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सदस्य:Mudarsk

विकिसूक्ति से

उप नाम कभी कुल के दर्शन करवाता था अब कुल को खा जाता है उसकी संस्कृति रीति रिवाज तेजी से निगल रहा है.

उप नाम

उप नामो के सहारे बहुत से पुराने उपनाम लुप्त हो गए जेसे शर्मा ब्राह्मणों का उपनाम देकर बहुत से उनके खुद के उपनाम और उनमें छिपा उनका सांस्कृतिक रीति रिवाज कुल के देवी देवताओं को छीन लिया गया।

जो किसी सोची समझी राजनीति के कारण हुआ होगा इस से इंकार नही किया जा सकता। इतना ही नही लम्बे समय के बाद उनकी वंशावली जठेरे (कुल के देवी देवता और उनके) रीति रिवाज भी प्रायःलुप्त हो रहे है।जो चिंता का विषय भी है। सब को शर्मा उपनाम में जोड़ कर गड़बड़ कर दिया गया है।

सोचें

जब तीर्थ पुरोहितों के पास श्री राम जी की वंशावली आज भी सुरक्षित हैं तो आप के शर्मा उपगोत्र में आप के असली उपनाम को खोजना कितना मुश्किल है। चलिए अगर आप को अपने किसी पुराने बुजुर्ग की जन्म पत्रिका मिल भी जाए तो आप अपने गोत्र को ढूंढ ही लें गे। की आप शर्म से ब्राह्मण हैं या लुहार सुनियार क्या है।

ऐसी समस्या आप के लिए खड़ी क्यों की गई । स्पष्ट है इसमें आप की असली पहिचान खत्म कर आप का वजूद ही मिटाने की बहुत बड़ी साजिश रची ही गई होगी।

पाकिस्तान भारत बंटवारे से पहले

आप के बुजुर्ग क्या शर्मा उपनाम प्रयोग करते थे या पंडित .नाम……फिर शर्मा.या कोई और उपनाम लिखते थे, वही था आप ब्राह्मणों का उप नाम जेसे मैं सतीश शर्मा के बाद अपना असली उपनाम मुड़ार भी लिखता आ रहा हू।

इस से पहले की पीढ़ियों में , पंडित बद्री नाथ, मुड़ार,। पंडित रमा शंकर मुड़ार लिखते थे तो अब शर्मा कहां से आया क्यों आया कोई जवाब नही।इसी तरहा चौधरी उप नाम भी काफी उपनामों को खा गया ।जेसे चौधरी (Chaudhary) गौत्र (उपनाम) Arora-Khatri समुदाय से हैं। महान ग्रंथों के अनुसार, Chaudhary (खत्री) सूर्यवंशी हैं और भगवान राम के वंशज भी हैं। Chaudhary क्षत्रिय वर्ग में आते हैं। अधिकांश Chaudhary गोत्र के लोग दोहरे विश्वास वाले हिंदू हैं।

मुसलमान भी खुद को चौधरी लिखते हैं । इस तरहा उप नाम उनके रीति रिवाज कुल देवता देवियां सभी लुप्त हो रहे है।और वर्ण संकर भी होने शुरू हो गए।

हिंदू या मुसलमान, कोई भी चौधरी हो सकता है. हिंदुओं में भी पंडित, खत्री, कायस्थ, बनिया, जाट, गूजर, अहीर, भूमिहार आदि सभी में चौधरीभीहैं ।

वैसे चौधरी कुल के मुखिया भी होते है।

जेसे शहर का देवी देवता ,ग्राम का देवी देवता होते है। उसी तरह आप के कुल के देवी देवता भी होते है। जो शर्मा ,चौधरी उप नामो के कारण गुम होते जा रहे है।

अपने अपने कुल की रक्षा हेतु अपने अपने कुल देवी देवताओं से जुड़े रहे.

मुड़ार एक ब्राह्मणों की जाती है जो गुजरांवाला पाकिस्तान के महाराजा रणजीत सिंह जी के राज्य में सरकारी पंडित थे।

आज इनका इतिहास ढूंढना दुर्लभ कार्य है। यह लोग अपने उपनाम मुड़ार का कम शर्मा ब्राह्मण का अधिक प्रयोग करते है।जो पूरे भारत में जहां – जहां तक राजा रणजीत सिंह का राज्य फेला था पाए जाते है। इनके कुल वृक्ष की एक नही कई पोथियां अलग – पंडो के पास हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों के पास हैं। जिससे से इनको एक स्थान पर नही ढूंढा जा सकता। ऐसी ही एक पोथी श्रवणनाथ घाट (वट वृक्ष के सामने) हरिद्वार में पं. छज्जू राम चेत राम पटुवार के पास देखी जा सकती है। अंग्रेजी में SHARWAN NATH GHAT HARIDWAR (U.K.)में

