अति

विकिसूक्ति से
  • अति सर्वत्र वर्जयेत्
अति (करने) से सब जगह बचना चाहिये।
  • अतिलोभो न कर्तव्यो लोभं नैव परित्यजेत्।
अतिलोभाभिभूतस्य चक्रं भ्रमति मस्तके॥ -- पञ्चतन्त्रम्
आदमी को बहुत लालची नहीं होना चाहिए ; और न ही सारी इच्छा छोड़ देनी चाहिए। आत्यन्तिक लालची व्यक्ति के सिर पर चक्र घूमता हैं। (ये पंक्तियाँ पंचतंत्र की एक कहानी में है और चक्र (पहिया) शब्द का कहानी में अपना संदर्भ है। हालांकि, एक जीवन और मृत्यु के चक्र के रूप में हम इस शब्द का अर्थ ले सकते हैं।)
  • कोऽतिभारः समर्थानाम्
जो समर्थ हैं उनके लिये अति भार क्या है ?
  • अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप।
अतिका भला न बरसना अतिकी भली न धूप॥
  • अति संघरषन जौं कर कोई । अनल प्रगट चन्दन तें होई ।। -- तुलसीदास
यदि कोई चन्दन की बहुत अधिक घिसाई करे, तो उससे भी आग प्रकट हो जाएगी।

इन्हें भी देखें[सम्पादन]