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  • बेढ़लि लङ्का। गुरु घन घन घोष घरिषण गर्ज्जन श्रवणे जनमय़ शङ्का॥ धीर बीर शूर शेखर राघव रावण तुवा परि झम्पे॥ सुर नर किन्नर फणधर थर थर महीधर तरसि प्रकम्पे॥निमि-नवसिद्ध...
    ३९ KB (२,२७४ शब्द) - २३:००, ३१ अगस्त २०२३