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  • को आसान कर रही हो ना, जब भी मुँह ढक लेता हूँ, जाने कौन नगर ठहरेंगे, जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारी छत पे निगरानी बहुत है, तुम्हे...
    ३८ KB (३,३३५ शब्द) - ०७:५९, ८ अगस्त २०२३
  • खाई : दो विपत्तियों के बीच में. बुराई है आज बोलने में, न बोलने में भी है बुराई. खड़ा हूँ ऐसी विकट जगह पर, इधर कुआँ है, उधर है खाई. इधर न उधर यह बला किधर :...
    ५६ KB (४,४९४ शब्द) - १८:०६, २३ दिसम्बर २०१९