मुड़ारो के कुलदेवता नाग और कुलदेवी . सत्योती माता है जिनको बिद्रो बुआ जी जी भी कहते है। इन के कुछ रीति रिवाज भी है जिसका पालन करने का विधान है। काला कपड़ा पहनना इनके कुल में वर्जित है। दूध का वयोपार भी यह लोग नही कर सकते पर समय अनुसार कुछ लोग इस नियम का पालन ना करते भी देखे गए है। यह लोग नाग देवता को सफेद कपड़ा लपेट देते हैं। इनकी महिलाएं भी उनके सामने पूजा के समय घूंघट के बिना उपस्थित नही हो सकती। विशेष बात यह है कि मुड़ारों के कुल देवी देवताओं के स्थान जिनको जठेरे (कुल का बड़ा सदस्य भी कहते है) के मंदिर के बाहर बेरी का वृक्ष और जल स्तोत्र का होना जरूरी है. अधिक तर मुड़ारों ने बताया कि उनके कुल में किसी नौजवान की शादी थी जब दुल्हन का गृह परवेश या तो उस की मृत्यु हो गई. इस कारण आगे से दूल्हा सफेद कपड़े पहन कर ही शादी के समय घोड़ी पर बैठ दुल्हन लेने जाता है. कन्या (धी ध्यान)की शादी पर उसे लाल रंग के चूड़े की जगह सफेद रंग का चूड़ा पहनाने की प्रथा है,

मुड़ार

मुड़ार महाराजारंजित सिंह और राजासंसी पंजाब और महाराजा दलीप सिंह के राज्य के सरकारी पंडित है.जो पंजाब सहित लाडवा हरियाणा और भारत के अलग अलग राज्यों में फैले हुए हैं . जहां तक महाराजा रंजीतसिंह का राज्य फेला था। पहले अपने नाम के आगे पंडित लिखा करते थे. भारत में आकर अपना उप नाम मुड़ार की जगह शर्मा लिखने लगे .

सनातन धर्म एवं हिन्दू समाज ब्राह्मण, वर्ण में जठेरो की परम्परा है।

जठेरे का शाब्दिक अर्थ होता है ज्येष्ठ। अर्थात हमारे बड़े पितर देवता। खत्री वर्ण के लोगों में जठेरो को मानने की परम्परा सदियों से चली आ रही है।

हर कुल के लोग साल में एक बार अपने जठेरो पर जाते है। तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है। हर साल उस दिन मेला लगता है (उसे मेल भी कहते है)

उस कुल के अनेको परिवार इकठे होते है। हर ब्राह्मण शर्मा मुडार वंश के परिवार को अपने ज़ठेरो का आशीर्वाद लेने ज़रूर जाना चाहिए।

जिन लोगों को ज़ठेरो के नहीं पता उन्हें अपने बुजुर्गों से या सह उपनाम वालों से जठेरो का पता करके  अपनी इस सनातनी परम्परा से अवश्य जुड़ना चाहिए।

अज्ञात जठरो को मनाने के लिए

पितृ देवता के पूजन की सरल विधि :

शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके ,शुद्ध घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, पितृ का आवाहन करें  किसी पुष्प पर विराजमान होने को पुष्प आसन देकर।

जीवन की खुशियों के लिए प्रार्थना कर के गेहूं या चावल की सेनक या चावल की खीर -पूड़ी का भोग लगाना चाहिए ।(शर्मा मुड़ार ब्राह्मणों में गेहूं और गुड़ की गचक चडाने की परंपरा है)

गुड चावल कुम कुम (हल्दी) गेहूं का प्रयोग पूजा में होता है।

फिर अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने,इत्र ,हर-फूल आदि श्रद्धानुसार ।

कुलदेवता की पूजा के लिए :--संक्षिप्त रूप में 'कुलदेवताभ्यो नमः' प्रभूत शब्दों को भी उच्चारण किया जाता है| यह कुलदेवता के प्रति अभिवादन है जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो पूर्व साधना में सफलता प्राप्त हो सके|

चावल की सेनक : चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले ।

अठवाई : दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा ,ब्राह्मण मुड़ारों में प्रत्येक कुल के परिवारों के सभी सदस्यों के नाम से दो दो रोटी और हलवा झोली में लेने की परंपरा है। जिसे शुभ कार्य विवाह में भी प्रयोग करते है।

सभी को उनकी झोली में खाने के लिए दिया जाता है।जो उन्ही को खाना होता है जिसको दिया गया हो। कई बार छोटे बच्चे नही खा पाते तो उन के माता पिता ही ग्रहण कर लेते हैं सदियों से चली आ रही परंपराओं को हमे आगे बड़ाना चाहिए।

बात करते है मुड़ार ब्राह्मणों की जिनमे से अधिकांश अपने रीति रिवाज भूल चुके है।

पठानकोट से 16 किमी की दूरी पर कोटली मुगलान में शर्मा मुड़ार ब्राह्मणों के कुल देवता नाग और देवी सत्योती जी की मूर्तियों की स्थापना कर के जठेरों को जगा दी गई है। शर्मा मुड़ार , परिवार के ब्रामणो के कुल देवी देवता के जठेरो का पवित्र स्थान है जो सरकारी स्कूल की बाउंड्री में मौजूद है।

ऐसे दो स्थान तो जिला पठानकोट में है दूसरी जगह सरना रेलवे स्टेशन के पास शर्मा गार्ड नामक शर्मा मुडार ने स्थापित करवा रखी है उनको आरे वाले भी कहते है। जंडियाला ,दालम_न्गल, बटाला, वइ_पूई,अमृतसर,जगाधरी अब हरियाणा, चंडीगड़, पंचकुला हरियाणा पंजाब हिमाचल में आज भी है.

