही काम में लगा सकें।