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  • में हम वो मंजर देखते , यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या ! आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प , सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या...
    १५ KB (१,२०७ शब्द) - ०८:१७, १४ नवम्बर २०२२
  • को अलबत्ता शुनने होता। किंतु हेंयाँ, हम देखते हैं कोई कुछ नहीं बोलता। आज शब आप सभ्य लोग एकत्रा हैं, कुछ उपाय इसका अवश्य सोचना चाहिए। (उपवेशन)। प. देशी :...
    ७९ KB (६,२१० शब्द) - ००:०८, १७ मार्च २०१४