कहा जाता है कि मुड़ार भी राज पुरोहित थे , महाराजा रणजीत सिंह सांसी के सरकारी पंडित ब्राह्मण होने के कारण योद्धा ब्राह्मण हैं. इनके पुरुष अधिकतर मांसाहारी होते है. पर दूसरे कुल से आई महिलाएं आज भी शाकाहारी ही ज्यादा है. ऐसे प्रमाण नेट पर उपलब्ध नहीं हैं।ना तो अभी के मुड़ारों को अपने वंश की वंशावली का ही ज्ञान है।

हरिद्वार में तीरथ पुरोहित छजू राम पंडा जी की पोथी में मुड़ारो की वंशावली का पता चलता है. जहां जहां तक महाराजा सांसी का राज फैला रहा मुडार ब्राह्मण भी वहां वहां मौजूद हैं.

कुल देवी के साथ साथ


घर में रोज कुल देवता, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि की भी पूजा जरूर करनी चाहिए।

किसी भी भगवान की पूजा में उनका आवाहन करना, ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, चावल, कुमकुम, चंदन, पुष्प, प्रसाद आदि अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

पूजा के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो खंडित या टूटे हुए ना हो। चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला कर लेना चाहिए। पानी में हल्दी घोलकर उसमें चावल को डूबो कर पीला किया जा सकता है।

पूजन में पान का पत्ता भी अर्पित किया जाता है। ध्यान रखें कि केवल पान का पत्ता अर्पित ना करें, इसके साथ इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि भी चढ़ाना चाहिए। पूरा बना हुआ पान अर्पित करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।

देवी-देवताओं के सामने घी और तेल, दोनों के ही दीपक जलाने चाहिए। यदि आप प्रतिदिन घी का दीपक घर में जलाएंगे तो घर के कई वास्तु दोष दूर हो जाएंगे।

पूजन में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना नहीं चाहिए। आसन को हाथों से ही खिसकाना चाहिए।

देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से जरूर धो लेना चाहिए।

घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।


  • घर में रोज कुल देवत मृतक के समान कहे जाते है।ा, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि की भी पूजा जरूर करनी चाहिए।
  • किसी भी भगवान की पूजा में उनका आवाहन करना, ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, चावल, कुमकुम, चंदन, पुष्प, प्रसाद आदि अनिवार्य रूप से होना चाहिए।
  • पूजा के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो खंडित या टूटे हुए ना हो। चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला कर लेना चाहिए। पानी में हल्दी घोलकर उसमें चावल को डूबो कर पीला किया जा सकता है।
  • पूजन में पान का पत्ता भी अर्पित किया जाता है। ध्यान रखें कि केवल पान का पत्ता अर्पित ना करें, इसके साथ इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि भी चढ़ाना चाहिए। पूरा बना हुआ पान अर्पित करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।
  • देवी-देवताओं के सामने घी और तेल, दोनों के ही दीपक जलाने चाहिए। यदि आप प्रतिदिन घी का दीपक घर में जलाएंगे तो घर के कई वास्तु दोष दूर हो जाएंगे।
  • पूजन में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना नहीं चाहिए। आसन को हाथों से ही खिसकाना चाहिए।
  • देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से जरूर धो लेना चाहिए।
  • घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
  • संपूर्ण देवियां ,सम्पूर्ण स्त्रियाँ जगदम्बा मां के अंशकी कलासे उत्पन्न हैं। इनकी माया जगत्के समस्त प्राणियोंको मोहित करनेमें समर्थ है। गृहस्थ-कामी पुरुषोंको ये संपूर्ण ऐश्वर्य प्रदान करता है। इन्ही की कृपासे भगवान श्रीकृष्ण में भक्ति उत्पन्न होती है। विष्णुके उपासकोंके क्योंकि ये भगवती वैष्णवी हैं। मुमुक्षुओन्सको लिबरेशन ऑफर करना और सुख चाहनेवालोंको सुखी बनाना इनका स्वभाव है। स्वर्गमें 'स्वर्गलक्ष्मी' और गृहस्थोंके घर 'गृहलक्ष्मी' के रूपमें ये विराजती हैं। तपस्वियोंके पास तपस्यारूपसे, अग्निमें यहाँ श्रीरूपसे, अग्निमें दाहिकारूपसे, सूर्यमें प्रभातरूपसे तथा चन्द्रमा एवं कमलमें शोभारूपसे इन्हींकी शक्ति शोभा पा रही है। - सर्वशक्तिस्वरूपा ये देवी परमात्मा श्रीकृष्णके पास विराजमान रहती हैं। इनका सहयोग पाकर आत्मामे इन्ही का सहयोग पा के कुछ करनेकी योग्यता प्राप्त होती है। इन्हीं से यह जगत  शक्तिमान माना जाता है। इनके बिना मानव जीते जीते भी मृतकके समानी ह हैं।