आर्य
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- नार्या म्लेच्छन्ति भाषाभिर्मायया न चरन्त्युत। -- महाभारत, सभापर्व 59.11
- आर्य कभी कठोर वचन नहीं बोलते हैं और ना ही छल करते हैं।
- वृत्तेन हि भवत्यार्यो न धनेन न विद्यया। -- महाभारत, उद्योगपर्व 90.53
- मनुष्य सदाचार से ही आर्य होता धन या विद्या से नहीं।
- आशाभंगं न कुर्वन्ति भक्तस्यार्याः कथञ्चम्। -- महाभारत, द्रोणपर्व 33.9
- आर्य अपने भक्त की आशा को कभी भंग नहीं करते हैं।
- आर्येण सुकरं त्वाहुरार्यकर्मं। -- महाभारत, द्रोणपर्व 143.10
- आर्य के लिये अच्छा कर्म करना सरल है।
- अनार्यकर्म त्वार्येण सुदुष्करतमं भुवि। -- महाभारत, द्रोणपर्व 143.10
- संसार में आर्य के द्वारा नीच कर्म का किया जाना अत्यंत कठिन है।
- आर्येण हि न वक्तव्या कदाचित् स्तुतिरात्मनः। -- महाभारत, द्रोणपर्व 195.21
- आर्य को कभी अपनी प्रशंसा नहीं करनी चाहिये।
- यदार्यजनविद्विष्टं कर्म तन्नाचरेद् बुधः। -- महाभारत, शान्तिपर्व 94.10
- बुद्धिमान् उस कर्म को न करे जिसको आर्यजन अनुचित समझते हों।
- लोको ह्यार्यगुणानेव भूयिष्ठं तु प्रशंसति। -- महाभारत, अनुशासनपर्व 122.2
- आर्य के गुणों की ही लोग अधिक प्रशंसा करते हैं।
- न तेन अरियो होति येन पाणानि हिंसति।
- अहिंसा सब्बपाणानं अरियोऽति पवुच्चति॥ -- धम्मपद २७० (धम्मट्ठवग्गो)
- प्राणियोको हनन करने से (कोई ) आर्य गहीं होता, सभी प्राणियों की हिंसा न करने से ( बस ) आर्य कहा जाता है।
- दुर्लभ मानव भव पाकर भी, आर्यत्व मिलाना दुर्लभतर।
- हैं दस्यु-म्लेच्छ, करोड़ों ही नर, गौतम! प्रमाद क्षण का मतकर ॥१६॥
- पाकर भी आर्यत्व पूर्ण, इन्द्रिय का पाना अति दुष्कर।
- हैं कितने इन्द्रिय-विकल यहाँ, गौतम! प्रमाद क्षण का मतकर ॥१७॥ --- उत्तराध्ययनसूत्र, अध्याय १० (द्रुमपत्रक) का हिन्दी काव्यरूपानतरण