सामग्री पर जाएँ

अमृत

विकिसूक्ति से
  • अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजम्॥ -- ऋग्वेद 1-23-19
जल में अमृत है, जल में औषधि है।
  • विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह ।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते॥ -- ईशोपनिषद्
जो विद्या (आध्यात्मिक ज्ञान) और अविद्या (भौतिक ज्ञान) दोनों को जानता है, वह अविद्या के द्वारा मृत्यु को पार करके विद्या से अमृतत्त्व (देवतात्मभाव = देवत्व) प्राप्त कर लेता है।
  • यन्तु मेघैः समुत्सृष्टं वारि तत्प्राणिनां द्विज।
पुष्णात्यौषधयः सर्वा जीवनायामृतं हि तत्॥ -- विष्णुपुराण 1/ 9/19
जो जल मेघों द्वारा बरसाया जाता है, वह प्राणियों के लिए अमृत स्वरूप है और वह जल मनुष्यों के लिए औषधियों का पोषण करता है।
  • संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे।
सुभाषितरसास्वादः संगतिः सुजने जने॥ -- चाणक्य
संसार रूपी कड़वे पेड़ से अमृत तुल्य दो ही फल उपलब्ध हो सकते हैं, एक है मीठे बोलों का रसास्वादन और दूसरा है सज्जनों की संगति।
  • जिसने एक बार भी ज्ञान रुपी अमृत का स्वाद ले लिया, वह सब कार्यों को छोड़कर उसी की ओर दौड़ पड़ता है। -- जाबालोपनिषद
  • चापलूसी का जहरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके कान उसे अमृत समझकर पी न जाएं। -- प्रेमचन्द
  • मान सहित बिस खाय के, संभु भये जगदीश।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायौ सीस॥ -- रहीम
  • अमृत ऐसे वचन में, रहिमन रिस की गाँस।
जैसे मिसिरिहु में मिली, निरस बाँस की फाँस॥ -- रहीम